शुक्रवार, 12 मार्च 2010

आखिर क्यों बनू मैं लड़की

लड़की की दिखाई -- शादी से पहले भी भुगतना. पड़ता है अपमान
जीवन भर अपमान सहने के लिया या माँ बाप की इच्च्चाये पूरी करने की खातिर.

राजेश त्रिपाठी
कभी कभी पुरुषों को सोचना चाहिए कि एक स्त्री या लड़की उनके बारे में कैसी कल्पना करती होगी। पुरुषों के कल्पना लोक में लड़कियां आतीं रहती हैं। फिल्म के पर्दे से लेकर पड़ोस की खिड़की से। मैगज़ीन के कवर से लेकर रेलगाड़ी में सामने की सीट से। फिल्म और छपाई के ज़माने में लड़कियों के सौंदर्य की एक सार्वभौमिक अभिव्यक्ति बनाई गई। जिनकी पूर्ति के लिए कई लड़कियों ने मटके के पीछे खड़ी होकर शादी के लिए तस्वीरें खींचाईं। फोटो की फाइनल कॉपी से पहले स्टुडियो वाले ने प्रूफ की कॉपी बनाई। उसके बाद यह कॉपी न जाने कितने योग्य वरों के घरों में गई। नहीं मालूम कि योग्य वर ने इंकार करने के बाद उस लड़की के साथ अपने कल्पना लोक में क्या किया। नहीं मालूम की मटकी के पीछे और राजस्थानी घाघरा चोली में खड़ी लड़की की तस्वीर हाथ में आते ही लड़के की नज़र पहले कहां गई। इसका कोई सामाजिक शोध उपलब्ध नहीं है।

मेरे दोस्त के पिता जी ने एक योग्य वर के नखरे से तंग आकर खरी खोटी सुना दी थी। कोटा में किसी रिश्ते के अपने भाई की बेटी के लिए अगुवई में गए थे। लड़के वाले कैसी लड़की चाहिए पर वाम दलों की तरह सूची लंबी किए जा रहे थे। पिता जी की ज़ुबान फिसल गई या गुस्से में कह गए- पता नहीं। चिल्लाने लगे कि लड़का को हेमा मालिनी चाहिए तो लड़की को भी धर्मेंद्र जैसा हैंडसम लड़का मिलना चाहिए। आपका बेटा इंजीनियर ही तो है। शक्ल देखिये इसकी। पतलून में बेल्ट लगाने नहीं आता, बाल में तेल है और कमीज़ की कोई फिटिंग तक नहीं। और आप हमारी लड़की में गुण ढूंढ रहे हैं। शादी करेंगे या नहीं। पिताजी बोल तो गए मगर शादी नहीं हुई। लड़के वाले इस बात को स्वीकार नहीं कर सके कि योग्य वर के बारे में योग्य दुल्हन की भी कोई कल्पना होगी?

ऐसे कई प्रसंगों में मैं खुद भी मौजूद रहा हूं। जहां लड़के वालों ने लड़कियों को ड्राइंग रूम में चला कर देखा कि चलती कैसी हैं। कभी चश्में का नंबर पूछा गया तो कभी लड़के की बहन ने लड़की की आंख को घूर से देखा कि कहीं कांटेक्ट लेंस तो नहीं लगा है। यह प्रक्रिया शादी के बाद भी जारी रहती है जब शादी के बाद घर आई दुल्हन की मुंहदिखाई के लिए लोग आते हैं। घूंघट उठा कर देखते हैं और सौ दो सौ रुपया दे जाते हैं। मैंने कई औरतों को देखा है कि दुल्हन की घूंघट उठाई और बोलते रह गईं। किसी ने वहीं कह दिया कि फलां कि बहू जैसी खूबसूरत है। बस इस तुलना से दुल्हन की तौहिन हुई सो अलग, वहीं बवाल मच गया। खैर ऐसे आयोजन को अंग्रेजी में रिसेप्शन कहते हैं। हिंदी में प्रीतिभोज।

यही देखते हुए बड़ा हुआ था। कई बार रिश्तेदारों को पिछले दरवाज़े से जाते हुए देखा था। किसी को पता न चले कि लड़की दिखाने ले जा रहे हैं। बदनामी के डर से कि इनकी बेटी बार बार छंट जा रही है। इस खौफ से कई अनर्गल और अवांछित रिश्तेदारों का मान मनौव्वल करते रहते थे कि कहीं वे उन जगहों पर जाकर बेटी के बारे में शिकायत न कर दें। शादी न कट जाए। यही जुमला चलता था। नहीं बैठा मामला? रिश्तेदार कोई अनजाने नहीं बल्कि अपने ही मामा चाचा हुआ करते थे। हर दिखाई के बाद जब पड़ोस की चाची पूछती थीं तो पूरा परिवार तुरंत झूठ बोलने लगता था। अपनी बहनों की भलाई के लिए। कोई नहीं कहता कि लड़के वाले ने देखा है। कुछ लोग यही गिनते रहते थे कि कितनी बार छंटाई हुई है। हालत ये भी हो जाते है की कुछ रिश्तेदार कहने लगते है की जिन लडको ने तुम्हारी लड़की को रिजेक्ट किया हो उनके पते हमें दे दो. हम उनसे जा कर निवेदन कर लेंगे. बेटी का बाप होना जैसे कोई सजा है,जिस से भी मिलो हाथ जोड़ कर मिलो नीचे सुर में ही आवाज निकले
यही देखते देखते कुछ और बड़ा हुआ। इतना कि मेरी कल्पनाओं में लड़कियां आने लगी थीं। किस रूप में आती थी उस पर बहस फिर कभी। लेकिन कभी कोई लड़की गुज़र जाए तो बहनें या पड़ोस की चाचियां ही कह देती थी कि सुंदर है..राजेश की दुल्हन ऐसी ही होगी। लंबी, गोरी और काले बालों वाली। मैं भी सुन लेता था। कान बंद करने का कोई उपाय नहीं होता था। मगर अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि दुल्हन देखने के रस्मों की कड़वाहट ज़हन में उतर गई थी।

कोटा स्टेशन के पास हनुमान मंदिर में पड़ोस की चाची की एक बेटी को स्कूटर पर बिठा कर ले गया था। मुझे यह काम इसलिए सौंपा गया कि किसी को शक न हो। मेरी ऐसी साख बन गई थी मोहल्ले की लड़कियों के बीच। लोगों को लगे कि कहीं कोचिंग सेंटर छोड़ने ले जा रहा होगा। मेरा एक काम यह भी था। इसलिए किसी को शक नहीं होता था। उस दिन मैं उस लड़की को हनुमान मंदिर ले गया था। चाची ने कह दिया था धीरे धीरे चलाना। शुभ काम है। मैं भी लगता था कि कितना बड़ा काम मिला है, कर ही देना है। हनुमान मंदिर। वहां लड़के वाले आ चुके थे। उसे देखने। चाची रिक्शे से पहुंची थीं। अलग से। लड़के ने लड़की को देखना शुरू किया। उसकी नज़रों को मैंने देखना शुरू कर दिया। वो कहां कहां देख रहा है। कहां ज्यादा रूक रहा है।मोहल्ले के फिल्मी भाई की तरह गुस्सा भी आया।लेकिन भला उसी का था, चाची के सर से बोझ उतरना था इसलिए चुप भी रहना था। वो मेरी बहन नहीं थी इसलिए सर उठा कर देख रहा था।अपनी बहनों के वक्त तो नज़र नीचे ही रहती थी। इसी से कई लोगों को लगा कि मैं सीधा हूं।अच्छा लड़का हूं।खैर पहली बार देखा कि मर्द कैसे लड़की को देखता है।साला सामान ही समझता है।और कुछ नहीं।बाद में
उस लड़की को स्कूटर के पीछे बिठा कर घर ला रहा था।रास्ते भर सोचता रहा कि कितना अपमान है।लड़की नहीं होना चाहिए। पहली बार मुझे यह पता चला था कि लड़कों की नज़रें गंदी हो सकती हैं। बुरा या गंदी पता नहीं। अच्छाई के विरोध में तब शब्द भी कम होते थे। उस लड़के ने पसंद नहीं किया। क्या पता किसी और को हनुमान के सामने घूर रहा होगा? पता नहीं।

हिंदुस्तान के लड़के बदसूरत, बेढंग और बेहूदे होते हैं। लड़कियां तो सज कर कुछ बेहतर से बहुत बेहतर लगती रहती हैं। लड़कों के पास नौकरी न हो और समाज में शादी का चलन न हो तो मेरा यकीन है कि लाखों की संख्या में लड़के कुंवारे रह जाते। शाहरूख ख़ान सिक्स पैक बना रहा है तो मुझे ठीक लगता है। सारे लड़कों को नौकरी के अलावा इस लायक तो होना ही चाहिए कि किसी लड़की की कल्पना लोक में आ सके। वर्ना मैंने शादी से पहले सैंकड़ों मौके देखे हैं जब लड़कियों को लड़कों के सामने दिखाया गया है। एक भी मौके पर किसी भी लड़की ने लड़के की तरफ नज़र उठा कर नहीं देखा। कभी नहीं देखा कि लड़के ने भी लड़की के लिए तस्वीर खिंचाई है। सूट में। स्टुडियो वाले से टाई लेकर। यकीन न हो तो कोटा के सिद्धू स्टुडियो जाकर पूछ लीजिएगा। यह स्टुडियो स्थानीय स्तर पर लड़कियों की ऐसी तस्वीर तो बना ही देता था कि पहले राउंड में क्लियर हो जाए। और लड़के वाले अपने ड्राइंग रूम में या हनुमान मंदिर में उसे देखने के लिए बुला लें। लड़कियों के सामने लड़कों की तस्वीरों का विकल्प कभी नहीं रहा। क्या पता उन्हें भी लगता हो इंजीनियर ही तो है। जीवन काटना है। हां कह देंगे तो मां बाप है हीं मेरी तरफ से हां कहने के लिए।

मुझे फैशन से चिढ़ है। मेक अप से चिढ़ है। लेकिन जब पढ़ता हूं कि पुरुषों के सजने संवरने का कारोबार हज़ार करोड़ का हो रहा हो तो कभी कभी खुशी होती है। बीते दिनों की ख़राशों पर इसी बात से मरहम लगती होगी। जब मेरी एक दोस्त ने कहा कि शाहरूख इज़ हॉट तो सुनकर अच्छा लगा। एक बार लड़कियों की नज़रे लड़कों को नापने लगे तो कस्बे से लेकर महानगरों के कुंवारे इंजीनियरों, डाक्टरों और एमबीए लड़कों के होश उड़ने लगेंगे। वो भी सिक्स पैक बनाने लगेंगे। बल्कि बना ही रहे हैं।

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