शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
सोमवार, 15 मार्च 2010
कम से कम इतना काम तो करना ही होगा.
अगर आप निजी संसथान में काम करते है तो ..............जी हाँ आप तैयार रहिया आपका मैनेजमेंट आप से कुछ इसी तरह के काम की उम्मीद करता है,
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