बुधवार, 17 अगस्त 2011

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं

तुम्हारे पाँवों के नीचे कोइ ज़मीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं |

मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ,
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं |

तेरी ज़ुबान हैं झूठी जम्हूरियत की तरह,
तू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं |

तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें,
अदीब वों तो सियासी हैं पर कमीं नहीं |

तुझे कसम है खुदी को बहुत हलाक न कर,
तू इस मशीन का पुर्ज़ा है, तू मशीन नहीं |

बहुत मशहूर है आयें ज़रूर आप यहाँ,
ये मुल्क देखने के लायक तो है, हसीन नहीं |

ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो,
तुम्हारी हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं |
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ज़िंदगी तस्वीर भी है
और तक़दीर भी

मन चाहे रंगों से
बन जाये तो तस्वीर
अनचाहे रंगों से
बने तो तक़दीर.....
(२)
जब तू चली जाती है
ज़िंदगी ग़ज़ल हो जाती है
और जब तू आ जाती है
तो ग़ज़ल ज़िंदगी हो जाती है....

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