शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
इनके भरोसे कैसे सुरकश्साः........
खाओगे तो दिखेगा भी सही, पुलिस के ये दो अधिकारी अपने जूतों रंग देख कर नहीं बता सकते.फिटनेस की कमी और मोटापा पुलिस में बड़ी समस्या बन गई है.जिसे देखने की किस को फुर्सत नहीं है.
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