मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

लेकिन अमीरी रेखा क्यों नहीं

भारत में एक लाख पंद्रह हज़ार करोड़पति हो गए हैं। यह संख्या ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के लिए रेखा से ऊपर खाली जगह छोड़ती है। हज़ारपति लखपति हो गए और लखपति करोड़पति। ज़ाहिर है नीचे जगह बनी है। यह देश के ग़रीबों के लिए सुनहरा मौका है। आखिर ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों की संख्या कम तो हुई है न। वो कहां गए? क्या वो अमीरी रेखा के अनंत आसमान में बिला गए? पता नहीं चलता है। एक सरकार ने दावा किया तो लोगों ने चलता कर दिया। लगता है कि ये लोग वापस ग़रीबी रेखा के नीचे आकर शाइनिंग इंडिया का तेल कर गए।

मैं यह लेख भारत की दिर्घायु ग़रीबी पर नहीं लिख रहा हूं। अमीरों पर लिख रहा हूं। सवा लाख करोड़पतियों का देश। विश्व संपदा रिपोर्ट कहती है कि करोड़पतियों की संख्या हर साल बीस फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। रिपोर्ट यह नहीं बताती कि इसमें नए करोड़पति शामिल हो रहे हैं या वही पुराने वाले ही हो रहे हैं। क्या इसमें सरकारी महकमों में रिश्वतखोर,दलाल, दारोगा, तहसीलदार,इंजीनियर,ज़िलाधिकारी,कर चोर व्यापारी आदि को भी शामिल किया गया है? ये सब भारत के अनधिकारिक करोड़पति हैं। इनकी संख्या भी लाखों में होती। मैं कब से कह रहा हूं हमारी सामाजिक व्यवस्था में रिश्वतखोरी अब अतिरिक्त आय का साधन है। इस पर फ्रिंज बेनिफिट यानी सीमांत लाभ कर लागू होना चाहिए। इससे सरकार को धन मिलेगा और भारत का दुनिया में नाम होगा कि हमारे यहां लंदन सिंगापुर से भी ज़्यादा करोड़पति हैं। सबको शामिल नहीं कर पाने की व्यवस्था के कारण ही हमारे देश में सर्वे फेल हो जाते हैं।

और तो और नए सर्वे में करोड़पतियों के घरों को शामिल नहीं किया गया है। इससे कई लखपति करोड़पित होने से वंचित हो गए। इसमें सिर्फ व्यावसायिक संपत्ति और शेयर बाज़ार में निवेश और बचत को आधार बनाया गया है। हम सब के मकान जिसकी लागत पांच लाख रुपये हैं और बाज़ार में कीमत पचास लाख इसे शामिल नहीं किया गया है। लगता है करोड़पति क्लब को सीमित रखने की साज़िश चल रही है। खैर करोड़पति बनने से रह गए लाखों लखपतियों को हमारी तरफ से सांत्वना। वैसे भी हमारे देश में कोई कहता नहीं कि वो करोड़पति है। आप कहेंगे तो जवाब मिलेगा अरे कहां साहब। करोड़ होते तो काम करता। घर का खर्चा इतना की रात को नींद नहीं आती। सामाजिक तौर पर हम नहीं बताते कि कितना पैसा है। बेटा अपने पिता से कहेगा कि बैंक में एक रुपया नहीं। बेटे के बाप ने भी अपने बाप से यही कहा। भाई अपने भाई से छुपाता रहता है कि पैसे की कितनी तंगी है। भाभी और बहन झगड़ते रहते हैं कि कैसे पुरानी साड़ी से काम चलाई जा रही है। एक रुपया नहीं है। पैसे को लेकर झूठ बोलने का संस्कार हमारा परिवार सीखाता है। फिर किसने कहा कि वो करोड़पति है। मुझे तो सर्वे पर शक हो रहा है।

तभी देश में कौन बनेगा करोड़पति फ्लाप हो गया। पांच साल पहले जब स्टार प्लस ने पहली बार शुरू किया तो प्रोग्राम हिट हो गया। दूसरी और तीसरी बार फ्लाप हो गया। करोड़पति बनने का चार्म ख़त्म हो गया। टीवी का दर्शक दूरदर्शन के हमलोग वाले फटेहाल कलाकारों वाला नहीं रहा। वो अमीर हो चुका है। इसलिए करोड़पति बनने का सपना लुभाता नहीं।

और इसीलिए अमीरी रेखा नहीं है। इसका दायरा अनंत है। कोई भी कहीं तक जा सकता है। सौ कार की जगह हज़ार चौरासी कारों का मालिक बन सकता है। किसी अर्थशास्त्री को समझ में नहीं आया कि अमीरों के लिए रेखा कैसे बनाए? पैमाने क्या हों? कई लोगों के पास कार है टीवी है मकान है मगर आदत है कि कहेंगे कि ग़रीब हैं। ऐसा क्यों होता है?

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