गुरुवार, 25 मार्च 2010

बाली उम्र मैं ये कैसा रोग

राजेश त्रिपाठी
कोटा। कच्ची उम्र के बच्चों में अपने साथियों के प्रति इस तरह के "घातक" आकर्षण से न केवल परिजन, बल्कि डॉक्टर भी चिन्तित हैं। जिस उम्र में बच्चों को सिर्फ पढ़ाई करनी होती है, उस दौरान इस तरह की गतिविधियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कोटा में पिछले कुछ माह में ऎसी घटनाएं बढ़ी हैं। इस तरह के सामाजिक परिवर्तन से मनोचिकित्सक भी हैरान हैं। मनोचिकित्सकों के पास इस तरह के दो से तीन बच्चे औसतन हर सप्ताह उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। इनमें बारह वर्ष तक के बच्चे भी शामिल हैं। लड़कों पर परिवार में कम नजर रखी जाती है, इसलिए उनके मामले कम सामने आते हैं। डॉक्टरों तक लड़कियों के मामले अधिक पहुंच रहे हैं।

ऎसे एक-दो बच्चे हर सप्ताह आ रहे हैं। उनके भेजे एसएमएस उनकी उम्र के अनुरूप नहीं होते। टीवी और फिल्मों का काफी असर है। बच्चों के कार्टून शो भी अब बच्चों की मानसिकता के अनुरूप नहीं हैं। उनमें काफी ऎसे दृश्य या सामग्री होती हैं, जिनका बाल मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है। ये खतरनाक संकेत है।
-डॉ. भरतसिंह शेखावत, मनोचिकित्सक, एमबीएस अस्पताल

ऎसे चलता है पता

सामान्यत: ऎसे मामलों में बच्चे अपने माता-पिता का मोबाइल लेकर उसका उपयोग शुरू करते हैं। मोबाइल पर लंबी बात, मैसेज करना इत्यादि। मोबाइल का बिल अधिक आने पर परिजनों को इस तरह की गतिविधियों का पता चलता है। इसके बाद वे बच्चों से डांट-फटकार और अन्य तरीके इस्तेमाल करते हैं। बात नहीं बनती तो अनेक माता-पिता मनोचिकि त्सकों के पास ये कहकर पहुंचते हैं कि बच्चे का किसी ने "वशीकरण" कर दिया है। ऎसे मामले भी सामने आए, जिनमें बच्चे अपने दोस्त से रात भर फोन पर बात करते रहे या संदेश भेजते रहे।

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