शनिवार, 24 सितंबर 2011

अस्वाभाविक -असामयिक मौत का सिलसिला ..

अस्वाभाविक -असामयिक मौत का सिलसिला ..




चित्र गूगल से साभार ,माफ़ी सहित लेकिन हकीकत यही है आज




किसी भी दिन का समाचार पत्र उठा कर देखा जाए तो एक खबर जरूर रहती है वो है दुर्घटना , अपराध , बीमारी आदि के चपेट में आकर हो रही अस्वाभाविक मौत की खबरें । पिछले एक दशक में इन मौतों का सिलसिला इतना बढ गया है अब ये एक चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है । भारतीय समाज न सिर्फ़ मानव संसाधन के दृष्टिकोण से बल्कि विशेषकर युवाओं की उपस्थिति के कारण पूरे विश्व समुदाय में महत्वपूर्ण स्थिति में है । ऐसे में सडक दुर्घटनाओं में , नशे और अपराध में बढती उनकी संलिप्तता के कारण तथा खिलंदड व लापरवाह जीवन शैली की वजहों से रोजाना न सिर्फ़ इन आमंत्रित मौतों का सिलसिला बढ रहा है बल्कि इसकी दर इतनी तेज़ गति से बढ रही है कि भविष्य में ये बेहद आत्मघाती साबित हो सकती है ।

इस विषय पर शोध कर रही संस्था "लाईफ़ डिसएपियरिंग " ने पिछले दिनों अपनी सूचनाओं के आधार पर बहुत से चौंकाने वाले तथ्य और आकडे सामने रखे । आंकडों के अनुसार पश्चिमी और पूर्वी देशों में होने वाली अस्वाभाविक मौत के कारण भी सर्वथा भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में नशे की बढती लत , आतंकई घटनाएं , व कैंसर एड्स जैसी बीमारियों की चपेट मेम आकर प्रतिवर्ष हज़ारों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं । इसके अलावा एक बडा और प्रमुख कारण खतरनाक शोध कार्यों व दु:साहसिक खेलों का खतरा उठाना भी रहता है इसमें ।


भारत व अन्य विकासशील देशों में सडक दुर्घटनाओं , मानवीय आपदाओं , आतंकी हमलों के अलावा अपराध मेम लिप्तता के कारण प्रतिदिन सैकडों व्यक्तियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड रहा है । इससे अलग बिल्कुल गरीब और अविकसित राष्ट्रों में गरीबी भुखमरी व कुपोषण भी एक बडा कारण साबित होता है , अस्वाभाविक मौतों के लिए । संस्था बताती है कि आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में अस्वाभाविक मौतों की दर बहुत कम है और इसके मुख्य कारण हैं प्राकृतिक आपदाएं और भूमि विवाद के कारण होने वाले अपराध ।

इसके ठीक विपरीत शहरी समाज अपनी बदलती जीवन शैली , नशे का बढता दखल टूटती सामाजिक परंपराएं व संस्थाएं आदि जैसे कारकों की वजह से अस्वाभाविक मौत को आमंत्रण देता सा लगता है । काम के अधिक घंटे , सडकों पर बीतता ज्यादा समय , नशे की नियमितता और फ़िर उसी नशे की हालत में वाहन परिचालन के परिणाम स्वरूप लगातार लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं । शराब के अलावा धूम्रपान , पान , बीडी , तंबाकू , गुटखा आदि के सेवन की बढती प्रवृति कैंसर ,तपेदिक , जैसी बीमाइयों को न्यौता दे रहे हैं , और चिकित्सा सुविधाओं के अत्यधिक महंगे होने के कारण स्थिति और भी अधिक गंभीर होती जा रही है । विशेषकर युवाओं में इसका बढता चलन सबसे अधिक चिंता का विषय है ।

संस्था बताती है कि इस घटनाक्रम में सबसे अधिक चिंतनीय बात ये है कि इन अस्वाभाविक मौतों का दोहरा परिणाम समाज को झेलना पडता है । जब किसी परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु किसी भी अस्वाभाविक परिस्थितियों में होती है तो परिवार के सदस्यों को गंभीर शारीरिक मानसिक आघात लगता है । संस्था के अनुसार ,पिछले दो दशकों में एकल परिवार का चलन अनिवार्य नियम सा हो गया और इसीलिए जब ऐसे छोटे परिवारों में ,विशेषकर किसी युवा सदस्य की, बच्चों की मौत हो जाती है तो पूरे परिवार में एक बिखराव आ जाता है । कई बार तो ये इतना तीव्र सदमा होता है कि परिवार के अन्य सदस्य के लिए भी किसी अनापेक्षित अस्वाभाविक मौत का कारण बन जाता है ।

किसी भी देश के विकास के लिए ये बहुत जरूरी होता है कि वो अपने मानव संसाधन के समुचित उपयोग के उपाय करे बल्कि उनकी सुरक्षा व सरंक्षण को भी सुनिश्चित करना उसका पहला कर्त्वय है । संस्था ने न सिर्फ़ इसके कारणों व परिणामों पर स्पष्ट विचार रखे बल्कि लगभग चेतावनी वाली शैली में विश्व समुदाय को आगाह किया है कि भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की बढती दर , आतंकी हमलों की संभावना तथा पानी , उर्जा , पेट्रोल आदि की कमी होने जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के मद्देनज़र अभी से गंभीरतापूर्वक इस पर ध्यान दिया जाए ।

संस्था ने इस स्थिति के कारणों पर बारीकी से अधय्यन करने के बाद इसे रोकने , कम करने के लिए बहुत से उपाय सुझाए हैं । संस्था कहती है कि सरकारें आर्थिक लाभ के लिए , सिगरेट , शराब , तंबाकू के उत्पादों का विक्रय करवाती है इसका परिणाम ये हो रहा है कि धीरे धीरे करके पूरा समाज ही नशे की गिरफ़्त में चला जा रहा है । आज भारत में भी स्थिति ऐसी होती जा रही है कि पुरूषों में कोई मद्यपान या धूम्रपान न करता हो तो वो कौतुहल का पात्र बन जाता है । और अब ये चलन बढते बढते महिला समाज में भी घर करता जा रहा है । नई पीढी अपने अभिभावकों को इसमें लिप्त पाकर बहुत पहले ही इसकी शुरूआत कर देते हैं , जिसका परिणाम ये होता है कि बहुत जल्दी ही वो उस सीमा को लांघ जाते हैं जहां से ये जानलेवा साबित होने लगता है । भारत में लगभग ६७ प्रतिशत सडक दुर्घटनाओं की वजह शराब पीकर गाडी चलाना ही है ।


तो यदि इस पर चरणबद्ध तरीके से काबू पाया जाए तो इस दर को काफ़ी कम किया जा सकता है । चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता सुलभ करने से घायल व्यक्तियों के उपचार में तीव्रता आएगी और ये बहुत से उन जानों को मौत के मुंह में से खीच लाएगी जो अब इसके अभाव में प्रतिदिन मर रहे हैं । आपातकालीन व्यवस्था को अचूक और निर्बाध किए जाने पर भी काम किया जाना चाहिए । इसके अलावा और भी बहुत से मुद्दों , जीवन शैली में बदलाव और प्रकृति के सम्मान की परंपरा को बढावा देना , जीवन मूल्यों को समझने और उनका सम्मान किए जाने की भावना को विकसित किए जाने जैसे उपाय बताए । अब देखना ये है कि सरकारें कब चेतती हैं और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए काम करना शुरू करती हैं ।

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