रविवार, 25 दिसंबर 2011

दिल्ली की पहली FIR

दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला 1911 में किया गया था, लेकिन अंग्रेजों ने अपने राज के साथ ही यहां थाने बनाने शुरू कर दिए थे। तकरीबन चार साल तक थाने या कहिए कि फौज के भेष में ही पुलिसिंग लगभग मुगल काल के सिस्टम पर ही चलती रही थी। कानून बनाने, देश भर में जोन आदि बनाने, भर्ती करने, फोर्स की कांट-छांट कर दिल्ली में फोर्स बढ़ाने, इंग्लैंड से अफसरों और बड़े प्रशासकों की ज्यादा तादाद आने आदि में तकरीबन चार साल लग गए थे।

पहला 'सौभाग्य'
1861 में इंडियन पुलिस ऐक्ट, इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), क्रिमिनल प्रसीजर कोड (सीआरपीसी) बनाने के साथ ही अंग्रेजों ने दिल्ली में और देश भर में थानों को नया रंग-रूप देना शुरू कर दिया। 1861 में दिल्ली में पांच थाने बनाए गए। कोतवाली, सदर बाजार, महरौली, मुंडका-नांगलोई और सब्जी मंडी, लेकिन दिल्ली की पहली एफआईआर दर्ज करने का 'सौभाग्य' मिला सब्जी मंडी थाने को।

FIR से कितनी तकलीफ
पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में तकलीफ होती है, यह एक जनरल इंप्रेशन है। कई बार एफआईआर दर्ज कराने में सिफारिश लगानी पड़ती है और भी बहुत कुछ करने की बातें कही जाती हैं। छोटी-मोटी चोरी के मामले में न तो कोई पुलिस के पास आमतौर पर जाना चाहता है, न ही उसकी शिकायत पर दूसरे मामलों की तरह ही गौर होता है। हालांकि, यह अलग बात है कि हर किसी के लिए छोटी या बड़ी चोरी के मतलब उसकी अपनी हैसियत के हिसाब से अलग-अलग हैं।

कैसी थी वह पुलिस
बहरहाल, पुलिस को लेकर एक अलग तकलीफदेह इंप्रेशन है। आज इस देश में अपनी पुलिस है। दिल्ली पर पहली बार कब्जा करने वाले अंग्रेजों के उस जमाने की पुलिस कैसी रही होगी, ठीक से कहना मुश्किल है, लेकिन तकरीबन 350 साल की मुगल सल्तनत जाने के तुरंत बाद के उस जमाने में पुलिस को लेकर खौफ ही ज्यादा रहा होगा, जैसा कि 1947 तक में भी था। बड़ी-बड़ी आशंकाएं रही होंगी।

हिम्मत कैसे की
तो, उस माहौल में चोरी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कोई थाने जाने की हिम्मत कैसे करता होगा? उसे रिपोर्ट लिखवाने के लिए क्या-कुछ करना पड़ता होगा? हो सकता है कि मुगलों को बेदखल कर सत्ता संभालने वाले अंग्रेज अपनी पॉप्युलैरिटी के लिए लोगों को बुला-बुला कर कहते हों कि परचा दर्ज करा लो। यह सब अब सिर्फ सोचा ही जा सकता है। खैर, जो भी रहा हो, जिस चोरी की रिपोर्ट दर्ज हुई, वह उस वक्त के हिसाब से छोटी चोरी नहीं थी।

वह शीश महल में रहता था
दिल्ली की पहली एफआईआर 18 अक्टूबर, 1861 को सब्जी मंडी (रोशनारा रोड-आजाद मार्केट के पास पुरानी सब्जी मंडी थी) थाने में लिखी गई। इस इलाके के कटरा शीश महल में रहने वाले मयुद्दीन, पुत्र मुहम्मद यार खान ने दर्ज कराई थी यह एफआईआर। उसने दर्ज कराया कि रात में (17 अक्टूबर) उसके घर से तीन डेगचे, तीन डेगची, एक कटोरा, एक कुल्फी (संभवत: कुल्फी बनाने का फ्रेम), एक लोटा, एक हुक्का और लेडीज के कुछ कपड़े, जिनकी कीमत 45 'आने' है, चोरी हो गए।

बामड़ोला गांव में
तब इस थाने का नाम था मुंडका। अब इसका नाम है नांगलोई थाना। 29 अक्टूबर, 1861 को बामड़ोला गांव के चीना ने जो शिकायत दर्ज कराई, उसका निचोड़ यह है- चीना पुत्र देवकी राम, जाति जाट, ने शिकायत की है कि उसके घर के बाहर से दस रुपए कीमत की उसकी दो गाय चोरी कर ली गई हैं।

महरौली में 3 दिन बाद
तीसरी एफआईआर महरौली थाने की है। 2 नवंबर, 1861 को गणेशी लाल, पुत्र जोशीले लाल ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी दीवार तोड़ कर किसी ने उसका कटड़ा (भैंस का बच्चा), झोटा (भैंसा) और ग्याभन (प्रेग्नेंट) भैंस चोरी कर लिए हैं।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

रविवार, 18 दिसंबर 2011

इंदौर में बाबू के पास 15 करोड़ की संपत्ति




इंदौर। मध्य प्रदेश में लोकायुक्त व आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की ओर से जारी छापामार कार्रवाइयों में सरकारी कर्मचारियों के करोड़पति होने का खुलासा हो रहा है। इसी क्रम में रविवार को इंदौर में लोकायुक्त पुलिस ने क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ)के एक लिपिक के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई कर बड़े पैमाने पर चल-अचल संपत्ति का पता लगाया है।

लोकायुक्त पुलिस के सूत्रों ने बताया कि लिपिक रमन धुलधोए के तीन ठिकानों पर छापे मारे। इस दौरान उसके पास से खंडवा रोड पर करीब 50 बीघा जमीन और उसमें एक आलीशान मकान, एक होटल, सांवेर मार्ग पर औद्योगिक क्षेत्र में चार भूखंड,आठ बैंक खाते और गहने समेत निवेश संपत्ति संबंधी अनेक दस्तावेज जब्त किए गए हैं।

एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल उसके पास से 15 करोड़ रूपए की संपत्ति संबंधी दस्तावेज मिले हैं। सूत्रों के मुताबिक लिपिक ने अपने काम के लिए एक अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर रखा था। इसके एवज में लिपिक उसे एक निश्चित धनराशि देता था। बताया जाता है धुलधोए लंबे समय से इंदौर में पदस्थ हैं और उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की शिकायत ईओडब्ल्यू से की गई थी, इसी शिकायत के आधार पर रविवार को छापा मारा गया।

गौरतलब है कि लोकायुक्त पुलिस ने हाल ही में उज्जैन में एक चपरासी के घर छापा मारा था। छापे के दौरान चपरासी के पास से 10 करोड़ रूपए की संपत्ति बरामद हुई थी। चपरासी के घर से चार गाडियां और चार दोपहिया वाहन मिले थे। इससे पहले मंदसौर में भी एक इंजीनियर के पास भी करोड़ों रूपये की सम्पत्ति मिली थी।

तीन दिन से गायब वीना मुंबई में मिली



मुंबई। तीन दिन से लापता पाकिस्तानी कलाकार वीना मलिक का पता चल गया है। वह मुंबई में ही है। वीना मलिक के एक प्रतिनिधि ने उसके मुंबई में होने की जानकारी दी है। इस प्रतिनिधि के मुताबिक वीना मलिक ओकवुक पार्क में है। उसकी वीना से बात हुई है। इस बीच वीना मलिक ने भी कहा है कि वह लगातार शूटिंग के कारण थक गई थी। बिना किसी दखल के वह आराम कर सके इसलिए उन्होंने अपना मोबाइल बंद कर दिया था। वीना ने इस बात से इनकार किया है कि वह डिप्रेशन में हैं।

इससे पहले पाकिस्तान के समाचार पत्र द नेशन की खबर में बताया गया था कि वीना मलिक वीजा रिन्यू कराने के लिए पाकिस्तान आई हुई है। वीना मलिक के वीजा की अवधि 24 दिसंबर को समाप्त होने वाली थी। वीजा रिन्यू कराने के लिए वह वाघा बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान पहुंची थी। वीना मलिक अपने दोस्त अस्मित पटेल के साथ अमृतसर गई थी। वहां से वह बुर्का पहनकर वाघा बॉर्डर पहुंची, जहां उसके दोस्त वीना को लेने आए हुए थे। वीना मलिक लाहौर में अपने दोस्त के यहां रूकी हुई है। वीणा 45 दिनों की वीजा अवधि पर भारतीय फैशन पत्रिका के लिए फोटो शूट के लिए भारत आई थीं।

बिग बॉस सीजन 4 से सुर्खियों में आईं वीना मलिक इन दिनों एक बॉलीवुड फिल्म के साथ साथ टीवी शो की शूटिंग में व्यस्त थी। वीना शुक्रवार सुबह अचानक लापता हो गई थी। वह एक कार में बैठकर अचानक शूटिंग स्थल से गायब हो गई थी। वीना मलिक के मैनेजर को जब उसके बारे में कोई खोज खबर नहीं मिली तो उसने बांद्रा पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी।

हाल ही में एक मैगजीन के कवर पर न्यूड फोटो देकर वीना मलिक विवादों में घिर गई थी। न्यूड फोटो को लेकर वीना को जान से मारने की धमकियां भी मिल रही थी। विवाद और वीना मलिक का चोली-दामन का साथ रहा है। उल्लेखनीय है कि इसी तरह एक अन्य पाकिस्तानी अभिनेत्री लैला भी शूटिंग के दौरान अचानक गायब हो गई थी। कश्मीर से पूरे परिवार के साथ लापता लैला का आज तक कोई सुराग नहीं लगा है। लैला ने राजेश खन्ना के साथ हिंदी फिल्म में काम करने के साथ बॉलीवुड में कई फिल्में भी की।

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

वीना मलिक से पिता ने तोड़ा नाता



मुम्बई। पाकिस्तानी मॉडल और अभिनेत्री वीना मलिक के परिवार ने भी अब उससे किनारा कर लिया है। न्यूड फोटोशूट के बाद चौतरफा आलोचना झेल रही वीना मलिक के पिता ने उससे सभी संबंध समाप्त करने की घोषणा करते हुए कहा कि वीना को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। गौरतलब है कि खुद मलिक एक भारतीय फैशन पत्रिका के कवर पर प्रकाशित अपनी विवादित न्यूड तस्वीर को फर्जी बत रही है। वीना ने मैगजीन के सम्पादक को नोटिस भेज कर हर्जाने के रूप में 10 करोड़ रूपए मांगे हैं।

वीना के पिता मलिक मोहम्मद ने कहा कि जो कुछ भी हो रहा है उससे वो खुश नहीं है। मलिक ने कहा कि उन्होंने वीना से तमाम रिश्ते समाप्त कर लिए हैं। और अपनी संपत्ति से बेदखल करता हूं । मलिक ने कहा कि कोई भी महिला न्यूड तस्वीरें खिंचाने के बारे में नहीं सोच सकती और यदि उनकी बेटी ने ऎसा किया है तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।

नामवर पिता, गुमनाम पुत्र


हर कामयाब पिता चाहता है कि उसका बेटा उससे भी ज्यादा शोहरत पाए, दौलत कमाए, लेकिन कुछ मामलों में ऎसा हो नहीं पाया। बात करें देश की उन चर्चित हस्तियों की जिनके बेटे पिता के कद से बहुत पीछे रह गए। प्रदीप कुमार का नजरिया-

रवींद्रनाथ-रतींद्र नाथ टैगोर
नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की पहले बेटे थे रतींद्रनाथ टैगोर। जिनको गुरूदेव खुदसे आगे देखना चाहते थे। रतींद्रनाथ का बचपन सुख सुविधाओं और बेहतर लालन पालन के बीच बीता। अच्छी तालीम के साथ-साथ वे संस्कारवान भी थे। जानने-पहचाने वाले लोगों की राय के मुताबिक रतींद्रनाथ काफी चार्मिग व्यक्तित्व के थे। रतींद्रनाथ का विवाह गुरूदेव ने प्रतिमा देवी से कराया। प्रतिमा देवी की पहली शादी नीलानाथ मुखोपाध्याय से हुई थी, जिसके असमय निधन के बाद वो विधवा हो गई थीं।

टैगोर के परिवार में यह विधवा विवाह का पहला उदाहरण था। लेकिन ऎसा लगता है कि ये शादी रतींद्रनाथ ने पिता के दबाव में की थी। पिता के 1941 में निधन के बाद उन्होंने प्रतिमा देवी से अलग रहना शुरू कर दिया था। इस दौरान रतींद्रनाथ अपने करियर में भी कामयाब हो रहे थे। उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया और वे इस पद पर 14 मई, 1951 से लेकर 22 अगस्त, 1953 तक रहे। लेकिन पत्नी से अलग होने के बाद उनकी दूसरी महिलाओं से रिश्ते भी बनने लगे थे।

ऎसा ही एक रिश्ता उन्होंने कोलकाता की मीरा चटर्जी के साथ बनाया, जिसको ना तो उन्होंने कभी स्वीकार किया और ना ही खंडन। यह रिश्ता 1948 से शुरू हुआ था और इसके बाद उठे विवादों के चलते ही रतींद्रनाथ को विश्वभारती छोड़नी पड़ी। लेकिन वे मीरा चटर्जी को नहीं छोड़ पाए। इस घटनाक्रम के बाद वे मीरा के साथ देहरादून आ गए। गौरतलब है कि रतींद्रनाथ और मीरा के उम्र के बीच 30 साल का फासला था। बहरहाल यह संबंध रतींद्रनाथ के 1961 में निधन तक बना रहा।


महात्मा गांधी और हरिलाल गांधी
महात्मा गांधी के बेटे हरिलाल का जन्म 1888 में हुआ था, वे जब बड़े हो रहे थे तब गांधी जी भौतिक सुख सुविधाओं से दूर होने लगे थे। लिहाजा हरिलाल का बचपन अभावों में बीता। यह दंश तब और मुखर हो गया जब बड़े होने पर हरिलाल ने वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने की इच्छा जताई। लेकिन गंाधी ने उन्हें मना करते हुए कहा कि पाश्चात्य पढ़ाई की शैली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसी तरह से काम नहीं आने वाली है।

इससे नाराज हरिलाल ने 1911 में अपने परिवार से नाता तोड़ लिया। वे हमेशा आरोप लगाते रहे कि पिता ने उनका ख्याल नहीं रखा और करियर बनाने में उनकी कोई मदद नहीं की। इस नकारात्मक प्रवृति ने हरिलाल गांधी का बड़ा नुकसान किया। उनकी शादी गुलाब देवी से हुई, जिससे उनके पांच बच्चे भी हुए। इनमें से दो का निधन बाल्यावस्था में हो गया।

हरिलाल गांधी की बड़ी बेटी रामीबहन की बेटी नीलम पारिख ने हरिलाल गांधी की जीवनी लिखी-"गांधी जी लॉस्ट ज्वेल-हरिलाल गांधी"। निस्संदेह हरी लाल गांधी बापू के खो गए बेटे साबित हुए। पिता से अलगाव के बाद भी वे अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए जब राजघाट पहुंचे तो ऎसी अवस्था में थे कि ज्यादातर लोग उन्हें पहचान ही नहीं सके। बापू के जाने के बाद हरिलाल गांधी छह महीने तक भी जीवित नहीं रहे। 18 जून, 1948 को मुंबई में उनका निधन हो गया।


देवआनंद और लाड़ला सुनील आनंद
फिल्मी दुनिया में देव आनंद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। 1954 में देव आनंद ने मशहूर एक्ट्रेस कल्पना कार्तिक से शादी की। देव आनंद और कल्पना कार्तिक की सुपरस्टार जोड़ी के बेटे हैं सुनील आनंद। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद सुनील विदेश गए। अमरीकन यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन से उन्होंने बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन की पढ़ाई पूरी की।

लेकिन फिल्मी संसार के मोह से खुद को दूर नहीं रख पाए। पिता का इरादा भी बेटे को फिल्म जगत में स्थापित करने का था। एक्टिंग के गुर के साथ उन्होंने हांगकांग जाकर मार्शल आट्र्स के गुर भी सीखे। पिता ने 1984 में उनको लॉन्च करने के लिए "आनंद एंड आनंद" फिल्म बनाई। लेकिन कद्दावर पिता का बैनर और उनकी कोशिशें बेटे के काम नहीं आई। बाद में सुनील को "कार थीफ","मैं तेरे लिए" और "मास्टर" जैसी नाम मात्र की फिल्में मिलीं। फिल्मों में नाकामयाबी के दिन देखने के बाद सुनील अपने पिता के बैनर का कारोबार संभालने में जुट गए और फिल्मी दुनिया ने भी उन्हें याद नहीं रखा।

बिस्मिल्लाह खान-नैय्यर हुसैन खान
शहनाई को आम लोगों तक पहुंचाने वाले बिस्मिल्लाह खान को 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 2006 में उनके निधन के बाद उनके दूसरे बेटे नैय्यर हुसैन खान को ही उनकी विरासत बढ़ाने का मौका मिला, जो अपने पिता के साथ ही शहनाई बजाते रहे। लेकिन वे भी कोई खास नाम नहीं कर पाए। 2009 को उनके निधन के साथ ही बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की विरासत खत्म होती दिखने लगी।

वल्लभ भाई पटेल-दयाभाई पटेल
लौ ह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के बेटे थे दयाभाई पटेल। दयाभाई पटेल ने अपने पिता के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और बाद में 1952-57 में लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। बाद में वे राज्यसभा में भी गए लेकिन पिता के कद से बहुत पीछे रह गए।

विजय अमृतराज-प्रकाश अमृतराज
खेल की दुनिया में भारतीय टेनिस स्टार विजय अमृतराज को लोग अब तक नहीं भूले हैं। अपने भाई आनंद अमृतराज के साथ वे 1976 में विंबलडन मेंस डबल्स के फाइनल तक पहुंचे थे। उनकी रैंकिंग 39 तक थी। वे 20 साल तक भारतीय डेविस कप टीम में शामिल रहे। अपने बेटे को अमरीका में रखकर उसे भी टेनिस स्टार बनाना चाहा। 2 अक्टूबर, 1983 को जन्मे प्रकाश अमृतराज को मौका भी मिला। उन्हें भारतीय डेविस कप टीम में शामिल भी किया गया लेकिन प्रकाश में अपने पिता की झलक नहीं मिली और वे अब भारतीय खेल की दुनिया में लगभग गुमनाम हो चुके हैं।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

डर गई सरकार......

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर पोस्ट की जा रही आपत्तिजनक सामग्री से सरकार खफा है। सरकार ने साफ कर दिया है कि भारतीयों की भावनाओं से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा। केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी को भी भड़काऊ सामग्री परोसने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सिब्बल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सरकार प्रेस की आजादी पर पाबंदी नहीं चाहती लेकिन सोशल नेटवर्किग साइट्स को भड़काऊ सामग्री पोस्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

सिब्बल ने कहा कि सरकार सेंसरशिप में विश्वास नहीं रखती लेकिन किसी को धार्मिक भावनाओं को भड़काने की भी अनुमति नहीं दी जा सकती। सिब्बल ने कहा कि कुछ महीने पहले पता चला कि गूगल, फेसबुक और टि्वटर सहित अन्य सोशल नेटवर्किग साइट्स आपत्तिजनक सामग्री परोस रही है। इन साइट्स ने इससे होने वाले नुकसान को जाने बगैर आपत्तिजनक सामग्री को पोस्ट कर दिया।

देव आनंद को हो गया था मौत का पूर्वाभास?


dev-anand.jpg
देव आनंद का फेवरिट डेस्टिनेशन था लंदन और हर तीन-चार महीने बाद वह हवा बदलने, शॉपिंग करने या मेडिकल चेकअप के लिए लंदन चले जाया करते थे। इस बार वह पूरे एक महीने का प्रोग्राम बनाकर लंदन गए थे, मगर मेडिकल चेकअप के इरादे से नहीं, जैसी कि आम चर्चा है।

पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, लंदन के वॉशिंगटन मेफेयर होटेल में अपने परमानेंट सुइट नं. 207 में बेटे सुनील के साथ दो हफ्ते से डेरा जमाए बैठे देव आनंद इस बीच एक बार भी मेडिकल चेकअप के लिए बाहर नहीं निकले, बल्कि रोज कमरा बंद कर अपनी अगली फिल्म 'हरे राम हरे कृष्ण आज' की फाइनल स्क्रिप्ट तैयार करने में घंटों-घंटों जुटे रहे।

मगर शुक्रवार 4 दिसंबर की रात दिल का जानलेवा दौरा पड़ने से पहले डिनर के दौरान बेटे सुनील के साथ बातें करते-करते जिस तरह आश्चर्यजनक रूप से इमोशनल हो उठे और अचानक दिल खोलकर उन्हें सलाह और आशीर्वाद देने लगे, उससे तो यही लगता है कि देव साहब को शायद यह पूर्वानुमान हो गया था कि इस बार वे लंदन से मुंबई नहीं लौट पाएंगे।

सुनील आनंद को पिता के साथ बिताई वह घड़ी बार-बार याद आ रही है और वह खुद से पूछ रहे हैं कि क्या सदाबहार अभिनेता को अपनी विदाई का पूर्वाभास हो गया था? सुनील ने सोमवार की सुबह देव आनंद के सहयोगी और अपने करीबी मित्र मोहन चूड़ीवाला को लंदन से फोन कर अपने मन की यह आशंका व्यक्त की और पूछा, 'डैडी बार-बार यह क्यों कह रहे थे कि सुनील, तुझे बहुत कुछ करना है... नवकेतन के लिए पिक्चरें बनानी हैं... तू कामयाब इंसान बनेगा और मैं तुझे ऊपर से, स्वर्ग के किसी कोने से हंसी-खुशी आशीर्वाद दूंगा। क्या उन्हें अपनी विदाई का एहसास हो गया था?'

पिता से उस अंतिम मुलाकात को याद कर सुनील काफी देर तक लगातार सुबकते रहे। मोहन ने उन्हें सांत्वना दी, मगर खुद भी सदमे में हैं। उन्हें इस बात का बेहद अफसोस है कि देव साहब की जिद के बावजूद इस बार वे उनके साथ लंदन के सफर पर नहीं जा सके उन्होंने बताया, 'पहले मैं हर बार देव साहब के साथ लंदन जाया करता था और हफ्ते भर में लौट आता था, मगर इस बार उनका प्रोग्राम एक महीने का था इसलिए मैं यहीं रुक गया। वैसे हर दो-तीन दिन पर उनसे फोन पर बात हो जाया करती थी।

शुक्रवार की उस शाम भी साढ़े पांच बजे उनसे मेरी बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि लंदन में काफी ठंड है और एकाध हफ्ते में लौट आऊंगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।'

सोनिया के पैर पकड़ बन गए मुख्यमंत्री

to me


हैदराबाद। आंध्रप्रदेश विधानसभा में सोमवार को हुई बहस ने सारी हदें पार कर दीं। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी और विपक्ष के नेता एन चंद्रबाबू नायडू के बीच तीखी तकरार हुई। नायडू ने तो यहां तक कह दिया कि आप एक नामित मुख्यमंत्री हैं। सोनिया के पैरों पर गिरने से आपको यह पद मिला है। आप सीलबंद लिफाफा हैं और आपका नेतृत्व रीढ़हीन है। मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा कि आपने तो मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने श्वसुर की पीठ में छुरा मारा था।

वीना स्वयंवर से पहले हुई न्यूड!



मुंबई। बिग बॉस -4 में अश्मित पटेल के साथ अंतरंग संबंधों को लेकर चर्चा में आई पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक एक बार फिर सुर्खियों में हैं। टीवी शो "वीना का स्वयंवर" से पहले एक मैंस मैगजिन के कवर पेज के लिए वीना का न्यूड फोटो प्रकाशित हुआ है। कवर पेज पर इस न्यूड फोटो में वीना "आईएसआई" का टेटू भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

हालांकि, शुक्रवार को "वीना का स्वयंवर" टीवी शो के एक प्रमोशन कार्यक्रम में वीना ने इस फोटो का फर्जी बताया। वीना ने कहा कि मैंने किसी भी मैगजीन के लिए न्यूड फोटा नहीं दिया। जो फोटो मैगजीन में छपा है वह फर्जी है और वह अपने कानूनी सलाहकार से इस विषय पर बातचीत करेंगी।


भट्ट की सलाह पर वीना ने मांगे 10 करोड़

मुंबई। पाकिस्तानी अदाकारा वीना मलिक के न्यूड फोटो शूट का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। वीना मलिक ने अपनी न्यूड फोटो छापने वाली पत्रिका से हर्जाने के रूप में 10 करोड़ रूपए मांगे हैं। वीना ने पत्रिका को नोटिस भेजकर यह रकम मांगी है। वीना का न्यूड फोटो जब एक पत्रिका में छपा तो उन्होंने मशहूर निर्देशक महेश भट्ट से सलाह ली।

वीना ने महेश भट्ट से पूछा कि इस मामले से कैसे निपटा जाए। महेश भट्ट ने न्यूड फोटो छापने वाली पत्रिका के खिलाफ कानूनी कदम उठाने को कहा। महेश भट्ट की सलाह मानते हुए वीना मलिक ने पत्रिका के सम्पादक कबीर शर्मा और फोटोग्राफर विशाल सक्सेना को नोटिस भेज दिया। वीना ने नोटिस मिलने के 24 घंटे के भीतर यह राशि देने की मांग की है।

साथ ही वीना ने कबीर शर्मा से पत्रिका का प्रसारण रोकने को कहा है। महेश भट्ट ने कहा कि अब पुलिस वाले ही बताएंगे कि कौन सच्चा है और कौन झूठा। गौरतलब है कि एक प्रतिष्ठित पत्रिका में वीना मलिक का न्यूड फोटो छपा था। फोटो में वीना के हाथ पर आईएसआई लिखा हुआ है। वीना का कहना है कि उसने यह फोटो शूट नहीं करवाया है। वहीं पत्रिका के सम्पादक कबीर शर्मा का दावा है कि वीना ने ही फोटो शूट करवाया था

देवानंद के बारे में क्या कहती है अभिनेत्रियां



मुंबई। देव आनंद हिन्दी सिनेमा के सबसे चर्चित सितारे रहे। एक पीढ़ी उन्हें रूपहले पर्दे पर देखकर जवान हुई। फिर उनके बच्चों ने देव आनंद को परदे पर देखा और फिर उनके बच्चों ने। देवानंद के निधन से हर कोई स्तब्ध रह गया। उनके फैंस ने ही नहीं बल्कि देव आनंद की प्रमुख अभिनेत्रियों ने भी अपने हीरो को याद किया।

मैंने गाइड के लिए न कह दिया था-वहीदा रहमान
देव के निधन से मुझे धक्का लगा। सुबह आंख खुलते ही उनके निधन का सबसे दुखद समाचार सुना। देव कई काराणों से विशेष थे। मैंने अपनी पहली हिंदी फिल्म सीआईडी उनके साथ की। वे न केवल मेरे पहले हीरो थे बल्कि मैंने सात फिल्में उनके साथ कीं। इनमें से तीन नवकेतन बैनर की थीं जिसे देव ने शुरू किया था। हमने सीआईडी, गाईड, कालाबाजार जैसी कुछ शानदार फिल्में कीं। गाईड के लिए मैंने उन्हें न कह दिया था लेकिन वे मुझे मनाते रहे औ आज मैं उनका शुक्रिया अदा करती हूं। मुझे याद है जब हमारी फिल्म हिट होती तो हम खुश होते लेकिन कोई फिल्म अच्छा नहीं कर पाती तो मैं उदास हो जाती। तब देव मुझसे कहते, कभी पीछे नहीं देखना। जो हो गया सो हो गया।

जब मैं पहली बार उनसे मिली, मैंने उन्हें देव साहब कह कर बुलाया। उन्होंने कहा, मुझे देव कह कर बुलाओ। मैं नई-नई आई थी इसलिए मेरे लिए ऎसा कहना संभव नहीं था लेकिन जब तक मैं उन्हें देव कह कर नहीं बुलाती तब तक वे मेरी बात सुनते ही नहीं थे। वे फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बेहतरीन इनसान थे। उन्होंने कभी किसी के बारे में बुरा नहीं कहा।

उन्हें काम करते देखना विटामिन टेबलेट खाने जैसा था: हेमामालिनी
देव साहब और मैंने जॉनी मेरा नाम की। मैं नई-नई आई थी और वे बहुत बड़े स्टार थे लेकिन उन्होंने मुझे ऎसा कभी महसूस नहीं होने दिया। केबल कार पर गीत वादा तो निभाया बिहार के राजगीर में फिल्माया गया था। भीड़ बेकाबू हो रही थी। उन्होंने मेरा बहुत ख्याल रखा। वे आशावादी थे। सैट पर पहुंचने वालों में वे सबसे पहले होते थे। उनके हाथ में छड़ी रहती थी। मैंने पूछा, आप यह छड़ी क्यों अपने साथ रखते हैं। उन्होंने कहा, यह उनके लिए है जो समय बर्बाद करते हैं। वे कभी थकते नहीं थे और जो उनके साथ कदम-ताल नहीं कर पाता था उसकी कभी प्रशंसा नहीं करते थे। उन्हें काम करते देखना किसी विटामिन टेबलेट खाने जैसा था।

उन्होंने भारतीय सिनेमा की धारा बदल दी: मुमताज
कोई भी देव साहब की जगह नहीं ले सकता। उन्होंने भारतीय सिनेमा की धारा ही बदल दी। वे आइकन थे। जब मैंने हरे रामा हरे कृष्णा साइन की तो
उन्होंने फिल्म उद्योग के नियम को तोड़ा। तब किसी कलाकार को एक समय में छह से अधिक फिल्म साइन करने की इजाजत नहीं थी। लेकिन देव साहब ने मुझसे कहा, तुम्हें बंबई से बाहर ले जाना मेरा काम है और वे मुझे पुलिस सुरक्षा में काठमांडू ले गए। फिल्म उद्योग ने कड़ा एतराज जताया और
उन्होंने कहा, मैंने प्रोजेक्ट के लिए उसे साइन किया है और मैं शूटिंग के लिए उसे साथ लेकर जाऊंगा। मैं देखता हूं मुझे कौन रोकता है।

अंत तक वे अपने किए में भरोसा रखते थे: जीनत अमान
देव साहब कभी थकते नहीं थे। अंत तक वे अपने किए में भरोसा रखते थे। उन्होंने पूरी लगन के साथ अपनी फिल्में बनाई। वे फ्लॉप से कभी नहीं डरते थे। अपने कैरियर में निर्भीक होकर निर्णय लेना मैंने उनसे ही सीखा।

यात्रा कठोर लेकिन आनंददायक होती थी: आशा पारेख
देव साहब कभी खाली नहीं बैठते थे। वे हमेशा सक्रिय रहते थे, आशा यह करो, आशा वह करो, वहां खड़े मत रहो, जाओ, जाओ। वे कभी नहीं रूकते थे। उनके साथ काम करना जैसे किसी एक्सप्रेस ट्रेन में सफर करने जैसा था। यात्रा कठोर लेकिन आनंददायक होती थी। वे पूर्ण फिल्मकार थे। सांस लेते, खाते यहां तक की सोते में भी उनके सामने सिनेमा ही रहता था। वे बहुत ऊर्जावान थे। सचमुच दूसरा देव आनंद कभी नहीं हो सकता।

सिनेमाई पौरूष्ा की सही व्याख्या उन्होंने ही की: वैजयंतीमाला
मैं पहली बार अमरदीप के सैट पर देव साहब से मिली। एक खूबसूरत शिष्टाचारी इनसान और हां, लंबे भी (हंसते हुए)। मेरे समय में मैं लंबी हीरोइन थी। मुझे अपने लिए एक लंबा हीरो ही चाहिए था और देव साहब सही समय पर आए। वे पढ़े-लिखे, शिक्षित, सुसंस्कृत और विद्वान थे।

रविवार, 4 दिसंबर 2011

"अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं"

मुंबई। देवानंद रविवार को दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। देवानंद के निधन की खबर सुनते ही प्रशंसकों की आखों में आंसू छलक आए। इस मौके पर हर दिल बस यही गा रहा "अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं"। इस मौके देव साहब की जिंदगी के फलसफे को साबित करता गाना "जिंदगी का साथ निभाता चलाया गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया"भी याद आ रहा है। यह गाना देव साहब की जिंदादिली की याद दिलाता है।

देेव साहब ने बिना किसी की परवाह किए हुए अपनी जिंदगी जी। 88 साल की उम्र में भी वह जिस जोश और उत्साह से काम करते रहे वह युवाओं के लिए प्रेरणा के योग्य है। देवानंद ने यह साबित कर दिया कि आदमी उम्र से नहीं मन से थकता है। देव साहब का कहना था कि वह फिल्मों से प्यार करते हैं। उनका मानना था कि आदमी गलती करता और उससे सीख लेता है। जब उनकी फिल्म असफल हो जाती थी तो वह उससे सीख लेते थे और नई फिल्म के लिए तैयार हो जाते थे ताकि पहले की गलतियां दूसरी फिल्म में न दोहराएं।

भारतीय सिनेमा जगत में लगभग छह दशक से दर्शको के दिलों पर राज करने वाले सदाबहार अभिनेता देवानंद को अदाकार बनने के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। 26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे देवानंद का झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर नहीं होकर अभिनय की ओर था। देवानंद को उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिये पैसे नहीं है और यदि वह आगे पढना चाहते है तो नौकरी कर लें। देवानंद ने निश्चय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों ना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए।
----
देवानंद पर खूब हुई पुरस्कारों की बारिश मुंबई। पk भूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कारों से सम्मानित देव आनंद अपने काम यानी फिल्मों से बहुत प्यार करते थे। उनका कहना था कि वे अपने काम से कभी ऊबते व थकते नहीं। पुरस्कार पाने के लिए उन्होंने कभी काम नहीं किया लेकिन वे ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित हुए। उन्हें मिले प्रमुख पुरस्कार हैं-

2001- पk भूषण से सम्मानित।
2002- दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित।

फिल्मफेअर अवाड्र्स
1955- फिल्म मुनीमजी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1958- फिल्म कालापानी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित
1959- फिल्म लवमैरिज के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1960- फिल्म काला बाजार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1961- फिल्म हम दोनों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1966- फिल्म गाइड को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार
1991- फिल्मफेअर लाइफटाइम अचीचमेंट अवार्ड

अन्य
1996 - स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1997- भारतीय फिल्म उद्योग को उल्लेखनीय सेवाओं के लिए मुंबई अकेडमी ऑफ मूविंग अवार्ड्स से सम्मानित
2000- भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए अमरीका की तत्कालीन प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन के हाथों न्यूयार्क में सम्मानित
2001-भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए स्पेशल स्क्रीन अवार्ड
2003- आइफा का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2005- स्टॉकहोम में नेपाल के पहले नेशनल इंडियन फिल्म फेस्टिवल में विशेष राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित
2010- राष्ट्रीय गौरव अवार्ड
------
सिर्फ 30 रूपए लेकर आए थे मुंबई मुंबई। मुंबई भारतीय सिने जगत में लगभग छह दशक से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले सदाबहार अभिनेता देवानंद को अदाकार बनने का ख्वाब हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पडा था1 26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे धर्मदेव पिशोरीमल आनंद उर्फ देवानंद का झुकाव पिता के पेशे वकालत की ओर नहीं होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्त्रातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज मे पूरी की।

देवानंद आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास पैसे नहीं है और यदि वह आगे पढ़ना चाहते है तो नौकरी कर लें। देवानंद ने निश्चय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों न फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए। जब देवानंद ने पिता से फिल्म इंडस्ट्री में काम करने की अनुमति मांगी तो पहले तो उन्होंने इन्कार कर दिया लेकिन बाद में पुत्र की जिद के आगे झुकते हुए उन्हें इसकी अनुमति दे दी।

वर्ष 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुम्बई पहुंचे तो उनके पास मात्र 30 रूपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था1 देवानंद ने यहां पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे जो देवानंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। देवानंद भी उन्हीं की तरह फिल्म इंडस्ट्री में बतौर अभिनेता काम करने के लिए संघर्ष करने लगे लेकिन इससे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ।

जब काफी दिन यूं ही गुजर गये तो देवानंद ने सोचा कि यदि उन्हें मुंबई में रहना है तो जीवन-यापन के लिए नौकरी करनी पड़ेगी चाहे वह कैसी भी नौकरी क्यों न हो। अथक प्रयास के बाद उन्हें मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में लिपिक की नौकरी मिल गई। यहां उन्हें सैनिको की चिçटयों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। इस काम के लिए देवानंद को 165 रूपए मासिक वेतन मिलना था जिसमें से 45 रूपए वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे।

शनिवार, 19 नवंबर 2011


मम्मी बन गई ऐश .......

रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी

वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़

महाराष्टर कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में
ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झांसी में
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छायी झांसी में
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी
किंतु कालगति चुपके चुपके काली घटा घेर लायी
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायी
रानी विधवा हुई, हाय विधि को भी नहीं दया आयी

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक समानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हर्षाया
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बिरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट फिरंगी की माया
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों बात
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात
उदैपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी रोयीं रनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार
नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान
बहिन छबीली ने रण चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी अंतरतम से आई थी
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी

जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी बढ़ी कालपी आयी, कर सौ मील निरंतर पार
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खायी रानी से हार
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

विजय मिली पर अंग्रेज़ों की, फिर सेना घिर आई थी
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय घिरी अब रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुष नहीं अवतारी थी
हमको जीवित करने आयी, बन स्वतंत्रता नारी थी

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी
यह तेरा बलिदान जगायेगा स्वतंत्रता अविनाशी
होये चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रविवार, 13 नवंबर 2011

बुधवार, 2 नवंबर 2011

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

शनिवार, 24 सितंबर 2011

खबरों को ऐसे भी देखिये

-कलमाडी , चव्हाण बेकसूर : दिग्विजय


मेरी नज़र :- आयं ,अरे पूछ रहे हैं कि बता रहे है हो बिजय जी ..धू महाराज । आप एतना न जादे बकवास करते हैं कि कसम से ई पते नय चलता है कि आखिर ओतना बकवास के बीच आप कुछ बोलते भी हैं कि खाली बकवासे करते हैं । मामा कलमाडी और चचा चव्हाण दुन्नो के दुन्नो मासूम , बेकसूर और , अरे और छोडिए ..माने समझिए कि ..इन्नोसेंट है जी । तो फ़िर जो पिछला दिनों घपटा घटोला हुआ था , अच्छा , वो सब , । अरे ऊ तो इसलिए काहे से कि ..अरे अब आप लोग भी न , एतना एतना पैसा कोई अकेले खाता है कभी
-----
डीएनए परीक्षण से इंकार पर जवाब दें , एन डी तिवारी


मेरी नज़र :-ओह टिवाडी जी इंकार कर दिए , हां तो का करेंगे , पहिले इतना न स्वीकार करते रहे हैं , स्वीकार , अंगीकार , एकाकार , इन द कार , माने हर रूप का कार किए कि मने अघा गया , लो तो माने ई क्या मतलब हुआ , आदमी का मन अघा नय सकता है क्या ? तो अघाते ही इंकार करने लगे हैं ।उनका कहना है कि अब परीक्षण और प्रयोगों से वे दूर रहना चाहते हैं , अब इस उम्र में चाहे छुप कर ही सही डीएनए परीक्षण से अच्छा है कि , कपालभारती करे , इसलिए वे कोई भी स्पष्टीकरण न दे सकेंगे , आप आगे बढें , लेकिन रुकिए अगर आप चाहते हैं कि कोई कुछ बोले ..तो दिग्गी इज देयर ..आलवेज़ रेडी ..ढिंका चिका ढिंगा चिका ए ए ए अरे ए ए ए
-------
मुंबई के हमलावरों को सजा दे पाक


मेरी नज़र :- हा हा हा हा अबे कसाब का मुकदमा पेशावर शिफ़्ट कर रहे हो क्या बे भाई लोगों ..नहीं ..तो मुंबई के हमलावरों को पाकिस्तान क्या घंटा सजा देगा जब साले तुम अपने ही देश में उसे दामाद बना के एक कोर्ट से दूसरा कोर्ट का टूर ट्रिप पे ले कर चल रहे हो बे । और पाकिस्तान का खाक सजा देगा ...जब उनका घर में छुप्पल ..लादेनवा को भी ....अमरीका को ही सजा देना पडा जाके । हुंह्ह .,....मुंबई के हमलावरों को ...अबे किस किस के हमलावरों को उनके हाथों सजा दिलवाओगे ....संसद पर हमलावरों को , मुंबई के हमलावरों को , दिल्ली के हमलावरों को ......पाकिस्तान को पूरा टाईम टेबल बना के दे दो रे
-------
धूल में मिला दिया जाएगा ओसामा का शानदार घर


मेरी नज़र :-नहींईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई .....अईसे ही लादेनवा का टप्पर और पाकिस्तान में उसका फ़ैनवा सब चिचियाया होगा ..लेकिन इससे अलग हमरे दिमाग में तो आयडिया आ रहा रहा है कि ..पाकिस्तान से ई शानदार घर ..भाडा पर ले लिया जाए ..और अपने पडोस के राजकीय मेहमान , श्री अजमल जी कसाब जी ( दिगविजय जी की भावना जी का सम्मान जी करते हुए जी ) को वहां शिफ़्ट करा के उनको होमली फ़ील कराया जाना चाहिए । देखिए मेन बात है कि हमें दुनिया को दिखा देना चाहिए कि हम इंसाफ़ दिलाने के नाम पर एक दरिंदे को पाले रखते हैं ,चाहे उस पैसे से कितने ही भूखों का पेट भर जाए
----------
भारत ने पाक से फ़िर मांगे दाउद समेत पच्चीस वांछित


मेरी नज़र :-मांगो एकदम हक से मांगना ही चाहिए देखे नहीं पिछला कै साल से अमरीका भी पाकिस्तान से लादेन मांग रहा था और पाकिस्तान भी अमेरिका से मांग रहा था ...अरे डॉलर और क्या मांगेगा भिखमंग्गा साला । लेकिन अपना नेताजी लोग को देखिए , भिखमंगा के सामने ही कटोरी ले के बार बार खडे हो जाते हैं ..कभी बीस वांछित तो कभी पच्चीस वांछित ..जईसे ऊ दे ही देगा ..अरे चोट्टा है चोट्टा ..अमेरिका को भी विश्वास नहीं है उसपे ..और आपको तो दईए देगा लप्प से
------
मनरेगा में भ्रष्टाचार लाइलाज : योजना आयोग





मेरी नज़र :- हा हा हा हा ..बाह बाह ..ई हुई न बात ....कभी प्रधानमंत्री जी कभी मोंटेक जी ...इंस्टॉलमेंट में अपना अपना मजबूरी को बयान कर रहे हैं ....क्या बात है वाह ? देखिए जी आयोग जी ...अब आप अपना ये मजबूरी का राग अलापते रहिए ..लेकिन अब जनता ने ई जो आप लोगों का मनरेगा मनोरोग ..जिसको आप लोग लाइलाज बनाए और बताए हुए हैं न चोर जी .....अब जनता आप लोगों के गले में ऐसा जंतर बांध के ऐसा न मंतर फ़ूंकने की तैयारी में हैं कि आप अपने मजबूरी समेत ..लुढक लेंगें ..आखिर क्या किया जाए ..कित्ते न मजबूर हैं आप लोग ...तो घर बैठ जाइए न अब ..जनता सडकों पर आ चुकी है ...और जब जनता सडकों पर आती है न तो नेता सडक पर भीख मांगने लायक भी नहीं बचता .....समज गए न ....नहीं...........मेंटॉस खाओ ..दिमाग की बत्ती जलाओ ,...वर्ना जनता तो जला ही देगी ...
------
सीमा पर फ़िर जुटी चीन की सेना





मेरी नज़र :-भई ये चीन की सेना बहुत मेहनती है जब तब सीमा पर आ जुटती है ...कभी वहां लगे पत्थरों पर लाल रंग से कुछ लिख जाती है ..तो कभी कोई और कारनामा कर जाती है ..और सेना ही क्यों वहां के मानचित्र बनाने वाले भी कोई कम मेहनती नहीं हैं ..वे भी हर साल नया मानचित्र तैयार करते हैं ..जबकि धरती के आकार में कोई बदलाव नहीं होता मगर वे पट्ठे कर डालते हैं ..कभी मणिपुर पेंटिंग बना डालते हैं तो कभी नागालैंड पेंटिंग ..वैसे मुझे लगता है कि इस बार वे जरूर ही भारत की बढी हुई जनसंख्या के कारण ये चैक करने आए होंगे कि हमारा स्कोर कितना हुआ है ...

ये भी सोचिये

आज विश्च अर्थव्यवस्था में बेशक भारत का स्थान और मुकाम ऐसा हो गया है कि उसकी हठात ही उपेक्षा नहीं की जा सकती दूसरा बडा सच ये है कि भविष्य की शक्तशाली अर्थव्यवस्थाओं में भी भारत की गणना की जा रही है देश मेंबढते हुए बाज़ार की संभावनाओं के मद्देनज़र ये आकलन बिल्कुल ठीक जान पडता है आज देश चिकित्सा, विज्ञान , शोध , शिक्षा आदि हर क्षेत्र में निरंतर विकास की ओर अग्रसर है किंतु इसके बावजूद भारत की गिनती धनी संपन्न राष्ट्र में अभी नहीं की जा स्कती है आज भी देश का एक बहुत बडा वर्ग शिक्षा , गरीबी , और यहां तक कि भूख की बुनियादी समस्या से जूझ रहा है । आज भी देश में प्रति वर्ष सैकडों गरीबों की मृत्यु भूख और कुपोषण से हो रही है , जिसके लिए थकहार कर सर्वोच्च न्यायालय को सरकार को सख्त निर्देश देने पडे ।

इस स्थिति में जब आम जनता ये देखती है कि एक तरफ़ सरकार रोज़ नए नए करों की संभावनाएं तलाश कर राजकोष को भरने का जुगत लगाती है । वहीं दूसरी तरफ़ वो संचित राजकोष के धन की बर्बादी के प्रति न सिर्फ़ घोर उदासीन है बल्कि इसमें दोहरी सेंधमारी किए जा रहे हैं । पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक भ्रष्टाचार , घपले , घोटाले किए जाने के लिए एक अजीब सी रेस जैसी लगी हुई है । किसी को न तो किसी कानून का भय है न ही जनता की भावना और विश्वास की फ़िक्र । यदि घपलों -घोटालों को थोडी देर के लिए आपराधिक कृत्य की श्रेणी में रखकर व सभी राजनीतिज्ञों को इसमें सम्मिलित नहीं मानते हुए भी यदि कुछ तथ्यों पर गौर करें तो वो स्थिति भी आज कम भयावह नहीं है ।

समाजसेवा का पर्याय मानी जाने वाली राजनीति आज न तो समाज के करीब रही न सेवा के । भारत जैसे गरीब देश में भी आम चुनाव के नाम पर जितना पैसा खर्च किया जाता है यदि उसका आकलन किया जाए तो लगभग उतने पैसों से कम से कम दो शहरों का संपूर्ण विकास किया जा सकता है । एक वक्त हुआ करता था जब देश के सबसे बडे पदों पर बैठे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक अपने वेतन को हाथ भी नहीं लगाते थे । अब इन आदर्शो और मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है । आज जनसेवा के लिए बने और बनाए ओहदों में से कोई भी वेतन-भत्तों , सुख सुविधा अधिकारों के बिना नहीं है । आज इन तमाम जनप्रतिनिधियों को न सिर्फ़ वेतन के रूप में मोटी रकम दी जा रही है बल्कि यात्रा भत्ता, बिजली , पानी , दफ़्तर का रख-रखाव आदि के नाम पर लाखों रुपए की रियायत दी जाती है । न सिर्फ़ इन जनप्रतिनिधियों पर बल्कि इनसे संबंधित सभी विभागों , संस्थाओं इनसे जुडे सुरक्षा अधिकारियों के लाव लश्कर इत्यादि पर भी भारी भरकम खर्च किया जा रहा है । सबसे अधिक दुख की बात ये है कि सारा खर्च उसी पैसे से किया जा रहा है जो सरकार प्रति वर्ष नए नए कर लगाकर आम आदमी से वसूल रही है ।

इन जनप्रतिनिधियों से आज आम जनता को दोहरी शिकायत है । पहली शिकायत तो ये कि इतना सुविधा संपन्न कर दिए जाने के बावजूद भी ये अपने कार्य और दायित्व को निभाना तो दूर इनमें से बहुतायत प्रतिनिधि तो निर्धारित सत्र तक में भाग नहीं लेते हैं । स्थिति ऐसी है कि प्रति वर्ष विभिन्न सत्रों के दौरान बाधित की जाने वाली कार्यवाहियों का दुष्परिणाम ये निकलता है बनने वाले कानून भी सालों साल लटकते चले जाते हैं या कि जानबूझ कर ऐसे हालात बनाए जाते हैं कि उन कानूनों को पास करने से बचा जा सके । इससे अलग इन विभिन्न सत्रों के दौरान किया गया सारा खर्च व्यर्थ चला जाता है । इस दौरान हुए खर्च का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है इस दौरान कैंटीन में उपलभ्द कराए जाने वाले भोजन की थाली की कीमत पांच या दस रुपए होती है जबकि वास्तव में उसकी कीमत उससे तीस चालीस गुना अधिक होती है । न सिर्फ़ भोजन बल्कि प्रति वर्ष इन जनसेवकों को जाने क्या सोच कर रियायती दरों और मुफ़्त बिजली , पानी , यात्रा आदि की सुविधाएं दी जाती हैं , जबकि इसका हकदार सबसे पहले देश का एक गरीब होना चाहिए ।


अब समय आ गया है कि जनता को , अपने जनप्रतिनिधियों से अपेक्षाएं बढानी चाहिए , उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर कौन सी न्यूनतम योग्यता है वो जो उन्हें आपका प्रतिनिधि बनाने के काबिल बनाती है । इन तमाम जनसेवकों के काम का रिपोर्टकार्ड जनता को तैयार करना चाहिए और उसीके आधार पर उन्हें न सिर्फ़ उनका वेतन , उनके अधिकार बल्कि आगे बने रहने का हक भी , सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता ही निर्धारित करे । अब ये बहुत जरूरी हो गया है कि जनसेवकों को ये समझाया जाए कि देश का प्रतिनिधि वैसा ही रहेगा , करेगा जैसा कि देश की जनता रहती सोचती है । एक सेवक को हर हाल में अब स्वामी और तानाशाह स्वामी बनने से रोकना ही होगा

अस्वाभाविक -असामयिक मौत का सिलसिला ..

अस्वाभाविक -असामयिक मौत का सिलसिला ..




चित्र गूगल से साभार ,माफ़ी सहित लेकिन हकीकत यही है आज




किसी भी दिन का समाचार पत्र उठा कर देखा जाए तो एक खबर जरूर रहती है वो है दुर्घटना , अपराध , बीमारी आदि के चपेट में आकर हो रही अस्वाभाविक मौत की खबरें । पिछले एक दशक में इन मौतों का सिलसिला इतना बढ गया है अब ये एक चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है । भारतीय समाज न सिर्फ़ मानव संसाधन के दृष्टिकोण से बल्कि विशेषकर युवाओं की उपस्थिति के कारण पूरे विश्व समुदाय में महत्वपूर्ण स्थिति में है । ऐसे में सडक दुर्घटनाओं में , नशे और अपराध में बढती उनकी संलिप्तता के कारण तथा खिलंदड व लापरवाह जीवन शैली की वजहों से रोजाना न सिर्फ़ इन आमंत्रित मौतों का सिलसिला बढ रहा है बल्कि इसकी दर इतनी तेज़ गति से बढ रही है कि भविष्य में ये बेहद आत्मघाती साबित हो सकती है ।

इस विषय पर शोध कर रही संस्था "लाईफ़ डिसएपियरिंग " ने पिछले दिनों अपनी सूचनाओं के आधार पर बहुत से चौंकाने वाले तथ्य और आकडे सामने रखे । आंकडों के अनुसार पश्चिमी और पूर्वी देशों में होने वाली अस्वाभाविक मौत के कारण भी सर्वथा भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में नशे की बढती लत , आतंकई घटनाएं , व कैंसर एड्स जैसी बीमारियों की चपेट मेम आकर प्रतिवर्ष हज़ारों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं । इसके अलावा एक बडा और प्रमुख कारण खतरनाक शोध कार्यों व दु:साहसिक खेलों का खतरा उठाना भी रहता है इसमें ।


भारत व अन्य विकासशील देशों में सडक दुर्घटनाओं , मानवीय आपदाओं , आतंकी हमलों के अलावा अपराध मेम लिप्तता के कारण प्रतिदिन सैकडों व्यक्तियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड रहा है । इससे अलग बिल्कुल गरीब और अविकसित राष्ट्रों में गरीबी भुखमरी व कुपोषण भी एक बडा कारण साबित होता है , अस्वाभाविक मौतों के लिए । संस्था बताती है कि आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में अस्वाभाविक मौतों की दर बहुत कम है और इसके मुख्य कारण हैं प्राकृतिक आपदाएं और भूमि विवाद के कारण होने वाले अपराध ।

इसके ठीक विपरीत शहरी समाज अपनी बदलती जीवन शैली , नशे का बढता दखल टूटती सामाजिक परंपराएं व संस्थाएं आदि जैसे कारकों की वजह से अस्वाभाविक मौत को आमंत्रण देता सा लगता है । काम के अधिक घंटे , सडकों पर बीतता ज्यादा समय , नशे की नियमितता और फ़िर उसी नशे की हालत में वाहन परिचालन के परिणाम स्वरूप लगातार लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं । शराब के अलावा धूम्रपान , पान , बीडी , तंबाकू , गुटखा आदि के सेवन की बढती प्रवृति कैंसर ,तपेदिक , जैसी बीमाइयों को न्यौता दे रहे हैं , और चिकित्सा सुविधाओं के अत्यधिक महंगे होने के कारण स्थिति और भी अधिक गंभीर होती जा रही है । विशेषकर युवाओं में इसका बढता चलन सबसे अधिक चिंता का विषय है ।

संस्था बताती है कि इस घटनाक्रम में सबसे अधिक चिंतनीय बात ये है कि इन अस्वाभाविक मौतों का दोहरा परिणाम समाज को झेलना पडता है । जब किसी परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु किसी भी अस्वाभाविक परिस्थितियों में होती है तो परिवार के सदस्यों को गंभीर शारीरिक मानसिक आघात लगता है । संस्था के अनुसार ,पिछले दो दशकों में एकल परिवार का चलन अनिवार्य नियम सा हो गया और इसीलिए जब ऐसे छोटे परिवारों में ,विशेषकर किसी युवा सदस्य की, बच्चों की मौत हो जाती है तो पूरे परिवार में एक बिखराव आ जाता है । कई बार तो ये इतना तीव्र सदमा होता है कि परिवार के अन्य सदस्य के लिए भी किसी अनापेक्षित अस्वाभाविक मौत का कारण बन जाता है ।

किसी भी देश के विकास के लिए ये बहुत जरूरी होता है कि वो अपने मानव संसाधन के समुचित उपयोग के उपाय करे बल्कि उनकी सुरक्षा व सरंक्षण को भी सुनिश्चित करना उसका पहला कर्त्वय है । संस्था ने न सिर्फ़ इसके कारणों व परिणामों पर स्पष्ट विचार रखे बल्कि लगभग चेतावनी वाली शैली में विश्व समुदाय को आगाह किया है कि भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की बढती दर , आतंकी हमलों की संभावना तथा पानी , उर्जा , पेट्रोल आदि की कमी होने जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के मद्देनज़र अभी से गंभीरतापूर्वक इस पर ध्यान दिया जाए ।

संस्था ने इस स्थिति के कारणों पर बारीकी से अधय्यन करने के बाद इसे रोकने , कम करने के लिए बहुत से उपाय सुझाए हैं । संस्था कहती है कि सरकारें आर्थिक लाभ के लिए , सिगरेट , शराब , तंबाकू के उत्पादों का विक्रय करवाती है इसका परिणाम ये हो रहा है कि धीरे धीरे करके पूरा समाज ही नशे की गिरफ़्त में चला जा रहा है । आज भारत में भी स्थिति ऐसी होती जा रही है कि पुरूषों में कोई मद्यपान या धूम्रपान न करता हो तो वो कौतुहल का पात्र बन जाता है । और अब ये चलन बढते बढते महिला समाज में भी घर करता जा रहा है । नई पीढी अपने अभिभावकों को इसमें लिप्त पाकर बहुत पहले ही इसकी शुरूआत कर देते हैं , जिसका परिणाम ये होता है कि बहुत जल्दी ही वो उस सीमा को लांघ जाते हैं जहां से ये जानलेवा साबित होने लगता है । भारत में लगभग ६७ प्रतिशत सडक दुर्घटनाओं की वजह शराब पीकर गाडी चलाना ही है ।


तो यदि इस पर चरणबद्ध तरीके से काबू पाया जाए तो इस दर को काफ़ी कम किया जा सकता है । चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता सुलभ करने से घायल व्यक्तियों के उपचार में तीव्रता आएगी और ये बहुत से उन जानों को मौत के मुंह में से खीच लाएगी जो अब इसके अभाव में प्रतिदिन मर रहे हैं । आपातकालीन व्यवस्था को अचूक और निर्बाध किए जाने पर भी काम किया जाना चाहिए । इसके अलावा और भी बहुत से मुद्दों , जीवन शैली में बदलाव और प्रकृति के सम्मान की परंपरा को बढावा देना , जीवन मूल्यों को समझने और उनका सम्मान किए जाने की भावना को विकसित किए जाने जैसे उपाय बताए । अब देखना ये है कि सरकारें कब चेतती हैं और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए काम करना शुरू करती हैं ।

.आखिर क्यों घिसट रहे हैं मुकदमे

विलंबित न्याय : अन्याय समान ...








अभी कुछ समय पहले जब भोपाल गैस कांड में अदालत का फ़ैसला आया तो इस हादसे को बीते पच्चीस छब्बीस बरस बीत चुके थे । आज भारतीय अदालतों में लगभग साढे तीन करोड मुकदमें लंबित हैं , अगर अभी से आने वाले मुकदमों को बिल्कुल रोक दिया जाए यानि ,.कोई भी नया मुकदमा दर्ज़ नहीं किया जाए तो भी लंबित पडे इन मुकदमों को निपटाने में बरसों लग जाएंगे । किसी भी आजाद देश के लिए , जो कि विकास पथ पर अग्रसर है उसके लिए ये बहुत ही जरूरी हो जाता है कि आम आदमी को सुलभ और त्वरित न्याय दिलाने के लिए राज्य न सिर्फ़ इसका समुचित प्रबंध करे बल्कि इसके लिए दीर्घकारी योजनाएं भी बनाए । अफ़सोस कि आज भी एक आम आदमी को अमूमन तौर पर अपने मुकदमे के निपटारे के लिए निर्धारित समय सीमा का कम से कम ढाई से तीन गुना विलंब तो होता ही है । खुद कानूनविद इसके बहुत सारे कारण मानते और गिनवाते हैं ।

जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड ..जैसे सूत्र का प्रयोग सबसे पहले विलियम पेन्न से संबंधित और विलियम एवर्ट ग्लैड्स्टन द्वारा प्रतिपादित बताते हैं , जो मैग्नाकार्टा के खण्ड -४० में भी परिलक्षित हुई थी । इसका तात्पर्य ये है कि - " पीडित को युक्तियुक्त समय के भीतर न्याय सुलभ होना चाहेइ । समय से न्याय न मिलना, व्यवहारत: न्याय से वंचित करने जैसा ही है । जबकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९ मे राज्य और प्रशासन से ये अपेक्षा की गई है कि वह सभी नागरिकों को समान न्याय व नि:शुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराए , और अफ़सोस व दुख की बात ये है कि दोनों ही दृष्टिकोण से राज्य इसमें बुरी तरह से असफ़ल रहा है । आज भारतीय न्यायिक व्यवस्था , मुकदमों के बोझ , और विधायिका एवं कार्यपालिका के नकारेपन के कारण आम नागरिकों की बढी अपेक्षा के बीच जैसे चरमरा सी गई है ।

कानूनविद और विधि विशेषज्ञ अपने अध्ययन के आधार पर भारतीय न्यायपालिका की कच्छप गति के लिए कुछ विशेष कारणों को ही जिम्मेदार मानते हैं । इनमें सबसे पहला कारण खुद सरकार ही है । यहां ये बताना समीचीन होगा कि , देश में आज लंबित लगभग साढे तीन करोड से ज्यादा मुकदमों के लिए खुद सरकार ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है , क्योंकि इन लंबित मुकदमों में से एक तिहाई मुकदमों में सरकार खुद एक पक्ष है । विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि , सरकार को अविलंब ही इस दिशा में काम करना चाहिए और न सिर्फ़ फ़ालतू व जबरन दर्ज़ किए कराए मुकदमों को वापस लिए जाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए बल्कि एक ऐसी व्यवस्था भी करनी चाहिए , एक स्क्रूटनाइज़ेशन जैसी व्यवस्था जो अपने स्तर पर जांच करके , सरकार को वादी प्रतिवादे बनने से बचने में मदद करे और अनावश्यक अपील करके उसे लंबा करते चले जाने में भी ।



विधिवेत्ता मानते हैं कि भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी भी निरपराध को सज़ा से बचाने के लिए बहुस्तरीय न्याय व्यवस्था का प्रावधान किया गया । ये न सिर्फ़ मुकदमों के निस्तारण को बेहद धीमा बल्कि इसे बहुत खर्चीला भी बना देता है । एक आकलन के अनुसार , यदि किसी मुकदमे को अपने सारे स्तरों से गुजरना पडे तो को मौजूदा स्थितियों में कम से कम पांच से आठ वर्षों का समय लगना तो निश्चित है । बढती जनसंख्या और उससे भी ज्यादा समाज में बढते अपराध , लोगों का अपने विधिक अधिकारों के प्रति सजगता में आई तेज़ी , देश में अदालतों और न्यायाधीशों की घोर कमी , अधीनस्थ न्यायालयों में ढांचागत सुविधाओं क अघोर अभाव , न्यायाधीशों व न्यायकर्मियों को मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण उनकी कार्यकुशलता तथा मनोभावों पर पडता नकारात्मक प्रभाव , न्यायपालिका में तेज़ी से बढता भ्रष्टाचार , आदि कुछ ऐसे ही मुख्य कारण हैं जिन्होंने अदालती कार्यवाहियों को दिन महीनों की तारीखों में उलझा कर रख दिया है ।


हालांकि , न्यायप्रक्रिया को गति प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने पिछले वर्ष राष्ट्रीय वाद नीति की शुरूआत की है और अभी हाल ही में कानून मंत्री ने मिशन मोड योजना जैसे कार्यक्रमों की शुरूआत की है , लेकिन विधि विशेषज्ञ इनसे बेहतर कुछ उपाय अपनाने की ओर ईशारा करते हैं । कानूनविद मानते हैं कि सरकार को सबसे पहले देश में ज्यादा से ज्यादा अदालतों के गठन के साथ ही , न्यायाधीशों की नियुक्ति , रिक्त स्थानों को भरने की तुरंत व्यवस्था करनी चाहिए । आज मुकदमों के निस्तारण के लिए भारतीय न्यायपालिका द्वारा अपनाए जा रहे सभी वैकल्पिक उपायों , जैसे , मध्यस्थता की प्रक्रिया , लोक अदालतों का गठन , विधिक सेवा का विस्तार , ग्राम अदालतों का गठन , लोगों में कानून एंव व्यवस्था के प्रति डर की भावना जाग्रत करना , प्रशासन द्वारा अपराध की रोकथाम हेतु गंभीर प्रयास , अदालती कार्यवाहियों में स्थगन लेने व देने की प्रवृत्ति में बदलाव , अधिवक्ताओं द्वारा हडताल , बहिष्कार जैसी प्रवृत्तियों को न अपनाए जाने के प्रति किए जाने वाले उपाय आदि से अदालत में सिसक और घिसट रहे मुकदमों में जरूर रफ़्तार लाई जा सकेगी , लेकिन ऐसा कब तक हो पाएगा ये बहुत बडा प्रश्न है ।

लो फ़िर दे गया आदेश

लो फ़िर दे गया आदेश किसी को , कोई पाकिस्तानी आका ,
अजमल , अफ़ज़ल , को ज़िंदा रखो , करें रोज़ शहर में धमाका


राजा , कलमाडी , मोझी , रेड्डी , और आज गए अमर ,
अजब देश की गजब कहानी , जेल में अब सिर्फ़ नेता आते नज़र .
बहिन जी का जुत्ती आया , धर के हवाईजहाज ,
विकीलीक्ज़ को आगरा भेजो , खोल दिहिस सब राज़ ...
आजकल बस एक ही बात , इकदूजे से ,पूछें जेल के संतरी ,
कित्ता स्कोर हो गया टोटल , अबे कितने आ गए मंतरी ...
लो फ़िर दे गया आदेश किसी को , कोई पाकिस्तानी आका ,
अजमल , अफ़ज़ल , को ज़िंदा रखो , करें रोज़ शहर में धमाका ...
कै ठो नयका प्रपोजल ले के ,पिरधान जी,चले थे ढाका ,
रूठ के ममता बैठ गईं , लुट गए मोहन काका ...
अमर जी मांगे थे छूट , रे हमरी एक किडनी है फ़ेल ,
अदालत बोली , एक किडनी वाले भी जा सकते हैं जेल .....
तुम कमज़ोर , हो कायर भी , निर्दोंषों को छुप कर देते मार ,
तुम निश्चिंत , तुम बेफ़िक्र , क्योंकि फ़िर बचा लेगी सरकार ,
आम आदमी ही बस क्यों रहता , निशाने पर हर बार ,
कभी उन्हें भी मौत दो , जो देते तुम्हें हथियार ......
कोई घडियाली टसुए बहा रहा होगा ,
क्या किया , क्या करना है , बता रहा होगा ,
कल वही , उसी हैवान की बगल में ,
किसी ज़ेल में भी , कहकहे लगा रहा होगा
अब क्यों सुनें और क्या सुनें तुम्हारी ,
तुम्हारी ही सुन कर तो इतने जीवन बर्बाद हुए ,
अबे छोडो , हर बार वही बकवास करते हो , तुमसे तो,
नए जुमले भी अब तक नहीं ईज़ाद हुए .




पिरधान जी पिरेसान थे , केतना सताया टू जी ,
ये जी जी की आदत गले पडे ,अब आ गए हू जी

”काम करने से नहीं, चमचागिरी से बची रहती है नौकरी”

‘मूंगफली तोड़नी नहीं और पगार छोड़नी नहीं’ के सिद्धांत पर चलने वाला कर्मचारी ही जीवन में सच्चे कामचोर का दर्जा पा सकता है। हालांकि इससे नुकसान होते हैं, लेकिन कामचोरी जैसे परम आनंद के आगे सबकुछ फीका पड़ जाता है। यही काम अगर बॉस की निगरानी, कहने का मतलब शागिर्दी में हो, तो क्या कहना। हनुमंत शुक्ला ऐसे ही बॉस हैं, जिन्हें ‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं’ की उपाधि और उपलब्धि इंटर में पढ़ाई के दौरान ही हासिल हो गई थी। नौकरी में आते-आते आलसी भी हो गए। आलसी भी इतने कि सड़क पर उबासी लेने के दौरान कोई बदतमीज चिड़िया अगर बीट कर दे, तो जब तक नगर निगम का कर्मचारी माफी मांगने के साथ उनका मुंह न धुला दे। आगे नहीं बढ़ते। कई बार ऑफिस लेट आने का हनुमंत शुक्ला का यह बहाना मैनेजमेंट के सामने बिलकुल सटीक बैठा है, ‘क्या बताऊं, आज मेरा पैर गऊ माता के द्रव्य प्रसाद पर पड़ गया, इसलिए मीटिंग में नहीं आ सका।’ इस पर कोई यह सवाल भी दाग सकता है, ‘पैर धोकर भी आ सकते थे ऑफिस। भाई कौन ऐसे अपवित्र हो गए थे कि गंगा नहाने जैसा काम करना पड़ा। ‘ … लेकिन बॉस होने के कारण हनुमंत शुक्ला को समझाना हाथी को बाथरूम में नहलाने जैसा है। अगर कोशिश करूं तो हाथी को बाथरूम में नहला भी सकता हूं, लेकिन बॉस को समझाना…। ‘न बाबा ना, क्योंकि बॉस इज ऑलवेज राइट। अगर बॉस अनजाने ही घोड़े को घोड़ी कह दे, तो बॉस को समझाने की बजाय घोड़े का लिंग बदलवाना ज्यादा फायदे का सौदा होता है।

कर्मचारी का चोला उतारकर बॉस का पद पर पाए ज्यादा दिन नहीं हुआ है। हनुमंत शुक्ला बॉस होने के साथ थोड़े दिन इस अकड़ में रहे कि ‘मैं बॉस हो गया हूं।’ थोड़े दिनों तक हनुमंत शुक्ला ने अपने जूनियर और सबोर्डिनेट के सामने ऐसी हनक दिखाई कि उनका टैरर मैनेजमेंट को खुश कर गया। उन्हें देखकर लोग जल्द ही बॉस की परिभाषा कुछ इस तरह देने लगे, ‘थोड़ी सी अकड़ + बदतमीजी + प्रमोशन से दिमाग खराब = बॉस होता है।’ जल्द ही हनुमंत शुक्ला का यह भ्रम टूट गया, जब जबरदस्त पैरवी पर उनके भी बॉस आ गए। व्यवहार मे वे उसके भी बॉस या कहें बाप निकले। यही से हनुमंत का अंगुलिमाल की तरह हृदय परिवर्तन हो गया। … और बहुत जल्द उन्हें यह अहसास हो गया कि आखिरकार मैं भी एक कर्मचारी हूं। कहावत भी है, ‘कुत्ते के दिन आते हैं और जाते भी है और ऊंट की औकात तब तक, जब तक कि उससे ऊंचा पहाड़ नहीं मिलता।’

बस यहीं से हनुमंत ने अपने बॉस को मक्खन लगाना शुरू कर दिया। और देखते-देखते वे फिर से आला दर्जे के कामचोर हो गए। जल्द ही ‘मूंगफली तोड़नी नहीं, पगार छोड़नी नहीं’ के सिद्धांत को नैतिक शिक्षा की तरह अपने जीवन में उतार लिया। इस तरह हनुमंत से बॉस और जूनियर दोनों खुश। पिछले तीन साल से वे एक ही जगह टिके हुए हैं, बिना कोई काम किए। साथ में तीन प्रमोशन भी मिल चुका है। हनुमंत को प्रमोशन क्यों और कैसे मिले? यह सवाल कौन बनेगा के लिए सुरक्षित है, जिसमें प्रतियोगी से सवाल किया जाएगा। हनुमंत शुक्ला को प्रमोशन को प्रमोशन किस आधार पर मिला?

ऑप्शंस
ए- चाटुकारिता
बी- चमचागिरी
सी- मक्खनबाजी
डी- इनमें से सभी
इस अंतिम सवाल का सही जवाब देकर एक प्रतियोगी करोड़पति हो जाएगा।

खैर, अब हनुमंत शुक्ला के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए उनके जूनियर भी चमचागिरी के नए पायदान चढ़ रहे हैं। और जो नहीं चढ़ रहे हैं, उन्हीं के दम से ऑफिस की इज्जत बची पड़ी है। वरना हनुमंत अपने बॉस की नजर में कुख्यात कर्मी हैं और उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का खिताब भी मिल चुका है। दरअसल, हनुमंत काम करने के दौरान काम चालू रखने का ऐसा माहौल तैयार करते हैं और इस दौरान खूब शोर करते हैं। इस गलती पर इस चीखे, उस गलती पर उस पर चीखे… यह सब करने के दौरान काम ठप पड़ जाता है। इससे साथी कर्मियों और मैनेजमेंट को लगती है कि यही शक्स काम कर रहा है, बाकी सब कामचोर हैं। उन्होंने जो कुछ अनुभव किया, सब अपने जूनियरों को भी सिखा दिया। सीखने-सिखाने का सिलसिला जारी है।

आज ही की घटना को लीजिए। आज हनुमंत शुक्ला ऑफिस में लेट आए। उनके साथी सक्सेना जी ने कहा, ‘सर आपको याद कर रहे हैं।’ हनुमंत भी मूड में थे, सो झनझनाती जवाब भी दे दिया। ‘याद स्वर्गीय को किया जाता है, हम तो अभी जिंदा हैं सक्सेना। सर मुझसे मिलना चाहते होंगे।’ ‘ हां-हां’ कहते हुए सक्सेना हनुमंत के सेंर ऑफ ह्यूमर को ताड़ गए और बेवजह ही ठहाका मार कर हंस पड़े।

उधर, हनुमंत बॉस के कमरे में 12.20 मिनट पर बदहवास दाखिल हुए और बोले, ‘सर गुड मॉर्निंग’ यह सुनकर बॉस को गुस्सा आया, आटे में नमक की तरह। यहां तक तो ठीक था, लेकिन वाटर प्रूफ से लैस बॉस के हाथ में बंधी घड़ी, भरी दोपहरी में 12.20 मिनट पर ‘सर गुड मॉर्निंग’ सुनकर पानी-पानी हो गई, गनीमत रही कि खराब नहीं हुई।

इस बीच सुपर बॉस बोले, ‘क्या इरादा है’ हनुमंत तुरंत बोल पड़े, ‘सर सेलरी मिलते ही गर्मी की छुट्टियों में घूमने जाने का इरादा है।’ यह सुनते ही सुपर बॉस की आंखों में चमक आ गई। बोले, ‘ भई हनुमंत मेरे बीवी, बच्चों का भी टिकट करवा देना। मैं भी तुम्हारे साथ चला चलूंगा।’

‘ हो जाएगा सर’। यह कहते हुए हनुमंत सुपर बॉस के केबिन से बाहर निकले और काम में तल्लीन सक्सेना जी को टोकते हुए कहा, ‘सक्सेना जी मैं कुछ दिनों के लिए छुट्टियों पर जा रहा हूं, ऑफिस की जिम्मेदारी मुझ पर है।’

इतना कहने के साथ ही हनुमंत शुक्ला ऑफिस से ऐसे गायब हो गए, जैसे दिन में तारे। ठीक 5 मिनट बाद अपने केबिन से निकले और काम में तल्लीन सक्सेना जी को बिना कोई आदेश दिए निकल गए। सक्सेनाजी ठगे से रह गए। साथियों ने सक्सेना से सहानुभूति जताने की बजाय उन्हें हिकारत भरी नजर से देखा और सभी बाहर निकल गए सुपर बॉस के साथ हनुमंत शुक्ला को हैप्पी जर्नी कहने…

बहाने .......

ऑफिस से छुट्टी लेने का हुनर सबको नहीं आता, इसीलिए शातिर कर्मचारी तो अपने बॉस को आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं और जिन्हें छुट्टी नहीं मिलती, वे होते हैं शराफत अली या फिर कोई सज्जन कुमार। इनके उलट दो होनहारों तेज प्रकाश और योग्य कुमार को ही ले लीजिए। ऑफिस में काम नहीं करने के मामले में तेज प्रकाश को तेजी हासिल है, तो योग्य कुमार को योग्यता। कभी-कभार ऑफिस में सख्ती हुई भी तो ये अपने हुनर का जलवा पेशकर अपने आपको आसानी से बचा ले जाते हैं। जब कभी इन दोनों को लगता है कि इन्हें काम करना ही पड़ेगा, तो नाना-नानी और दादा-दादी तक को श्रद्धा से याद करना शुरू कर देते। इसलिए नहीं कि श्राद्ध शुरू होने वाले हैं और वे अपने पूर्वजों तक को याद करेंगे, बल्कि काम नहीं करने के बहाने के तौर पर वे किसी की मौत से लेकर श्राद्ध तक का बहाना लिखित में शर्ट की ऊपर वाली जेब में रखते हैं। यही बहाने अगर बॉस को मूर्ख बनाने में खरे उतरे तो ठीक, वरना बहानों की कोई कमी नहीं है।
योग्य कुमार और तेज प्रकाश ने एक बार खुलेआम दावा किया था कि उनके पास ऑफिस में लेट पहुंचने के लिए 120 और झूठ बोलने के 300 तरीके हैं। यकीन मानिए, इन दोनों का आकड़ा जाकर 420 पहुंचता है। इन दोनों की एक खूबी यह भी है कि ये अपने चाहने वालों को भी छुट्टी लेने का फॉर्मूला बताते रहते हैं। ऐसे में पूरा ऑफिस ही इन दोनों की मुट्ठी में रहता है। कहने का मतलब काम को कुछ इस तरह करते हैं कि काम को भी इस बात का पछतावा होता है, ‘हाय किन हाथों में फंस गया।’ काम नहीं करने के मामले में इन दोनों ने जाने-अनजाने ही कितने रिकॉर्ड बनाए होंगे, मगर अफसोस इनकी उपलब्धि के प्रदर्शन के लिए इनकी कोई किताब पब्लिश नहीं हुई है। अभी कुछ ही दिन हुए हैं। बॉस ने तेज प्रकाश और योग्य कुमार को अपने केबिन में बुलाया। यह तो तेज प्रकाश की तेजी और योग्य कुमार की योग्यता का नमूना भर है कि बॉस ने बुलाया सुबह, लेकिन दोनों पहुंचे शाम को वह भी हांफते हुए। इस समय बॉस घर जाने की तैयारी में थे। दोनों ने देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर केबिन में घुसते ही तकरीबन 60 डिग्री आगे की ओर झुकते हुए प्रणाम किया, ऐसा करता देख बॉस त्रिपाठी एक पल को घबरा गए। हालांकि, चापलूस पसंद बॉस की तरह त्रिपाठीजी को इन दोनों का यह अंदाज खुश कर गया। लेकिन मिजाज से खड़ूस होने के चलते चेहरे पर वही पुरानी तरह की मुर्दनी छाई रही, जैसे किसी ‘चौथा-उठाला’ में गए शख्स की भूखे लौटने के बाद होती है। बॉस के चेहरे पर कुछ देर तक यूं ही मुर्दनी सी छाई रही। फिर संभलते हुए बोले, ‘सुना है तुम दोनों ऑफिस में ठीक से काम नहीं करते।’ तेज प्रकाश को इस सवाल के बारे में पूर्व से ही जानकारी थी, इसलिए तुरंत इसका जवाब भी दे दिया। ‘सर, सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा नहीं करते।’ बॉस यह सुनकर चुप हो गए, क्योंकि कितना भी शातिर से शातिर बॉस इसका जवाब देने से पहले सोचेगा। अब बारी योग्य कुमार की थी। योग्य कुमार कुछ इस तरह महसूस कर रहे थे, जैसे कटघरे में खड़े हत्या के आरोपी की फांसी की सजा माफ होने के साथ वह बाइज्जत बरी होने वाला हो। योग्य कुमार बोले, ‘लगता है किसी ने हमारे खिलाफ आपके कान भरे हैं।’ बॉस के चेहरे पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं देख योग्य कुमार तुरंत बोले, ‘सर आपको उल्लू बनाया गया है। इतना सुनते ही बॉस की आंखों के आगे बहुत से उल्लू घूमने लगे और मन ही मन स्वर्गीय पूज्य पिताजी को याद कर सोचने लगे कि कहीं वे ‘उल्लू के पट्ठे’ तो नहीं हैं। तभी तेज प्रकाश ने बात संभालते हुए कहा, ‘कहने का मतलब। हम तो बस यही कहना चाहते हैं कि लोग हमारे खिलाफ आपके कान भरते हैं।’ इसके बाद दोनों बॉस के केबिन से बाहर आ गए।
ऑफिस में तेज प्रकाश और योग्य कुमार का वही जलवा है, जो कॉंन्ग्रेंस पार्टी में राहुल गांधी का। क्या कहा? आपको यकीन नहीं आता। … तो इसमें मैं क्या करूं। यह आपकी समस्या है, सुनते हैं इसका कोई इलाज भी नहीं है। खैर, आगे सुनिए। … इस ऑफिस में तैनात छेनू चपरासी बॉस को भले ही पानी पिलाना भूल जाए, लेकिन बड़े-बड़ों को पानी पिलाने का माद्दा रखने वाले तेज प्रकाश और योग्य कुमार को पानी पिलाना कभी नहीं भूलता। ये दोनों जैसे ही ऑफिस पहुंचते हैं, पानी का ताजा गिलास लिए छेनू हाजिर हो जाता है। आज बॉस से निपटकर या कहें निपटाकर दोनों जैसे ही अपनी सीट पर बैठे तभी मुंह लटकाए छेनू योग्य कुमार और तेज प्रकाश के पास पहुंच गया। लगभग रोते हुए छेनू बोला, ‘साहब दो दिन की छुट्टी चाहिए, लेकिन बास ने साफ इनकार कर दिया है।’ सामने कुर्सी पर दोनों लोगों की त्योरियां चढ़ गईं। योग्य कुमार बोले, ‘ऐसा कैसे हो सकता है। छुट्टी पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। इस अधिकार से तुम्हें कोई वंचित नहीं कर सकता।’ इसके बाद योग्य कुमार ने पान मुंह

में कुचरकर कुछ इस तरह थूका, जैसे कोई गुस्सा थूकता है। लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में तेज प्रकाश ने ऐसा कुछ नहीं किया और अपना गुस्सा पान की पीक के साथ गटक गए। इसका मतलब तेज प्रकाश ने अपना गुस्सा पी लिया। दोनों कुछ देर तक गहन मुद्रा में कुछ सोचते रहे फिर योग्य कुमार ने मोर्चा संभालते हुए कहा, ‘पहले तो बॉस को जीभर के गालियां दो।’ फिर क्या था। हरि इच्छा मानकर छेनू ने बॉस को जीभर के गालियां दीं, बीच में उमस भरी गर्मी में थकान हुई तो एक गिलास पानी पी लिया। छेनू की गालियां खत्म हुईं तो उसका चेहरा विश्व विजेता की तरह चमक रहा था। इस दौरान कोई एड मेकर इस समय होता तो छेनू को एनर्जी ड्रिंक के एड के लिए बतौर मॉडल साइन कर लेता। मगर दुर्भाग्य… छेनू का नहीं… एड मेकर का दुर्भाग्य भाई…।

थोड़ी देर तक माहौल में शांति रही। अब बारी योग्य कुमार की थी। तुरंत छेनू को गुरुमंत्र दिया, लेकिन यह भी हिदायत दी कि इसकी चर्चा बॉस बिरादरी के लोगों से मत कर देना, नहीं तो हमारा कुछ नहीं तुम्हारी नौकरी पर जरूर बन आएगी। योग्य कुमार ने कहना शुरू किया, देखो छुट्टी दो की बजाय तीन दिन की ले लेना वो भी बिना बताए। चौथे दिन ऑफिस आने से पहले एक धार्मिक स्थल पर बिकने वाला मिठाई का खाली डिब्बा मुझसे ले लेना और उसमें छन्नू हलवाई की मिठाई खरीदकर पैक कर लेना और पूरे ऑफिस में यह कहकर बांट देना कि फलां धार्मिक स्थल पर गया था, प्रसाद लाया हूं। सबसे पहले बॉस को ही खिलाना और तुम्हारा काम हो जाएगा।
छेनू को यह मंत्र देने के बाद दोनों ने ऑफिस में दो घंटे काम किया और ओवरटाइम का फॉर्म भरकर निकलने ही वाले थे कि छेनू अदरक और इलायची के टेस्ट की चाय लिए सामने खड़ा था। इसके जो हुआ आप भी जानते हैं। फिर भी लिख देता हूं। चाय पीने के साथ तेज प्रकाश और योग्य कुमार ने एक-एक घूंट के साथ बॉस को 10-10 गालियां दीं और ऑफिस की ओर देखकर सोचने लगे कल फिर आना है इस ऑफिस पर एहसान करने….।

गाड़ी चलानी नहीं, इसे आग लगानी है!

स्कूल में पढ़ा था: प्यार “अंधा” होता है, और यह प्यार अगर सत्ता और कुर्सी के लिए हों, तो वह “बहरा”, “लूला” और “लंगड़ा” भी हो जाता है। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ 120 करोड़ की आबादी, वैसे पांच साल तक चिल्लाती तो जरुर है, सरकार के खिलाफ, शासन के खिलाफ, सत्ता के दलालों के खिलाफ, लेकिन जब “फैसले” का वक़्त आता है तो भीगी बिल्ली की तरह दुबक जाती है। पिछले 65 सालों से यही होता आया है, और आगे भी होता रहेगा

इन दिनों फेसबुक पर एक चुटकुला बहुत घूम रहा है। एक युवक दिल्ली के एक पेट्रोल पम्प पर अपनी गाड़ी लेकर पहुंचा… पम्प के कर्मचारी ने बड़ी ही विनम्रता से पूछा: “कितने का पेट्रोल डाल दूं?” युवक अपने आंसू पोछते हुए बोला, “अरे यार 20-25 रुपये का पेट्रोल इधर-उधर गाड़ी पर छिड़क दो, चलानी नहीं, इसे आग लगानी है!”
पम्प का कर्मचारी अचंभित रह गया, लेकिन सांस खींच कर बोला:”भगवान का शुक्र है, मेरे पास गाड़ी नहीं है, नहीं तो अपने बाल-बच्चों के साथ उसे भी जलाना पड़ता।”

यह चुटकुला दरअसल बढ़ती मंहगाई में लोगों की बदलती सोच को दिखाता है। हकीकत भी यही है… इस देश के प्रधान मंत्री विश्व के सभी प्रधानमत्रियों या राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में भले ही न्यूनतम वेतन लेने का दावा करते हों, लेकिन देश का हरेक आदमी 24 घंटे की दिन-रात में कितनी बार जीता है और कितनी बार मरता है, उसने यह गिनती करना भी छोड़ दिया है क्योंकि- बाकि जो बचा महंगाई मार गयी.

आंकड़े कहते हैं कि सिंगापुर के प्रधान मंत्री सबसे ज्यादा कमाने वाले नेताओं की लिस्ट में टॉप पर हैं। उन्हें अपने देश के प्रति व्यक्ति जीडीपी का 40 गुना वेतन मिलता है। उनकी तुलना अगर भारतीय प्रधानमंत्री से की जाए तो मनमोहन सिंह दुनिया के उन नेताओं में से हैं जिन्हें बहुत ही कम पैसे मिलते हैं। उनकी सैलेरी महज 4,104 डॉलर है। अमेरिका के राष्ट्रपति को प्रति माह 4 लाख डॉलर मिलते हैं जो कि उनके देशवासियों की प्रतिव्यक्ति आय का लगभग 10 फीसदी है। चीन के सवोर्च्च नेता को 10,633 डॉलर मिलते हैं।

लोग कहते हैं कि डॉ. मनमोहन सिंह भारत के अब तक के सबसे अनोखे “प्रधानमंत्री” हैं। वे एक कुशल राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे विद्वान, अर्थशास्त्री और विचारक भी हैं। एक मंजे हुये अर्थशास्त्री के रुप में उनकी ज्यादा पहचान है। अपनी कुशल और ईमानदार छवि की वजह से सभी राजनैतिक दलों में उनकी अच्छी साख है। लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं जिन्हें पांच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है। उन्होंने 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी।

परन्तु, सन 1971 से 2011 तक यमुना का जल कई बार उत्प्लावित हुआ जब मनमोहन सिंह भारत के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहींदेखा. सन 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डा. सिंह भारत के वित्त मंत्री बने। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है।

निःसंदेह एक वित्त मंत्री के रूप में जब उन्होंने अपना कार्यभार संभाला तो उन्हें एक ऐसी अर्थव्यवस्था मिली जो दीवालिया थी। विदेशी मुद्रा कोष पूरी तरह खाली था। देश की ऋण साख गंभीर संदेह के घेरे में थी। लेकिन उन्होंने अर्थव्यवस्था को बदल दिया और यह सुनिश्चित किया कि यह दीवालिया अर्थव्यवस्था जो उन्हें विरासत में मिली है, विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जाए। परन्तु, अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर विख्यात प्राध्यापक को आज क्या हों गयाहै? यह मैं नहीं पूरा देश पूछ रहा है.

बहरहाल, भूकंप के बाद भूस्खलन और तेज बारिश के चलते हिमालय की गोद मे बसे उत्तर-पूर्व के राज्य सिक्किम मे राहत और बचाव का कार्य गति नहीं पकड़ पा रहा है। इसके कारण राज्य में मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। सेना, सीमा सड़क संगठन सहित राहत के कार्य मे जुटी एजेंसियों को आगे बढ़ने मे भारी बाधाएं आ रही है। राज्य मे नुकसान का सही अंदाजा अभी तक नहीं लगाया जा सका है। बिहार मे मृतकों की संख्या बढ़कर 12 हो गई है, जबकि पश्चिम बंगाल मे सात लोग मारे गए हैं।

लेकिन हमारे माननीय प्रधान मंत्री डा० मनमोहन सिंह की प्राथमिकता, संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक मे भाग लेना है। वे न्यूयॉर्क के लिए रवाना हो रहे हैं, जापान के प्रधान मंत्री नोडा से मिलना, लीबीया के बागी सरकार को मान्यता देना और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार उनके एजेंडा मे है|

सिक्किम जाकर डॉ० सिंह अब अपने जख्मों को फिर हरा नहीं करना चाहते क्योंकि, पिछले कुछ महीने से उनकी छवि, उनकी सरकार और उनकी पार्टी हाल के भूकंप से भी ज्यादा जबरदस्त झटके खा चुकी है। अपनी छवि की इमारत मे दरार पड़ते उन्होंने खुद देखा है। अपनी सरकार की विश्वसनीयता को ढहते महसूस किया और अपनी पार्टी की साख जनता की नजर मे गिरते हुए देखा है।

जहां एक तरफ भ्रष्टाचार के भूकंप ने मनमोहन की सरकार को हिला दिया, वहीं महंगाई के भूस्खलन ने आम आदमी को दबा दिया। यह भ्रष्टाचार रूपी ज़लज़ला थमा नहीं, कि उच्चतम न्यायालय ने 2-जी, काले-धन जैसे मामलों मे एक के बाद एक झटके दिए।

सिक्किम और अन्य पूर्वोतर प्रदेशों मे तो बस इतना ही हुआ, लेकिन यूपीए सरकार को तो एक भयंकर तूफ़ान का भी सामना करना पड़ा, जिसका नाम था अन्ना हजारे। यह तूफ़ान नहीं ज्वालामुखी है, जो दुबारा फट सकता है, चूँकि भ्रष्टाचार का लावा अभी भी उबल रहा है। इस स्वयं आमंत्रित आपदा मे राहत के लिए कोई सेना नहीं आएगी, ना कोई बाहर से मदद मिलेगी। अब तो अमेरिकी कांग्रेस जो कभी डॉ० सिंह को भारत के तारणहार कहता थकता नहीं था, वह भी मोदी की दुहाई देने लगा है। यूपीए अध्यक्ष विदेश मे सर्जरी के लिए क्या चली गईं, कांग्रेस को महसूस होने लगा कि औरत ना हो तो चार दिन मे घर का क्या हश्र होता है। इतने बडे भ्रष्टाचार के प्रकरण के बाद भी अपनी सरकार मे, अपनी पसंद का फेर-बदल भी नहीं कर पाए। रेल दुर्घटना होती है तो मंत्री घटना स्थल पर जाने से इनकार करते हैं|

घर मे चैन ना मिला तो, बंगलादेश की ओर रुख किया, लेकिन वहाँ भी ममता का साथ ना मिला। ‘ ना देश मे समता, ना पड़ोस मे ममता ‘ बेचारे डॉ० सिंह करें तो क्या करें? वे अपनी सीमाओं को समझते हैं, जानते हैं कि राजतिलक हुआ है, मगर वो राम नहीं भरत हैं। सिंहासन पर तो भगवन के खड़ाऊ रखे हैं और राम का इंतज़ार हो रहा है। परन्तु राम भटक रहे हैं वन-वन, कभी भट्टा परसौल, तो कभी महाराष्ट्र के मावाल में तलाश रहे हैं, जन समर्थन रूपी सीता को| समझ नहीं आ रहा कि किससे लड़ें? विरोधी के प्रधान मंत्री उम्मीदवार भी तो दशानन रूपी हैं, कभी मोदी, कभी सुषमा, कभी जेटली, तो कभी राजनाथ| एकमात्र संकटमोचक प्रणब मुखर्जी अकेले किन-किन दैत्यों से लड़ेंगे? और फिर साथ देने वालों पर कहाँ तक भरोसा करें? शरद पवार पर या करूणानिधि पर, जिन्होंने यह पूछने पर भी संकोच नहीं किया कि,”राम ने किस इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री हासिल की?” ऐसे मे डॉ० सिंह क्या करें, ना करें? स्थिति भरत की, परन्तु विडंबना भीष्म पितामह जैसी। ऐसे मे तो एक ही मार्ग है, मोहमाया से या कम से कम, मायावती और जयललिता से दूर भागो। सिक्किम जाकर अपने जख्मो को क्यों ताजा करें? चलें दूर गगन की छांव में- ‘अमेरिका में’। संयुक्त राष्ट्र में क्या पता हिना रब्बानी खार ही उन जख्मों पर मरहम लगा दे|

आप इंदिरा जी की रसोई संभालती थीं, लेकिन इसे अपनी तारीफ समझ मुझे माफ कर दें

कहते हैं मूर्ख शुभचिंतक एक दुश्मन से भी ज्यादा खतरनाक होता है। राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटील को पिछले दिनों ऐसे ही एक मूर्ख शुभचिंतक से वास्ता पड़ गया। राजस्थान की गहलौत सरकार में वक्फ और राजस्व मंत्री का पद संभाल रहे अमीन खां ने राष्ट्रपति की तारीफ में ऐसे-ऐसे कसीदे पढ़े कि खुद उन्हें भी नहीं समझ आया कि उनकी तारीफ हो रही है या खिंचाई।

चलो माफ किया: राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल

अमीन खां ने इस साल फरवरी में एक सभा में कह डाला था कि प्रतिभा पाटील तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रसोई में काम करती थीं और उनकी इन्हीं सेवाओं की बदौलत वे आज देश के सर्वोच्च पद पर हैं। इस बयान के बाद जयपुर से लेकर दिल्ली तक बावेला मच गया था और आखिरकार अमीन को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। अशोक गहलोत ने खान से इस्तीफा मांग लिया था।

लेकिन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की ‘तारीफ’ को लेकर मंत्री पद खो चुके अमीन खां ने सोमवार को राजभवन जाकर राष्ट्रपति से माफी मांग ली। अमीन ने कहा कि वे बहुत पढ़े-लिखे नहीं हैं और उन्होंने पाटील को अपमानित करने की नीयत से कुछ नहीं कहा था।

उन्होंने तो तारीफ में यह कहने की कोशिश की थी कि इन्सान अच्छे कामों की बदौलत कहां से कहां पहुंच सकता है, लेकिन मीडिया ने उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया था। खां के अनुसार राष्ट्रपति ने उनकी पूरी बात सुनी और खुशी से जवाब देते हुए कहा- मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है।

अमीन खां राष्ट्रपति से सोमवार शाम को करीब सात बजे पांच मिनट के लिए राजभवन में मिले, जहां वे राजस्थान प्रवास के दौरान ठहरी हुई हैं। खां के साथ पूर्व विधायक सीडी देवल और पाली जिला प्रमुख खुशबीरसिंह जोजावर भी थे।

दरअसल देवल और जोजावर ने ही इस मुलाकात की भूमिका बांधी थी। ये दोनों नेता अमीन खां के लिए राष्ट्रपति से पिछली बार उदयपुर में मिले थे। इस बार ये दोनों नेता अमीन खां को मिलवाने ले गए। इन दोनों नेताओं ने भी राष्ट्रपति से आग्रह किया कि अमीन खां ने किसी दुर्भावना से कुछ नहीं कहा।