मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

देवानंद के बारे में क्या कहती है अभिनेत्रियां



मुंबई। देव आनंद हिन्दी सिनेमा के सबसे चर्चित सितारे रहे। एक पीढ़ी उन्हें रूपहले पर्दे पर देखकर जवान हुई। फिर उनके बच्चों ने देव आनंद को परदे पर देखा और फिर उनके बच्चों ने। देवानंद के निधन से हर कोई स्तब्ध रह गया। उनके फैंस ने ही नहीं बल्कि देव आनंद की प्रमुख अभिनेत्रियों ने भी अपने हीरो को याद किया।

मैंने गाइड के लिए न कह दिया था-वहीदा रहमान
देव के निधन से मुझे धक्का लगा। सुबह आंख खुलते ही उनके निधन का सबसे दुखद समाचार सुना। देव कई काराणों से विशेष थे। मैंने अपनी पहली हिंदी फिल्म सीआईडी उनके साथ की। वे न केवल मेरे पहले हीरो थे बल्कि मैंने सात फिल्में उनके साथ कीं। इनमें से तीन नवकेतन बैनर की थीं जिसे देव ने शुरू किया था। हमने सीआईडी, गाईड, कालाबाजार जैसी कुछ शानदार फिल्में कीं। गाईड के लिए मैंने उन्हें न कह दिया था लेकिन वे मुझे मनाते रहे औ आज मैं उनका शुक्रिया अदा करती हूं। मुझे याद है जब हमारी फिल्म हिट होती तो हम खुश होते लेकिन कोई फिल्म अच्छा नहीं कर पाती तो मैं उदास हो जाती। तब देव मुझसे कहते, कभी पीछे नहीं देखना। जो हो गया सो हो गया।

जब मैं पहली बार उनसे मिली, मैंने उन्हें देव साहब कह कर बुलाया। उन्होंने कहा, मुझे देव कह कर बुलाओ। मैं नई-नई आई थी इसलिए मेरे लिए ऎसा कहना संभव नहीं था लेकिन जब तक मैं उन्हें देव कह कर नहीं बुलाती तब तक वे मेरी बात सुनते ही नहीं थे। वे फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बेहतरीन इनसान थे। उन्होंने कभी किसी के बारे में बुरा नहीं कहा।

उन्हें काम करते देखना विटामिन टेबलेट खाने जैसा था: हेमामालिनी
देव साहब और मैंने जॉनी मेरा नाम की। मैं नई-नई आई थी और वे बहुत बड़े स्टार थे लेकिन उन्होंने मुझे ऎसा कभी महसूस नहीं होने दिया। केबल कार पर गीत वादा तो निभाया बिहार के राजगीर में फिल्माया गया था। भीड़ बेकाबू हो रही थी। उन्होंने मेरा बहुत ख्याल रखा। वे आशावादी थे। सैट पर पहुंचने वालों में वे सबसे पहले होते थे। उनके हाथ में छड़ी रहती थी। मैंने पूछा, आप यह छड़ी क्यों अपने साथ रखते हैं। उन्होंने कहा, यह उनके लिए है जो समय बर्बाद करते हैं। वे कभी थकते नहीं थे और जो उनके साथ कदम-ताल नहीं कर पाता था उसकी कभी प्रशंसा नहीं करते थे। उन्हें काम करते देखना किसी विटामिन टेबलेट खाने जैसा था।

उन्होंने भारतीय सिनेमा की धारा बदल दी: मुमताज
कोई भी देव साहब की जगह नहीं ले सकता। उन्होंने भारतीय सिनेमा की धारा ही बदल दी। वे आइकन थे। जब मैंने हरे रामा हरे कृष्णा साइन की तो
उन्होंने फिल्म उद्योग के नियम को तोड़ा। तब किसी कलाकार को एक समय में छह से अधिक फिल्म साइन करने की इजाजत नहीं थी। लेकिन देव साहब ने मुझसे कहा, तुम्हें बंबई से बाहर ले जाना मेरा काम है और वे मुझे पुलिस सुरक्षा में काठमांडू ले गए। फिल्म उद्योग ने कड़ा एतराज जताया और
उन्होंने कहा, मैंने प्रोजेक्ट के लिए उसे साइन किया है और मैं शूटिंग के लिए उसे साथ लेकर जाऊंगा। मैं देखता हूं मुझे कौन रोकता है।

अंत तक वे अपने किए में भरोसा रखते थे: जीनत अमान
देव साहब कभी थकते नहीं थे। अंत तक वे अपने किए में भरोसा रखते थे। उन्होंने पूरी लगन के साथ अपनी फिल्में बनाई। वे फ्लॉप से कभी नहीं डरते थे। अपने कैरियर में निर्भीक होकर निर्णय लेना मैंने उनसे ही सीखा।

यात्रा कठोर लेकिन आनंददायक होती थी: आशा पारेख
देव साहब कभी खाली नहीं बैठते थे। वे हमेशा सक्रिय रहते थे, आशा यह करो, आशा वह करो, वहां खड़े मत रहो, जाओ, जाओ। वे कभी नहीं रूकते थे। उनके साथ काम करना जैसे किसी एक्सप्रेस ट्रेन में सफर करने जैसा था। यात्रा कठोर लेकिन आनंददायक होती थी। वे पूर्ण फिल्मकार थे। सांस लेते, खाते यहां तक की सोते में भी उनके सामने सिनेमा ही रहता था। वे बहुत ऊर्जावान थे। सचमुच दूसरा देव आनंद कभी नहीं हो सकता।

सिनेमाई पौरूष्ा की सही व्याख्या उन्होंने ही की: वैजयंतीमाला
मैं पहली बार अमरदीप के सैट पर देव साहब से मिली। एक खूबसूरत शिष्टाचारी इनसान और हां, लंबे भी (हंसते हुए)। मेरे समय में मैं लंबी हीरोइन थी। मुझे अपने लिए एक लंबा हीरो ही चाहिए था और देव साहब सही समय पर आए। वे पढ़े-लिखे, शिक्षित, सुसंस्कृत और विद्वान थे।

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