मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

महंगा होगा सरकारी इलाज

राजेश त्रिपाठी

कोटा। कोटा जिले की सरकारी डिस्पेंसरियों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में अगले महीने से इलाज महंगा हो जाएगा। जिले की सभी डिस्पेंसरियों और सीएचसी में आने वाले रोगियों से शुल्क वसूला जाएगा। यह राशि 2 रूपए से लेकर 5 रूपए तक हो सकती है। इसको अंतिम रूप देने की तैयारी चल रही है।

सूत्रों के अनुसार जिले की सभी डिस्पेंसरियों में राजस्थान मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी का गठन किया जाएगा। ग्रामीण इलाकों में अधिकांश डिस्पेंसरियों में सोसायटी गठित है। शहर की 13 डिस्पेंसरियों में सोसायटी नहीं है। इनमें गठन की प्रक्रिया चल रही है। इस माह के अंत तक सभी सोसायटियां अस्तित्व में आ जाएंगी।

परामर्श के दो, भर्ती के पांच रूपए
सोसायटियां बैठक कर अपनी-अपनी डिस्पेंसरी और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आउटडोर और भर्ती रोगियों से वसूले जाने वाले शुल्क का निर्धारण करेंगी। माना जा रहा है कि संभवत: दो रूपए आउटडोर और पांच रूपए भर्ती होने वाले रोगियों का शुल्क होगा। जहां सोसायटियां गठित हैं और शुल्क वसूली नहीं की जा रही है। वहां भी शुल्क तय कर वसूलने को कहा जा रहा है।

ऎसी होगी सोसायटी
सोसायटी में सीएमएचओ अध्यक्ष और डिस्पेंसरी प्रभारी सचिव होंगे। इलाके के दानदाता व सामाजिक कार्यकर्ता इसमें सदस्य होंगे। इन सोसायटियों का सहकारिता विभाग में पंजीयन कराया जाएगा।

मेडिकल कॉलेज के अस्पताल होंगे निशुल्क
कोटा में मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध एमबीएस, जेकेलोन और न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उपचार निशुल्क रहेगा। इन अस्पतालों में पूर्व में दो बार शुल्क लगाने की तैयारी की गई थी, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों के दखल के बाद स्थगित कर दिया गया था। दादाबाड़ी सीएचसी में भी शुल्क वसूली तय कर दी थी, लेकिन वसूली नहीं हो सकी थी।

अगले महीने से सभी डिस्पेंसरियों और सीएचसी पर शुल्क वसूला जाएगा। वसूले गए शुल्क को संबंधित अस्पताल के विकास कार्य में लगाया जाएगा।
-डॉ. गजेन्द्र सिंह सिसोदिया, सीएमएचओ, कोटा

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

जोर लगा के हई शह.........


हकीकत में तो ऐसा हो नहीं सकता की पुलिस को कही जोर लगाना पड़े. पर खेल की बात अलग है. बूंदी में पुलिस की ताकत एक अंदाज़ देखिया.

वार्ड जाये भाड़ में जम कर लुंगी........


राजनीती का ये हाल.विरोध के तरीको पर अक्सर बहस होती रहती है. इसे भे शामिल कर लिया जाये. फोटो कोटा का है.

दरा का "दिल" छलनी






राजेश त्रिपाठी

कोटा। दरा अभयारण्य का "दिल" कहे जाने वाले गिरधरपुरा से लक्ष्मीपुरा क्षेत्र तक जीवन का आधार "हरियाली" का "कत्लेआम" जारी है। इसे "देखने" व "रोकने" वाला कोई नजर नहीं आता। नजरें उठाकर देखें तो जहां-तहां "हरे-भरे" पेड़ों की जगह कटे हुए "ठूंठ" नजर आते हैं। यह जंगल हाडोती का सर्वाधिक सघन वन क्षेत्र है। कई स्थानों पर इसकी सघनता और विविधता रणथम्भौर से भी "उन्नत" मानी जाती है। हां, वनकर्मियों की मौजूदगी के चलते इस अभयारण्य के "मुख्य द्वार" के आसपास सघन हरियाली बची हुई है।

गिरधरपुरा से लक्ष्मीपुरा तक कटाई
गिरधरपुरा गांव आने से पहले ही जगह-जगह पेड़ों के ठूंठ नजर आने लगते हैं। पत्रिका संवाददाता जब मौके पर पहुंचा तो गांव के तालाब के पास लोगों ने हरे वृक्षों को आधा काटकर गिरा रखा था। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश लोग इसी तरह से पेड़ों की कटाई करते हैं। वे पेड़ को आधा काट कर छोड़ देते हैं और पेड़ के सूखने पर उसे ले जाते हैं। गिरधरपुरा से आगे भी बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए हैं। यहां से आंबापानी और दामोदरपुरा तक काफी लंबे वन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई हो रही है।

परिवार 25, मवेशी 2500!
दरा में बसे गांवों में परिवारों की संख्या कम और मवेशी अधिक हैं। कई जगह तो 25-30 परिवारों के गांव में मवेशियों की संख्या सौ गुना तक है। ये मवेशी जंगल में ही चराई करते हैं और यहीं उनका दूध निकालकर गर्म किया जाता है, जिसके ईंधन के लिए ये लोग हरे-भरे पेड़ों को काट देते हैं। इसके अलावा जंगल की लकड़ी को जलाकर खाना बनाने के काम में भी लिया जा रहा है।

चट कर रही है दीमक
हालांकि यहां बड़ी तादाद में पेड़ स्वत: भी गिर जाते हैं तो कुछ अधिक पुराने होने के कारण धराशायी हो जाते हैं। पूरे इलाके में ऎसे हजारों सूखे पेड़ जमीन पर पड़े हैं, लेकिन इन पेड़ों का न तो कोई इस्तेमाल कर रहा है और न ही ले जा रहा है। कई पेड़ों के आसपास दीमक भी हैं, जो लकड़ी को चट कर रही हैं।

प्रयास न हो जाएं विफल
दरा अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान बनाने के लिए कोटा के विभिन्न संगठन प्रयासरत हैं। ऎसे में यहां की "हरियाली" पर बेधड़क चल रही कुल्हाड़ी जंगल के साथ ही राष्ट्रीय उद्यान बनाने के प्रयासों को भी धक्का पहुंचा सकती है।

"ठूंठ" का शासन!
दरा अभयारण्य में गिरधरपुरा से लक्ष्मीपुरा तक क्षेत्र में पेड़ों की अवैध अंधाधुंध कटाई जारी है, जिसे देखने वाला यहां कोई नहीं। वर्तमान में हाडोती के इस सघन वन क्षेत्र के हालात ऎसे हैं कि कई जगह तो पता ही लगता कि किसी सपाट मैदान में खड़े हैं या अभयारण्य क्षेत्र में।

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

लेकिन अमीरी रेखा क्यों नहीं

भारत में एक लाख पंद्रह हज़ार करोड़पति हो गए हैं। यह संख्या ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के लिए रेखा से ऊपर खाली जगह छोड़ती है। हज़ारपति लखपति हो गए और लखपति करोड़पति। ज़ाहिर है नीचे जगह बनी है। यह देश के ग़रीबों के लिए सुनहरा मौका है। आखिर ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों की संख्या कम तो हुई है न। वो कहां गए? क्या वो अमीरी रेखा के अनंत आसमान में बिला गए? पता नहीं चलता है। एक सरकार ने दावा किया तो लोगों ने चलता कर दिया। लगता है कि ये लोग वापस ग़रीबी रेखा के नीचे आकर शाइनिंग इंडिया का तेल कर गए।

मैं यह लेख भारत की दिर्घायु ग़रीबी पर नहीं लिख रहा हूं। अमीरों पर लिख रहा हूं। सवा लाख करोड़पतियों का देश। विश्व संपदा रिपोर्ट कहती है कि करोड़पतियों की संख्या हर साल बीस फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। रिपोर्ट यह नहीं बताती कि इसमें नए करोड़पति शामिल हो रहे हैं या वही पुराने वाले ही हो रहे हैं। क्या इसमें सरकारी महकमों में रिश्वतखोर,दलाल, दारोगा, तहसीलदार,इंजीनियर,ज़िलाधिकारी,कर चोर व्यापारी आदि को भी शामिल किया गया है? ये सब भारत के अनधिकारिक करोड़पति हैं। इनकी संख्या भी लाखों में होती। मैं कब से कह रहा हूं हमारी सामाजिक व्यवस्था में रिश्वतखोरी अब अतिरिक्त आय का साधन है। इस पर फ्रिंज बेनिफिट यानी सीमांत लाभ कर लागू होना चाहिए। इससे सरकार को धन मिलेगा और भारत का दुनिया में नाम होगा कि हमारे यहां लंदन सिंगापुर से भी ज़्यादा करोड़पति हैं। सबको शामिल नहीं कर पाने की व्यवस्था के कारण ही हमारे देश में सर्वे फेल हो जाते हैं।

और तो और नए सर्वे में करोड़पतियों के घरों को शामिल नहीं किया गया है। इससे कई लखपति करोड़पित होने से वंचित हो गए। इसमें सिर्फ व्यावसायिक संपत्ति और शेयर बाज़ार में निवेश और बचत को आधार बनाया गया है। हम सब के मकान जिसकी लागत पांच लाख रुपये हैं और बाज़ार में कीमत पचास लाख इसे शामिल नहीं किया गया है। लगता है करोड़पति क्लब को सीमित रखने की साज़िश चल रही है। खैर करोड़पति बनने से रह गए लाखों लखपतियों को हमारी तरफ से सांत्वना। वैसे भी हमारे देश में कोई कहता नहीं कि वो करोड़पति है। आप कहेंगे तो जवाब मिलेगा अरे कहां साहब। करोड़ होते तो काम करता। घर का खर्चा इतना की रात को नींद नहीं आती। सामाजिक तौर पर हम नहीं बताते कि कितना पैसा है। बेटा अपने पिता से कहेगा कि बैंक में एक रुपया नहीं। बेटे के बाप ने भी अपने बाप से यही कहा। भाई अपने भाई से छुपाता रहता है कि पैसे की कितनी तंगी है। भाभी और बहन झगड़ते रहते हैं कि कैसे पुरानी साड़ी से काम चलाई जा रही है। एक रुपया नहीं है। पैसे को लेकर झूठ बोलने का संस्कार हमारा परिवार सीखाता है। फिर किसने कहा कि वो करोड़पति है। मुझे तो सर्वे पर शक हो रहा है।

तभी देश में कौन बनेगा करोड़पति फ्लाप हो गया। पांच साल पहले जब स्टार प्लस ने पहली बार शुरू किया तो प्रोग्राम हिट हो गया। दूसरी और तीसरी बार फ्लाप हो गया। करोड़पति बनने का चार्म ख़त्म हो गया। टीवी का दर्शक दूरदर्शन के हमलोग वाले फटेहाल कलाकारों वाला नहीं रहा। वो अमीर हो चुका है। इसलिए करोड़पति बनने का सपना लुभाता नहीं।

और इसीलिए अमीरी रेखा नहीं है। इसका दायरा अनंत है। कोई भी कहीं तक जा सकता है। सौ कार की जगह हज़ार चौरासी कारों का मालिक बन सकता है। किसी अर्थशास्त्री को समझ में नहीं आया कि अमीरों के लिए रेखा कैसे बनाए? पैमाने क्या हों? कई लोगों के पास कार है टीवी है मकान है मगर आदत है कि कहेंगे कि ग़रीब हैं। ऐसा क्यों होता है?

वन्यजीवों के कंठ सूखे


राजेश त्रिपाठी
कोटा। गर्मी बढ़ते ही दरा अभयारण्य के प्यासे वन्य जीव लम्बा रास्ता तय कर गांवों में आने लगे हैं। ऎसे हालात में अभयारण्य में पानी उपलब्ध कराने की वन विभाग की तैयारियां ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। गावों की तरफ पलायन वन्य जीवों व ग्रामीणों के लिए खतरनाक भी हो सकता है। अभयारण्य में जगह-जगह बने एनीकट और पानी की टंकियां सूखी पड़ी हैं, वहीं प्राकृतिक जल स्त्रोत भी रीत चुके हैं।

दरा में पेंथर, हरिण, चीतल, जंगली सुअर, नीलगाय, खरगोश, बंदर समेत विभिन्न प्रजातियों के हजारों वन्यजीव और पक्षी हैं। यदि हालात नहीं सुधरे तो आने वाले दिन वन्य जीवों के लिए भयावह हो सकते हैं।
पत्रिका संवाददाता ने कोलीपुरा से दरा तक करीब चालीस किलोमीटर लंबे इस अभयारण्य का दौरा तक हालात का जायजा लिया। यहां गांवों में तो पेयजल सुलभ हैं, लेकिन अभयारण्य क्षेत्र में बनाए गए दर्जनों एनिकट सूखे पड़े हैं। इस विशाल जंगल में केवल अभयारण्य के प्रवेश द्वार के पास ही दो स्थानों पर पानी नजर आया।

गिरधरपुरा के आगे सूखा

कोलीपुरा से गिरधरपुरा के बीच दो स्थानों पर पानी है, जिनमें एक स्थान पर कुआं है। गिरधरपुरा में तालाब बना हुआ है, जिसमें पानी रीतने लगा है। अगले कुछ दिनों में ये तालाब मैदान में तब्दील होने वाला है। गिरधरपुरा से आगे पानी की व्यवस्था नहीं है। पानी के अभाव में इस इलाके में वन्यजीव भी कम नजर आते हैं। इससे आगे अम्बापानी में बरसों पुराना प्राकृतिक जलस्त्रोत है। इसमें एक पहाड़ी से पानी आता है, जो काफी कम है। यहां एक गaे में गंदा पानी भरा हुआ है, जहां वन्यजीव नहीं आते।

भटकते रहते हैं वन्य जीव

लक्ष्मीपुरा के नानूराम के अनुसार, गिरधरपुरा से दामोदरपुरा पंद्रह किलोमीटर दूर है। इसके बीच में कोई जलस्त्रोत नहीं है। दामोदरपुरा से लक्ष्मीपुरा पांच किलोमीटर है। यहां भी वही स्थिति है। ऎसे में वन्य जीव पेयजल के लिए इन गांवों के बीच ही भटकते रहते हैं। गांवों में रहने वाले हजारों मवेशी भी इन्हीं जलस्त्रोतों पर निर्भर हैं। लक्ष्मीपुरा में वन विभाग के कर्मचारी ने बताया कि रात के समय लक्ष्मीपुरा में अलग-अलग समूहों में वन्यजीव पानी के लिए आते हैं। दामोदरपुरा में काफी आबादी है। वहां भी रात को अंधेरे में वन्यजीव पानी की तलाश में पहंुचते हैं।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

युवतियां और युवतियां

हिंदी के तमाम अख़बारों का युवती प्रेम समझ नहीं आता। बारिश की फुहारें पड़ रही हों तो भींगती हुई युवती की तस्वीर छपेगी। या भींगने से बचने की कोशिश करती हुई युवतियों की तस्वीर छपेगी। बाकायदा नीचे लिखते भी हैं कि बारिश की पहली फुहार में भींगती युवतियां। जैसे युवकों को फुहारें अच्छी नहीं लगती। आंधी आती हैं तो तस्वीर छपती है। नीचे लिखते हैं- खुद को संभालतीं युवतियां। गर्मी में भी युवतियों की तस्वीरें छपती हैं। कालेज खुलते हैं तो सिर्फ युवतियों की तस्वीरें छपती हैं। सीबीएसई के नतीजे के अगले दिन वाले अख़बार देखिये। तीन चार युवतियों की उछलते हुए तस्वीर होती ही है। जब भी मौसम बदलता है तो युवतियों की तस्वीरें छप जाती हैं। इन तस्वीरों को भी खास नज़र से छापा जाता है। दुपट्टा उड़ता रहे। बारिश से भींगने के बाद बूंदों से लिपटी रहे। कालेज के पहले दिन वैसे कपड़ों वाली युवतियां होती हैं जिनके कपड़े वैसे होते हैं। लेंसमैन को लगता है कि कोई लड़की टॉप में है। जिन्स में है। कहीं से कुछ दिख रहा है तो छाप दो। बस नीचे लिख दो कि तस्वीर में जो मूरत हैं वो युवती है। वो नीता गीता नहीं है।

मैं हर दिन हिंदी अखबारों में युवतियों को देख कर परेशान हो गया हूं। युवकों का भी मन मचलता होगा। युवक भी बारिश में भींगते होंगे। युवक भी कालेज में पहले दिन जाते होंगे। युवक भी सीबीएसई के इम्तहान पास करते होंगे। उनकी तस्वीरें तो छपती ही नहीं। यह मान लेने में हर्ज नहीं कि लड़कियों से सुंदर दुनिया में कुछ नहीं। मगर उस सुंदरता को एक खास नज़र से देखना तो कुंठा ही कहलाती होगी।

मुझे आज तक कोई भी लड़की नहीं मिली जो खुद को युवति कहती हो। मिसाल के तौर पर मैं सपना एक युवती हूं। लड़कियों से लड़की लोग जैसे सामूहिक संबोधन तो सुना है मगर युवती लोग या युवतियां नहीं सुना है। पता नहीं अख़बार में कहां से युवतियां आ जाती हैं। आपको कोई अख़बार का संपादक मिले तो पूछियेगा।