शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
बुधवार, 31 अगस्त 2011
अब तो जागो.......
और इनके रिटायर होने की उम्र ,
तोड डालिए ये पैंतीस साल की दीवार ,
जब चुनने की काबलियत 18 साल में आती है तो चुने जाने की काबलियत 25 और 35 में काहे तय की है भाई ,
अबे साठ के बाद तो सरकार भी रिटायर हो कर देती ,
मगर सरकार के खुद के रिटायर होने की बारी आते ही ढिंगा चिका ढिंगा चिका बे .......
पढ़ते रहो कोटा ...........
एक दो की नहीं , वतन की बात है ,
अबे ये न सोचो कि किसने निकाली पहले ,
सच मान लो , ये सबके मन की बात है ......
जो मुझे तुम मौका मिलता ,मैं लाजवाब कहता ,
सुनके ही गश खा जाते , इतना खराब कहता .....
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अगर नेताजी लोग ...एक आम आदमी के सच बोलने को लेकर विशेषाधिकार हनन का आरोप लगा रहे हैं तो निश्चित रूप से फ़िर ....सभी आम लोगों को ...जनाधिकार हनन के लिए तमाम राजनीतिज्ञों को ऐसा ही एक एक नोटिस थमा देना चाहिए , देते रहिए जवाब , करोड करोड लोगों का . बोलो है हिम्मत ......
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देश में किसी भी कानून बनने बनाने की प्रक्रिया इतनी ढकी छुपी होती है कि आधी जनता को बरसों तक उस कानून का क भी नहीं पता होता है , तो क्या अब इस दस्तूर को ही लागू किया जाए और सियासत को ये संदेश दे दिया जाए कि , जो कानून हमारे लिए बनाने जा रहे हो , पहले हमें भी तो समझाओ , कर्णधारों ......
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हर जालिम , हर घूसखोर पर , अब जम कर पहरा देना,
जहां दिखे कोई गडबड , बस एक तिरंगा लहरा देना ......
हम समझ जाएंगे कि बिगुल फ़ूंका दिया है , किसी साथी ने ............
अन्ना के साइड इफेक्ट ..........
लोकपाल बिल पर विचार कर रही संसद की स्थायी समिति से कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी बाहर हो गए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे पर टिप्पणी को लेकर सिविल सोसायटी के सदस्य उनसे काफी नाराज थे। इसी नाराजगी के चलते मनीष तिवारी ने खुद को समिति से अलग कर लिया।
मनीष तिवारी ने कहा कि वह मजबूत और सशक्त लोकपाल बिल के पक्ष में हैं। बिल को लेकर जारी चर्चा पर वह कोई विवाद की छाया नहीं पड़ने देना चाहते। गौरतलब है कि तिवारी ने अन्ना के खिलाफ तुम-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट करार दिया था। हालांकि बाद में उन्होंने माफी भी मांग ली थी।
खबर है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और अमर सिंह भी समिति से बाहर हो सकते हैं। अभिषेक मनु सिंघवी 31 सदस्यीय समिति के अध्यक्ष बनें रहेंगे। सूत्रों के मुताबिक जनलोकपाल बिल का विरोध करने वाले सांसदों के खिलाफ टीम अन्ना ने लॉबिंग की है। इन सांसदों में लालू प्रसाद यादव और अमर सिंह का नाम शामिल है। टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल लालू प्रसाद यादव का मजाक उड़ा चुके हैं। समाजवादी पार्टी अमर सिंह को संसदीय समिति से बाहर करने की मांग कर चुकी है।
मनु ने साधीचुप्पी
इस बीच, कांग्रेस के प्रवक्ता और स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि तिवारी के इस फैसले के बारे में उनका कुछ भी कहना उचित नहीं है और यह बात तिवारी से ही पूछी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थायी समिति के पुनर्गठन को लेकर अलग मतलब नहीं निकाले जाने चाहिए। इस समिति के गठन को एक वर्ष हो गया है और अब इसका फिर से गठन किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि समिति के गठन के बारे में वह न तो अध्यक्ष के नाते और न ही सांसद के नाते कुछ कह सकते हैं क्योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। उन्होंने कहा कि यह काम राजनीतिक दलों और लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति का काम है। उन्होंने कहा कि एक वर्ष के बाद अमूमन सभी स्थायी समितियों का फिर से गठन किया जाता है।
कांग्रेसी सांसद ने कहा था अन्ना को गद्दार
भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन के ठीक एक दिन पहले अन्ना हजारे को कांग्रेसी सांसद ने गद्दार और देशद्रोही बताया था। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मध्यप्रदेश में देवास-शाजापुर के सांसद सज्जन सिंह की अन्ना पर की गई यह टिप्पणी कांग्रेस पार्टी के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। अन्ना समर्थकों की ओर से प्रदेश के राजनैतिक महकमे में कांग्रेसी सांसद के बयान वाली एक सीडी बांटी जा रही है और इस पर बवाल बढ़ता जा रहा है। हालांकि अन्ना के अनशन के दौरान प्रधानमंत्री भी अन्ना को नेशनल हीरो कहने से नहीं चूके थे।
अन्ना हजारे को जहां देशभर में दूसरा गांधी कहा जा रहा है वहीं इस सीडी में कांग्रेसी सांसद सज्जन सिंह वर्मा की नजरों में अन्ना हजारे का आंदोलन देश के साथ गद्दारी है बताया गया है। सीडी में सज्जन सिंह कह रहे है, "हमारे देश को अभी चीन जैसी शक्तियों से खतरा है। उसने पाकिस्तान में बेस बना लिया है। ऎसे में देश की अस्मिता की रक्षा करना हमारे लिए Êयादा अहम है। इस समय कोई व्यक्ति अगर भड़काऊ काम करता है तो मैं उन्हें गद्दार कहूंगा, देशद्रोही कहूंगा।"
मंगलवार, 30 अगस्त 2011
बीवी, बच्चों को छोड़ कहां गया आईएएस
जयपुर। जयपुर में नियुक्त आईएएस नवीन जैन मंगलवार सुबह से ही लापता है। नवीन जैन के बारे में मंगलवार सुबह 7.30 बजे से कोई जानकारी नहीं है। सूत्रों के मुताबिक नवीन जैन जयपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे लेकिन बीच में ही वे गायब हो गए। बताया जा रहा है कि नवीन जैन शाहजहांपुर से गायब हुए हैं। जैन शाहजहांपुर के एक रेस्टोरेंट में अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर गायब हो गए।
जैन अपनी पत्नी और बेटे के नाम एक पत्र छोड़ गए हैं जिसमें उन्होंने पत्नी को लखनऊ जाने को कहा है। जैन ने लिखा है कि 11 साल की नौकरी में उन्हें एक आशियाना भी नसीब नहीं हुआ। पुलिस ने जैन की तलाशी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी आला अधिकारियों से इस बारे में बात की है। नवीन जैन बारां में कलेक्टर रह चुके हैं। जैन 2001 के आईएएस बैच के अधिकारी हैं।
संसद के प्रोटोकोल अधिकारी का सुराग नहीं
नई दिल्ली। चार दिन से लापता संसद के प्रोटोकोल अधिकारी जनमेश सिंह का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। लोकसभा सचिवालय के अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि सिंह शनिवार को उरई के लिए रवाना हुए थे लेकिन वह वहां नहीं पहुंचे। उनके पिता जीत सिंह ने उरई रेलवे स्टेशन के जीआरपी थाना में उनके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई है।
2009 में संसद की प्रोटोकोल अधिकारी बने सिंह अपनी मां को लेने के लिये उरई जा रहे थे। वह शनिवार को हजरत निजामुद्दीन से उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति में सवार हुए थे। उन्होंने फोन पर अपनी पत्नी को सूचित किया था कि उन्हें सीट मिल गई है। उसके बाद से उनके बारे में कोई सूचना नहीं मिली है।
रविवार, 28 अगस्त 2011
शेर को सवा शेर
राजदअध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने संसद में सांसदों से कहा, वे अन्ना से सीखें कि 74 वर्ष की अवस्था में बिना भोजन किए 12 दिनों का अनशन कैसे किया जाए।
हजारे के इस दावे पर कि वह 3 किमी की दौड़ लगा सकते हैं, डॉक्टरों को अन्ना की ताकत के राज का खुलासा करने के लिए शोध करना चाहिए और किताब लिखनी चाहिए।
हजारे का पलटवार
लालू की बात का जवाब देते हुए रामलीला मैदान में अन्ना हजारे ने कहा कि 10-12 बच्चे पैदा करने वाले लालू क्या जानें एक ब्रह्मचारी की ताकत क्या होती है। ब्रह्मचर्य ही मेरे अनशन की ताकत है। मैं 74 साल का हूं और आज तक मैंने किसी भी महिला को बुरी नजर से नहीं देखा। सभी मेरे लिए मां और बहन की तरह हैं।
अन्ना के घर का पता "रामलीला मैदान"
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बुधवार, 24 अगस्त 2011
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
बिल पास नहीं होने पर न्यूड होने की धमकी
रामलीला मैदान में अन्ना हजारे व उनकी टीम और हजारों समर्थकों के साथ धरने पर बैठी एक्ट्रेस सलीना वाली खान ने सरकार को चेतावनी दी है। सलीना ने एक अखबार से बातचीत में कहा है कि वो खुद भी भ्रष्टाचार का शिकार हुई है और इसलिए भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए अन्ना के आंदोलन का समर्थन कर रही है। एक्ट्रेस ने दो टूक शब्दों में कहा कि यदि सरकार ने अन्ना और उनकी टीम की ओर से तैयार बिल को पारित नहीं किया, तो इसके विरोध में सरेआम न्यूड होकर नाचेगी।
पब्लिसिटी स्टंट नहीं
सलीना के स्पष्ट किया है कि वो कोई पब्लिसिटी पाने के लिए ऎसा नहीं कह रही है। एक्ट्रेस के अनुसार "मैं ये सब फेमस होने के लिए नहीं कर रही, बल्कि आम आदमी के हित में कर रही हूं।" सलीना ने दिल्ली के पुलिसवालों पर घूसखोरी का आरोप लगाया। मॉडल ने बताया कि "मैंने पुलिस में फोन पर एक महिला मॉडल द्वारा धमकी देने और एक आपत्तिजनक विडियो जारी करने के बारे में एक शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन पुलिस वालों ने कार्रवाई करने के लिए पैसे मांगे और पैसे नहीं देने पर मेरी शिकायत नहीं सुनी।"
शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
अन्ना ने दी 30 तक की डेड लाइन
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने रामलीला मैदान पहुंचते ही जनलोकपाल को लेकर अपना रूख और कड़ा कर लिया है। शाम को मैदान में मौजूद समर्थकों के सैलाब के बीच जनता और मीडिया से सीधी बात करते हुए अन्ना ने कहा कि जनलोकपाल बिल पास होने तक वे यहां से नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा की 8 सितम्बर तक मानसून सत्र तक चलना है, इसी सत्र में 30 अगस्त तक बिल पास हो।
स्टेंडिंग कमेटी इस बारे निर्णय कर सकती है। कमेटी में सभी पार्टियों के सांसद है इसलिए कोई परेशानी भी नहीं है। सरकार के पास बहुमत है, यह बिल कैसे पारित हो यह सोचना सरकार का काम है। अन्ना ने यह भी साफ कर दिया कि वे किसी एनजीओ के जरिए सरकार से बात नहीं कर रहे हैं। अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकार स्टेंडिंग कमेटी की आड़ लेकर किसी भी निर्णय से बच रही है। हालांकि टीम अन्ना ने माना की बातचीत से ही हल निकलेगा।
अन्ना और समर्थकों में जोश बरकरार
जनलोकपाल बिल को लेकर लड़ाई लड़ रहे समाजसेवी अन्ना हजारे शुक्रवार को 68 घंटे बाद तिहाड़ जेल से बाहर आ गए। तिहाड़ जेल से अन्ना अपने हजारों समर्थकों के साथ राजघाट होते हुए रामलीला मैदान पहुंचे। रामलीला मैदान में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए अन्ना ने कहा कि जब तक लोकपाल बिल संसद में पेश नहीं हो जाता तब तक वह रामलीला मैदान नहीं छोड़ेंगे। अन्ना ने कहा कि उनका वजन कुछ कम हुआ है लेकिन इसकी परवाह नहीं है। अगर वजन 10 किलो कम भी हो जाए तो जोश कम नहीं होगा।
अन्ना ने कहा कि लड़ाई सिर्फ लोकपाल बिल के लिए नहीं है बल्कि व्यवस्था में परिवर्तन के लिए है। अन्ना ने कहा कि अंग्रेज देश से चले गए लेकिन भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ। अब देश को लूटने वाले गद्दारों को सबक सिखाना है। उनको नहीं छोड़ना है। अन्ना ने कहा कि कई देशों में क्रांतियां हुई। भारत में भी क्रांति करनी है।
दुनिया में हुई ज्यादातर क्रांतिया खून बहाकर हुई है लेकिन हमने अहिंसक क्रांति की है। भारत में हुई क्रांति के दौरान राष्ट्रीय संपत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया। भारत में हुई क्रांति से दुनिया सीख लेगी। भारत के युवकों ने दिखा दिया है कि अहिंसा से भी क्रांति हो सकती है। रामलीला मैदान तक करीब 22 किलोमीटर का सफर तय करने के लिए पहले जुलूस के रूप में एक खुले ट्रक पर सवार होकर मायापुरी तक आए। इसके बाद वह निजी वाहन से राजघाट और फिर इंडिया गेट पहुंचे। सवा दो बजे अन्ना रामलीला मैदान पहुंचे, जहां भारी संख्या में मौजूद उनके समर्थकों ने देशभक्ति के नारों के उद्घोषों से उनका स्वागत किया।
भारी बारिश के बावजूद तिहाड़ जेल से लेकर रामलीला मैदान तक अन्ना के समर्थकों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। स्कूली बच्चे हों या युवा, महिला हों या बुजुर्ग सभी अन्ना की एक झलक पाने के लिए बेताब थे और जगह-जगह एकत्र भारी भीड़ देशभक्ति के नारे लगा रही थी। इससे पहले अन्ना ने तिहाड़ जेल के बाहर मौजूद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि वह रहे न रहें लेकिन क्रांति की मशाल जलती रहनी चाहिए। अन्ना ने कहा कि देश को 1947 में आजादी मिली थी लेकिन यह आजादी अभी अधूरी है।
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
इनको बुद्धि कब आएगी
हजारे प्रकरण में सरकार और कांग्रेस अब नाकामी को छिपाने के लिए आंदोलन के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ बता अपनी और फजीहत कराने में लगे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि गृह मंत्रालय ने आईबी और दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट की पूरी तरह से अनदेखी की। दोनों ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को सजग कर दिया था कि अन्ना का अनशन रोकना ठीक नहीं होगा। इसके बाद भी सरकार ने एक ऎसा फैसला किया, जिसे वह अब न निगल पा रही है और न ही उगल।
उल्टा संसद के भीतर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोल पड़े कि कुछ ऎसी विदेशी शक्तियां हैं, जो भारत को आगे नहीं बढ़ने देना चाहती हैं। हम ऎसे लोगों के हाथों में न खेलें। हालांकि, उन्होंने सीधा कुछ नहीं कहा, लेकिन यही माना गया कि अन्ना विदेशी हाथो में खेल रहे हैं।
उल्टा बोले अल्वी
कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी प्रधानमंत्री से दो हाथ आगे निकल गए। पार्टी मंच से उन्होंने जो कहा उसका सीधा -सीधा यही मतलब निकाला जा रहा है कि अन्ना हजारे अमरीका के हाथों में खेल रहे हैं। अल्वी भूल गए कि अमरीका के साथ ही उनकी सरकार ने परमाणु समझौता किया था।
राहुल नाखुश
गृहमंत्री पी. चिदंबरम के रिपोर्टो की अनदेखी करने के फैसले से कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी खुश नहीं हैं। वे बुधवार को कोरग्रुप की बैठक में शामिल भी नहीं हुए। उनके कड़े रूख के बाद इतना तय हो गया है कि सरकार अब अन्ना के खिलाफ किसी भी प्रकार का कड़ा कदम नहीं उठाने जा रही है।
बुधवार, 17 अगस्त 2011
दर्द होता रहा छटपटाते रहे, आईने॒से सदा चोट खाते रहे, वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे
हम वतन के लिए॒सिर कटाते रहे”
280 लाख करोड़ का सवाल है ...
भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है स्विस बैंक के
डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह
भी कहा है कि भारत का लगभग 280
लाख करोड़
रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम
इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट
बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.
या यूँ कहें
कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है.
या यूँ भी कह सकते है
कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4
लेन रोड बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है.
ये रकम इतनी ज्यादा है कि
अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो. यानी
भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत
नहीं है. जरा सोचिये ...
...हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है.
इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा.
मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है.
यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़,
या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमाकरवाई गई है. भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके
रखा हुआ है. हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार
है.हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, २ जी स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन
से घोटाले अभी उजागर होने वाले है
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं |
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ,
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं |
तेरी ज़ुबान हैं झूठी जम्हूरियत की तरह,
तू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं |
तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें,
अदीब वों तो सियासी हैं पर कमीं नहीं |
तुझे कसम है खुदी को बहुत हलाक न कर,
तू इस मशीन का पुर्ज़ा है, तू मशीन नहीं |
बहुत मशहूर है आयें ज़रूर आप यहाँ,
ये मुल्क देखने के लायक तो है, हसीन नहीं |
ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो,
तुम्हारी हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं |
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ज़िंदगी तस्वीर भी है
और तक़दीर भी
मन चाहे रंगों से
बन जाये तो तस्वीर
अनचाहे रंगों से
बने तो तक़दीर.....
(२)
जब तू चली जाती है
ज़िंदगी ग़ज़ल हो जाती है
और जब तू आ जाती है
तो ग़ज़ल ज़िंदगी हो जाती है....
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गले की हड्डी
अन्ना हजारे को जेल भेजकर सरकार ने देश को सन् 1975 के आपातकाल की याद दिला दी। इस कदम का क्या असर हो सकता है, सरकार को शाम होते-होते समझ में आ गया। पल प्रति पल बढ़ते दबाव को सरकार सहन नहीं कर सकी और अन्ना की रिहाई का निर्णय करना पड़ा।
सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाकर लोकतंत्र के साथ अन्याय ही किया है। सरकार ने स्पष्ट तौर पर जता दिया कि जो भी सरकार की नीतियों का सार्वजनिक रूप से विरोध करेगा, उसे कुचल दिया जाएगा।
सरकारों के लिए सत्ता की लड़ाई में हत्याएं करवाना, अपहरण आदि तो साधारण बातें हो गई। सबसे ज्यादा तो आpर्य इस बात का है कि सरकार जिस व्यक्ति का अपमान कर रही है, वह आज भी उस कमेटी का सदस्य है, जिस कमेटी ने ड्राफ्ट बिल तैयार करने का काम किया है।
कपिल सिब्बल यदि अन्ना को भला बुरा कह रहे हैं तो स्वयं अपना ही सार्वजनिक रूप से अपमान कर रहे हैं। जो इतना भी नहीं समझ सकते, वे देश के हित को कितना समझते होंगे। वैसे तो यह तथ्य भी उनके रोज के बयानों से देशवासी अच्छी तरह समझ गए हैं। यह बात भी स्पष्ट हो गई कि सरकार एक व्यक्ति से भी हारी हुई दिखाई पड़ रही है। अन्ना हजारे सरकार के गले की हaी बन गए हैं।
न निगल ही सकते, न निकाल ही सकते। ऊपर से कपिल सिब्बल जैसा सलाहकार। कल जिस प्रकार अन्ना ने कहा कि मैं कपिल के घर पर पानी भरने को स्वीकार कर लूंगा। मेरी टीम का सदस्य मेरे लिए यहां तक कह जाए, तब बाकी क्या रह गया। उचित होगा यदि कपिल सिब्बल इस विषय पर बोलना बन्द कर दें।
यह सारा मामला बाबा रामदेव जैसा नहीं है। अत्यधिक संवेदनशील भी है। अन्ना के साथ जैसे-जैसे सरकारी अड़ंगे बढ़ेंगे, देश की जनता अन्ना के साथ होती चली जाएगी। कांग्रेस के खातों में चल रहे टू जी घोटाले, खेल प्रकरण, शीला दीक्षित प्रकरण आदि से देश में पहले ही कांग्रेस विरोधी वातावरण बना हुआ है। अन्ना प्रकरण आग में घी का ही काम करेगा।
धीरे-धीरे सभी विपक्षी दल भी एक होते दिखाई देंगे। भाजपा को भी इस मामले में और लोकपाल विधेयक के स्वरूप पर भी अपना स्पष्ट रूख घोषित कर देना चाहिए। अभी तक उसका रूख अवसर के अनुसार पलटता रहा है। अभी जो कुछ सरकार कर रही है वह तो "चोरी और सीनाजोरी" दिखाई दे रहा है।
इसको तो किसी भी भाषा में लोकतंत्र नहीं कह सकते। बेहतर हो सरकार इस मुद्दे को जनता के सामने रखे, उस पर बहस हो और जनमानस को देखते हुए ही निर्णय किया जाए। जहां प्रधानमंत्री स्वयं शर्त मानने को तैयार हों, वहां छुटभैय्ये कूद-कूदकर वातावरण को विषाक्त बना रहे थे। एन.डी.ए. सरकार में भी स्व. प्रमोद महाजन इसी भूमिका को निभाते रहते थे। इनके डर कहीं और होते हैं। इसी को "विनाश काले विपरीत बुद्धि" कहते हैं।
यह इस बात से भी प्रमाणित होता है कि शासन ने जन्तर-मन्तर की अनुमति का मामला अन्त तक लटकाए रखा। चार नए विकल्प सुझाए, तो वहां भी स्वीकृति के लिए लटकाए रखा। बहाना ट्रेफिक जाम का! इसी से सरकार की नीयत साफ नहीं लगती। ऎन वक्त पर धारा-144 लगाना क्या संदेश देता है? जिस व्यक्ति को कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार ने सन् 1992 में पkभूषण दिया, जिसे जन लोकपाल बिल का आधार स्तंभ माना, उसके साथ यह व्यवहार दोगलापन नहीं है?
बाबा रामदेव के समय भी कार्रवाई का ठीकरा सरकार ने पुलिस के माथे ही फोड़ने का प्रयास किया था। अब भी यही कर रही है। सरकार किसकी और पुलिस किसकी? पुलिस ने क्या सोचकर मीडिया को दूसरे द्वार तक जाने से रोका और तीखी प्रतिक्रिया झेली? इसी प्रकार आज अन्ना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना कांग्रेस का बचकानापन है।
आरोप अन्ना को कमेटी में रखते समय लगते तो उनका कोई मतलब था। आज तो अपनी इज्जत ही धूल में मिला रहे हो। सारा देश थू-थू कर रहा है। लोकपाल विधेयक पर अन्ना टीम ने देशभर में जो सर्वे कराया है, उससे यह तो पता चल ही गया है कि देश की जनता सरकार के साथ नहीं है।
ट्रस्ट की आडिट का मुद्दा उठाकर कांग्रेस ने एक और घटिया खेल खेला। जस्टिस सांवत से जांच कराने की पहल खुद अन्ना ने की थी। अन्ना का कहीं नाम भी नहीं आया। इसके विपरीत कांग्रेस नेताओं के परिवार के सदस्यों के नाम एन.जी.ओ. चल रहे हैं? क्या सब जांच कराने को तैयार हैं? क्या सभी के ट्रस्टों का नियमित आडिट होता है? अन्ना को लेकर बार-बार निर्णय बदलना सरकार की बौखलाहट को दर्शाता है। जब इस मामले में सारे मुद्दों पर संसद काम कर रही है, तो अन्ना संबंधी निर्णय भी संसद पर ही छोड़ जाने चाहिए थे।
अन्ना की गिरफ्तारी ने देश को हिलाकर रख दिया। संसद में विपक्ष का भारी हंगामा हुआ, देश भर में प्रदर्शन हुए और कुछ ही घंटों में सरकार को पीछे हटना पड़ा। मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली पुलिस से 14 दिनों में जवाब मांगा है? दिल्ली की निचली छह अदालतों के वकील बुधवार को हड़ताल पर रहेंगे। और इन सबसे महत्वपूर्ण बात है देश के युवावर्ग का अन्ना के साथ आना। इनके संदेश एक अलग चिन्गारी की आंच जैसी लग रहे हैं। कब लपटें बन जाएं, किधर से उठें, कहां तक फैल जाए, देश को कहीं और ले जाएगी। सरकार सावचेत रहे। सत्ता में डंडा ही सब कुछ नहीं होता।
गुलाब कोठारी
सरकारी और अन्ना के लोकपाल में अंतर
सरकार की ओर से तैयार लोकपाल विधेयक और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए तैयार अन्ना हजारे के जन लोकपाल में कई मामलों में बड़ा अंतर है। प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को जांच दायरे में शामिल किए जाने के साथ कई ऎसे मुद्दे हैं जिनपर दोनों में जमीं-आसमां का फर्क है। ये हैं मुख्य अंतर-
सिर्फ सिफारिश बनाम कार्रवाई का अधिकार
सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरूद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी।
पुलिस अधिकार और एफआईआर
सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं। जबकि जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी।
जेल की सजा बनाम जुर्माना
सरकारी लोकपाल के तहत किसी भी झूठी शिकायत पर शिकायतकर्ता को जेल भी भेजने का प्रावधान है। लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है साथ ही घोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है।
सांसद, प्रधानमंत्री जांच दायरे में
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र से प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को बाहर रखा गया है। जबकि जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएंगे।
सरकारी लोकपाल में सांसदों की स्पीच और वोटिंग को लोकपाल बिल के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है। जबकि टीम अन्ना के बिल में सांसदों को लोकपाल के अधीन रखा गया है। सरकारी विधेयक के तहत सांसद, मंत्री और ग्रुप-ए के समकक्ष अधिकारी जांच के दायरे में आते हैं, लेकिन उसे मंत्री को बर्खास्त करने की सिफारिश का अधिकार नहीं। उधर, अन्ना के लोकपाल में न सिर्फ सांसद, मंत्री अपितु प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी की सिफारिश का अधिकार होगा।
समिति में जन भागीदारी
सरकारी लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। चार की कानूनी पृष्टभूमि होगी, बाकी का चयन किसी भी क्षेत्र से हो सकता है।
लोकपाल के चयनकर्ताओं में अंतर
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगसेसे पुरस्कार के विजेता भी चयन समिति में शामिल होंगे।
ऎसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है।
जांच की समयावधि
सरकारी लोकपाल के तहत किसी भी मामले की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय। जबकि प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए।
भ्रष्ट अफसरों की बर्खास्तगी
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के खçलाफ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। जबकि प्रस्तावित जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के खçलाफ भी जांच करने का अधिकार शामिल है। साथ ही भ्रष्ट अफसरों को इसके तहत बर्खास्त कर सकेगा।
सीबीआई/सीवीसी में विलय
सरकार सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन(सीबीआई) और सेंट्रल विजिलेंस कमिशन(सीवीसी) को लोकपाल के साथ विलय के पक्ष में नहीं है। जबकि टीम अन्ना चाहती है इन एजेंसियों का लोकपाल में विलय अवश्य हो, इससे लोकपाल का काम बेहतर होगा।
रविवार, 14 अगस्त 2011
ये लो नहले पर दहला ........
राहुल गांधी "लापता", सामना में विज्ञापन
कांग्रेस राहुल गांधी लापता हैं। यह विज्ञापना छपा है शिवसेना के मुखपत्र सामना में। जैतापुर और पुणे में किसानों पर पुलिस फायरिंग की घटना के विरोध से नाराज किसान संगठन ने यह विज्ञापन दिया है। जैतापुर संघर्ष समिति और पवना मावल खोरे समिति की ओर से दिया गया विज्ञापन किसी गुमशुदा की तलाश के लिए आमतौर पर दिए जाने वाले विज्ञापनों की तरह ही है।
विज्ञापन में राहुल गांधी की उम्र, वैवाहिक स्थिति सहित कई विवरण दिए गए हैं। विज्ञापन में कहा गया है कि हर वक्त अनाप शनाप बोलकर विवादों में फंसने वाले राहुल गांधी की महाराष्ट्र के किसानों को तलाश है। विज्ञापन देने वालों को शिकायत है कि उत्तर प्रदेश के किसानों पर फायरिंग की घटना के बाद भट्टा पारसौल जाने वाले राहुल गांधी को महाराष्ट्र के किसानों की याद क्यों नहीं आ रही।