बुधवार, 17 अगस्त 2011

सरकारी और अन्ना के लोकपाल में अंतर



सरकार की ओर से तैयार लोकपाल विधेयक और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए तैयार अन्ना हजारे के जन लोकपाल में कई मामलों में बड़ा अंतर है। प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को जांच दायरे में शामिल किए जाने के साथ कई ऎसे मुद्दे हैं जिनपर दोनों में जमीं-आसमां का फर्क है। ये हैं मुख्य अंतर-


सिर्फ सिफारिश बनाम कार्रवाई का अधिकार

सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरूद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी।


पुलिस अधिकार और एफआईआर

सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं। जबकि जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी।


जेल की सजा बनाम जुर्माना

सरकारी लोकपाल के तहत किसी भी झूठी शिकायत पर शिकायतकर्ता को जेल भी भेजने का प्रावधान है। लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है साथ ही घोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है।


सांसद, प्रधानमंत्री जांच दायरे में

सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र से प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को बाहर रखा गया है। जबकि जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएंगे।

सरकारी लोकपाल में सांसदों की स्पीच और वोटिंग को लोकपाल बिल के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है। जबकि टीम अन्ना के बिल में सांसदों को लोकपाल के अधीन रखा गया है। सरकारी विधेयक के तहत सांसद, मंत्री और ग्रुप-ए के समकक्ष अधिकारी जांच के दायरे में आते हैं, लेकिन उसे मंत्री को बर्खास्त करने की सिफारिश का अधिकार नहीं। उधर, अन्ना के लोकपाल में न सिर्फ सांसद, मंत्री अपितु प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी की सिफारिश का अधिकार होगा।


समिति में जन भागीदारी

सरकारी लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। चार की कानूनी पृष्टभूमि होगी, बाकी का चयन किसी भी क्षेत्र से हो सकता है।


लोकपाल के चयनकर्ताओं में अंतर

सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगसेसे पुरस्कार के विजेता भी चयन समिति में शामिल होंगे।
ऎसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है।


जांच की समयावधि

सरकारी लोकपाल के तहत किसी भी मामले की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय। जबकि प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए।


भ्रष्ट अफसरों की बर्खास्तगी

सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के खçलाफ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। जबकि प्रस्तावित जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के खçलाफ भी जांच करने का अधिकार शामिल है। साथ ही भ्रष्ट अफसरों को इसके तहत बर्खास्त कर सकेगा।

सीबीआई/सीवीसी में विलय

सरकार सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन(सीबीआई) और सेंट्रल विजिलेंस कमिशन(सीवीसी) को लोकपाल के साथ विलय के पक्ष में नहीं है। जबकि टीम अन्ना चाहती है इन एजेंसियों का लोकपाल में विलय अवश्य हो, इससे लोकपाल का काम बेहतर होगा।

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