शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
स्वागत !
पढ़ते रहो ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है। - राजेश त्रिपाठी
Anek shubhkamnayen!
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