रविवार, 25 दिसंबर 2011

दिल्ली की पहली FIR

दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला 1911 में किया गया था, लेकिन अंग्रेजों ने अपने राज के साथ ही यहां थाने बनाने शुरू कर दिए थे। तकरीबन चार साल तक थाने या कहिए कि फौज के भेष में ही पुलिसिंग लगभग मुगल काल के सिस्टम पर ही चलती रही थी। कानून बनाने, देश भर में जोन आदि बनाने, भर्ती करने, फोर्स की कांट-छांट कर दिल्ली में फोर्स बढ़ाने, इंग्लैंड से अफसरों और बड़े प्रशासकों की ज्यादा तादाद आने आदि में तकरीबन चार साल लग गए थे।

पहला 'सौभाग्य'
1861 में इंडियन पुलिस ऐक्ट, इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), क्रिमिनल प्रसीजर कोड (सीआरपीसी) बनाने के साथ ही अंग्रेजों ने दिल्ली में और देश भर में थानों को नया रंग-रूप देना शुरू कर दिया। 1861 में दिल्ली में पांच थाने बनाए गए। कोतवाली, सदर बाजार, महरौली, मुंडका-नांगलोई और सब्जी मंडी, लेकिन दिल्ली की पहली एफआईआर दर्ज करने का 'सौभाग्य' मिला सब्जी मंडी थाने को।

FIR से कितनी तकलीफ
पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में तकलीफ होती है, यह एक जनरल इंप्रेशन है। कई बार एफआईआर दर्ज कराने में सिफारिश लगानी पड़ती है और भी बहुत कुछ करने की बातें कही जाती हैं। छोटी-मोटी चोरी के मामले में न तो कोई पुलिस के पास आमतौर पर जाना चाहता है, न ही उसकी शिकायत पर दूसरे मामलों की तरह ही गौर होता है। हालांकि, यह अलग बात है कि हर किसी के लिए छोटी या बड़ी चोरी के मतलब उसकी अपनी हैसियत के हिसाब से अलग-अलग हैं।

कैसी थी वह पुलिस
बहरहाल, पुलिस को लेकर एक अलग तकलीफदेह इंप्रेशन है। आज इस देश में अपनी पुलिस है। दिल्ली पर पहली बार कब्जा करने वाले अंग्रेजों के उस जमाने की पुलिस कैसी रही होगी, ठीक से कहना मुश्किल है, लेकिन तकरीबन 350 साल की मुगल सल्तनत जाने के तुरंत बाद के उस जमाने में पुलिस को लेकर खौफ ही ज्यादा रहा होगा, जैसा कि 1947 तक में भी था। बड़ी-बड़ी आशंकाएं रही होंगी।

हिम्मत कैसे की
तो, उस माहौल में चोरी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कोई थाने जाने की हिम्मत कैसे करता होगा? उसे रिपोर्ट लिखवाने के लिए क्या-कुछ करना पड़ता होगा? हो सकता है कि मुगलों को बेदखल कर सत्ता संभालने वाले अंग्रेज अपनी पॉप्युलैरिटी के लिए लोगों को बुला-बुला कर कहते हों कि परचा दर्ज करा लो। यह सब अब सिर्फ सोचा ही जा सकता है। खैर, जो भी रहा हो, जिस चोरी की रिपोर्ट दर्ज हुई, वह उस वक्त के हिसाब से छोटी चोरी नहीं थी।

वह शीश महल में रहता था
दिल्ली की पहली एफआईआर 18 अक्टूबर, 1861 को सब्जी मंडी (रोशनारा रोड-आजाद मार्केट के पास पुरानी सब्जी मंडी थी) थाने में लिखी गई। इस इलाके के कटरा शीश महल में रहने वाले मयुद्दीन, पुत्र मुहम्मद यार खान ने दर्ज कराई थी यह एफआईआर। उसने दर्ज कराया कि रात में (17 अक्टूबर) उसके घर से तीन डेगचे, तीन डेगची, एक कटोरा, एक कुल्फी (संभवत: कुल्फी बनाने का फ्रेम), एक लोटा, एक हुक्का और लेडीज के कुछ कपड़े, जिनकी कीमत 45 'आने' है, चोरी हो गए।

बामड़ोला गांव में
तब इस थाने का नाम था मुंडका। अब इसका नाम है नांगलोई थाना। 29 अक्टूबर, 1861 को बामड़ोला गांव के चीना ने जो शिकायत दर्ज कराई, उसका निचोड़ यह है- चीना पुत्र देवकी राम, जाति जाट, ने शिकायत की है कि उसके घर के बाहर से दस रुपए कीमत की उसकी दो गाय चोरी कर ली गई हैं।

महरौली में 3 दिन बाद
तीसरी एफआईआर महरौली थाने की है। 2 नवंबर, 1861 को गणेशी लाल, पुत्र जोशीले लाल ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी दीवार तोड़ कर किसी ने उसका कटड़ा (भैंस का बच्चा), झोटा (भैंसा) और ग्याभन (प्रेग्नेंट) भैंस चोरी कर लिए हैं।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

रविवार, 18 दिसंबर 2011

इंदौर में बाबू के पास 15 करोड़ की संपत्ति




इंदौर। मध्य प्रदेश में लोकायुक्त व आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की ओर से जारी छापामार कार्रवाइयों में सरकारी कर्मचारियों के करोड़पति होने का खुलासा हो रहा है। इसी क्रम में रविवार को इंदौर में लोकायुक्त पुलिस ने क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ)के एक लिपिक के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई कर बड़े पैमाने पर चल-अचल संपत्ति का पता लगाया है।

लोकायुक्त पुलिस के सूत्रों ने बताया कि लिपिक रमन धुलधोए के तीन ठिकानों पर छापे मारे। इस दौरान उसके पास से खंडवा रोड पर करीब 50 बीघा जमीन और उसमें एक आलीशान मकान, एक होटल, सांवेर मार्ग पर औद्योगिक क्षेत्र में चार भूखंड,आठ बैंक खाते और गहने समेत निवेश संपत्ति संबंधी अनेक दस्तावेज जब्त किए गए हैं।

एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल उसके पास से 15 करोड़ रूपए की संपत्ति संबंधी दस्तावेज मिले हैं। सूत्रों के मुताबिक लिपिक ने अपने काम के लिए एक अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर रखा था। इसके एवज में लिपिक उसे एक निश्चित धनराशि देता था। बताया जाता है धुलधोए लंबे समय से इंदौर में पदस्थ हैं और उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की शिकायत ईओडब्ल्यू से की गई थी, इसी शिकायत के आधार पर रविवार को छापा मारा गया।

गौरतलब है कि लोकायुक्त पुलिस ने हाल ही में उज्जैन में एक चपरासी के घर छापा मारा था। छापे के दौरान चपरासी के पास से 10 करोड़ रूपए की संपत्ति बरामद हुई थी। चपरासी के घर से चार गाडियां और चार दोपहिया वाहन मिले थे। इससे पहले मंदसौर में भी एक इंजीनियर के पास भी करोड़ों रूपये की सम्पत्ति मिली थी।

तीन दिन से गायब वीना मुंबई में मिली



मुंबई। तीन दिन से लापता पाकिस्तानी कलाकार वीना मलिक का पता चल गया है। वह मुंबई में ही है। वीना मलिक के एक प्रतिनिधि ने उसके मुंबई में होने की जानकारी दी है। इस प्रतिनिधि के मुताबिक वीना मलिक ओकवुक पार्क में है। उसकी वीना से बात हुई है। इस बीच वीना मलिक ने भी कहा है कि वह लगातार शूटिंग के कारण थक गई थी। बिना किसी दखल के वह आराम कर सके इसलिए उन्होंने अपना मोबाइल बंद कर दिया था। वीना ने इस बात से इनकार किया है कि वह डिप्रेशन में हैं।

इससे पहले पाकिस्तान के समाचार पत्र द नेशन की खबर में बताया गया था कि वीना मलिक वीजा रिन्यू कराने के लिए पाकिस्तान आई हुई है। वीना मलिक के वीजा की अवधि 24 दिसंबर को समाप्त होने वाली थी। वीजा रिन्यू कराने के लिए वह वाघा बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान पहुंची थी। वीना मलिक अपने दोस्त अस्मित पटेल के साथ अमृतसर गई थी। वहां से वह बुर्का पहनकर वाघा बॉर्डर पहुंची, जहां उसके दोस्त वीना को लेने आए हुए थे। वीना मलिक लाहौर में अपने दोस्त के यहां रूकी हुई है। वीणा 45 दिनों की वीजा अवधि पर भारतीय फैशन पत्रिका के लिए फोटो शूट के लिए भारत आई थीं।

बिग बॉस सीजन 4 से सुर्खियों में आईं वीना मलिक इन दिनों एक बॉलीवुड फिल्म के साथ साथ टीवी शो की शूटिंग में व्यस्त थी। वीना शुक्रवार सुबह अचानक लापता हो गई थी। वह एक कार में बैठकर अचानक शूटिंग स्थल से गायब हो गई थी। वीना मलिक के मैनेजर को जब उसके बारे में कोई खोज खबर नहीं मिली तो उसने बांद्रा पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी।

हाल ही में एक मैगजीन के कवर पर न्यूड फोटो देकर वीना मलिक विवादों में घिर गई थी। न्यूड फोटो को लेकर वीना को जान से मारने की धमकियां भी मिल रही थी। विवाद और वीना मलिक का चोली-दामन का साथ रहा है। उल्लेखनीय है कि इसी तरह एक अन्य पाकिस्तानी अभिनेत्री लैला भी शूटिंग के दौरान अचानक गायब हो गई थी। कश्मीर से पूरे परिवार के साथ लापता लैला का आज तक कोई सुराग नहीं लगा है। लैला ने राजेश खन्ना के साथ हिंदी फिल्म में काम करने के साथ बॉलीवुड में कई फिल्में भी की।

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

वीना मलिक से पिता ने तोड़ा नाता



मुम्बई। पाकिस्तानी मॉडल और अभिनेत्री वीना मलिक के परिवार ने भी अब उससे किनारा कर लिया है। न्यूड फोटोशूट के बाद चौतरफा आलोचना झेल रही वीना मलिक के पिता ने उससे सभी संबंध समाप्त करने की घोषणा करते हुए कहा कि वीना को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। गौरतलब है कि खुद मलिक एक भारतीय फैशन पत्रिका के कवर पर प्रकाशित अपनी विवादित न्यूड तस्वीर को फर्जी बत रही है। वीना ने मैगजीन के सम्पादक को नोटिस भेज कर हर्जाने के रूप में 10 करोड़ रूपए मांगे हैं।

वीना के पिता मलिक मोहम्मद ने कहा कि जो कुछ भी हो रहा है उससे वो खुश नहीं है। मलिक ने कहा कि उन्होंने वीना से तमाम रिश्ते समाप्त कर लिए हैं। और अपनी संपत्ति से बेदखल करता हूं । मलिक ने कहा कि कोई भी महिला न्यूड तस्वीरें खिंचाने के बारे में नहीं सोच सकती और यदि उनकी बेटी ने ऎसा किया है तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।

नामवर पिता, गुमनाम पुत्र


हर कामयाब पिता चाहता है कि उसका बेटा उससे भी ज्यादा शोहरत पाए, दौलत कमाए, लेकिन कुछ मामलों में ऎसा हो नहीं पाया। बात करें देश की उन चर्चित हस्तियों की जिनके बेटे पिता के कद से बहुत पीछे रह गए। प्रदीप कुमार का नजरिया-

रवींद्रनाथ-रतींद्र नाथ टैगोर
नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की पहले बेटे थे रतींद्रनाथ टैगोर। जिनको गुरूदेव खुदसे आगे देखना चाहते थे। रतींद्रनाथ का बचपन सुख सुविधाओं और बेहतर लालन पालन के बीच बीता। अच्छी तालीम के साथ-साथ वे संस्कारवान भी थे। जानने-पहचाने वाले लोगों की राय के मुताबिक रतींद्रनाथ काफी चार्मिग व्यक्तित्व के थे। रतींद्रनाथ का विवाह गुरूदेव ने प्रतिमा देवी से कराया। प्रतिमा देवी की पहली शादी नीलानाथ मुखोपाध्याय से हुई थी, जिसके असमय निधन के बाद वो विधवा हो गई थीं।

टैगोर के परिवार में यह विधवा विवाह का पहला उदाहरण था। लेकिन ऎसा लगता है कि ये शादी रतींद्रनाथ ने पिता के दबाव में की थी। पिता के 1941 में निधन के बाद उन्होंने प्रतिमा देवी से अलग रहना शुरू कर दिया था। इस दौरान रतींद्रनाथ अपने करियर में भी कामयाब हो रहे थे। उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया और वे इस पद पर 14 मई, 1951 से लेकर 22 अगस्त, 1953 तक रहे। लेकिन पत्नी से अलग होने के बाद उनकी दूसरी महिलाओं से रिश्ते भी बनने लगे थे।

ऎसा ही एक रिश्ता उन्होंने कोलकाता की मीरा चटर्जी के साथ बनाया, जिसको ना तो उन्होंने कभी स्वीकार किया और ना ही खंडन। यह रिश्ता 1948 से शुरू हुआ था और इसके बाद उठे विवादों के चलते ही रतींद्रनाथ को विश्वभारती छोड़नी पड़ी। लेकिन वे मीरा चटर्जी को नहीं छोड़ पाए। इस घटनाक्रम के बाद वे मीरा के साथ देहरादून आ गए। गौरतलब है कि रतींद्रनाथ और मीरा के उम्र के बीच 30 साल का फासला था। बहरहाल यह संबंध रतींद्रनाथ के 1961 में निधन तक बना रहा।


महात्मा गांधी और हरिलाल गांधी
महात्मा गांधी के बेटे हरिलाल का जन्म 1888 में हुआ था, वे जब बड़े हो रहे थे तब गांधी जी भौतिक सुख सुविधाओं से दूर होने लगे थे। लिहाजा हरिलाल का बचपन अभावों में बीता। यह दंश तब और मुखर हो गया जब बड़े होने पर हरिलाल ने वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने की इच्छा जताई। लेकिन गंाधी ने उन्हें मना करते हुए कहा कि पाश्चात्य पढ़ाई की शैली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसी तरह से काम नहीं आने वाली है।

इससे नाराज हरिलाल ने 1911 में अपने परिवार से नाता तोड़ लिया। वे हमेशा आरोप लगाते रहे कि पिता ने उनका ख्याल नहीं रखा और करियर बनाने में उनकी कोई मदद नहीं की। इस नकारात्मक प्रवृति ने हरिलाल गांधी का बड़ा नुकसान किया। उनकी शादी गुलाब देवी से हुई, जिससे उनके पांच बच्चे भी हुए। इनमें से दो का निधन बाल्यावस्था में हो गया।

हरिलाल गांधी की बड़ी बेटी रामीबहन की बेटी नीलम पारिख ने हरिलाल गांधी की जीवनी लिखी-"गांधी जी लॉस्ट ज्वेल-हरिलाल गांधी"। निस्संदेह हरी लाल गांधी बापू के खो गए बेटे साबित हुए। पिता से अलगाव के बाद भी वे अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए जब राजघाट पहुंचे तो ऎसी अवस्था में थे कि ज्यादातर लोग उन्हें पहचान ही नहीं सके। बापू के जाने के बाद हरिलाल गांधी छह महीने तक भी जीवित नहीं रहे। 18 जून, 1948 को मुंबई में उनका निधन हो गया।


देवआनंद और लाड़ला सुनील आनंद
फिल्मी दुनिया में देव आनंद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। 1954 में देव आनंद ने मशहूर एक्ट्रेस कल्पना कार्तिक से शादी की। देव आनंद और कल्पना कार्तिक की सुपरस्टार जोड़ी के बेटे हैं सुनील आनंद। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद सुनील विदेश गए। अमरीकन यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन से उन्होंने बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन की पढ़ाई पूरी की।

लेकिन फिल्मी संसार के मोह से खुद को दूर नहीं रख पाए। पिता का इरादा भी बेटे को फिल्म जगत में स्थापित करने का था। एक्टिंग के गुर के साथ उन्होंने हांगकांग जाकर मार्शल आट्र्स के गुर भी सीखे। पिता ने 1984 में उनको लॉन्च करने के लिए "आनंद एंड आनंद" फिल्म बनाई। लेकिन कद्दावर पिता का बैनर और उनकी कोशिशें बेटे के काम नहीं आई। बाद में सुनील को "कार थीफ","मैं तेरे लिए" और "मास्टर" जैसी नाम मात्र की फिल्में मिलीं। फिल्मों में नाकामयाबी के दिन देखने के बाद सुनील अपने पिता के बैनर का कारोबार संभालने में जुट गए और फिल्मी दुनिया ने भी उन्हें याद नहीं रखा।

बिस्मिल्लाह खान-नैय्यर हुसैन खान
शहनाई को आम लोगों तक पहुंचाने वाले बिस्मिल्लाह खान को 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 2006 में उनके निधन के बाद उनके दूसरे बेटे नैय्यर हुसैन खान को ही उनकी विरासत बढ़ाने का मौका मिला, जो अपने पिता के साथ ही शहनाई बजाते रहे। लेकिन वे भी कोई खास नाम नहीं कर पाए। 2009 को उनके निधन के साथ ही बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की विरासत खत्म होती दिखने लगी।

वल्लभ भाई पटेल-दयाभाई पटेल
लौ ह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के बेटे थे दयाभाई पटेल। दयाभाई पटेल ने अपने पिता के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और बाद में 1952-57 में लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। बाद में वे राज्यसभा में भी गए लेकिन पिता के कद से बहुत पीछे रह गए।

विजय अमृतराज-प्रकाश अमृतराज
खेल की दुनिया में भारतीय टेनिस स्टार विजय अमृतराज को लोग अब तक नहीं भूले हैं। अपने भाई आनंद अमृतराज के साथ वे 1976 में विंबलडन मेंस डबल्स के फाइनल तक पहुंचे थे। उनकी रैंकिंग 39 तक थी। वे 20 साल तक भारतीय डेविस कप टीम में शामिल रहे। अपने बेटे को अमरीका में रखकर उसे भी टेनिस स्टार बनाना चाहा। 2 अक्टूबर, 1983 को जन्मे प्रकाश अमृतराज को मौका भी मिला। उन्हें भारतीय डेविस कप टीम में शामिल भी किया गया लेकिन प्रकाश में अपने पिता की झलक नहीं मिली और वे अब भारतीय खेल की दुनिया में लगभग गुमनाम हो चुके हैं।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

डर गई सरकार......

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर पोस्ट की जा रही आपत्तिजनक सामग्री से सरकार खफा है। सरकार ने साफ कर दिया है कि भारतीयों की भावनाओं से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा। केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी को भी भड़काऊ सामग्री परोसने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सिब्बल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सरकार प्रेस की आजादी पर पाबंदी नहीं चाहती लेकिन सोशल नेटवर्किग साइट्स को भड़काऊ सामग्री पोस्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

सिब्बल ने कहा कि सरकार सेंसरशिप में विश्वास नहीं रखती लेकिन किसी को धार्मिक भावनाओं को भड़काने की भी अनुमति नहीं दी जा सकती। सिब्बल ने कहा कि कुछ महीने पहले पता चला कि गूगल, फेसबुक और टि्वटर सहित अन्य सोशल नेटवर्किग साइट्स आपत्तिजनक सामग्री परोस रही है। इन साइट्स ने इससे होने वाले नुकसान को जाने बगैर आपत्तिजनक सामग्री को पोस्ट कर दिया।

देव आनंद को हो गया था मौत का पूर्वाभास?


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देव आनंद का फेवरिट डेस्टिनेशन था लंदन और हर तीन-चार महीने बाद वह हवा बदलने, शॉपिंग करने या मेडिकल चेकअप के लिए लंदन चले जाया करते थे। इस बार वह पूरे एक महीने का प्रोग्राम बनाकर लंदन गए थे, मगर मेडिकल चेकअप के इरादे से नहीं, जैसी कि आम चर्चा है।

पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, लंदन के वॉशिंगटन मेफेयर होटेल में अपने परमानेंट सुइट नं. 207 में बेटे सुनील के साथ दो हफ्ते से डेरा जमाए बैठे देव आनंद इस बीच एक बार भी मेडिकल चेकअप के लिए बाहर नहीं निकले, बल्कि रोज कमरा बंद कर अपनी अगली फिल्म 'हरे राम हरे कृष्ण आज' की फाइनल स्क्रिप्ट तैयार करने में घंटों-घंटों जुटे रहे।

मगर शुक्रवार 4 दिसंबर की रात दिल का जानलेवा दौरा पड़ने से पहले डिनर के दौरान बेटे सुनील के साथ बातें करते-करते जिस तरह आश्चर्यजनक रूप से इमोशनल हो उठे और अचानक दिल खोलकर उन्हें सलाह और आशीर्वाद देने लगे, उससे तो यही लगता है कि देव साहब को शायद यह पूर्वानुमान हो गया था कि इस बार वे लंदन से मुंबई नहीं लौट पाएंगे।

सुनील आनंद को पिता के साथ बिताई वह घड़ी बार-बार याद आ रही है और वह खुद से पूछ रहे हैं कि क्या सदाबहार अभिनेता को अपनी विदाई का पूर्वाभास हो गया था? सुनील ने सोमवार की सुबह देव आनंद के सहयोगी और अपने करीबी मित्र मोहन चूड़ीवाला को लंदन से फोन कर अपने मन की यह आशंका व्यक्त की और पूछा, 'डैडी बार-बार यह क्यों कह रहे थे कि सुनील, तुझे बहुत कुछ करना है... नवकेतन के लिए पिक्चरें बनानी हैं... तू कामयाब इंसान बनेगा और मैं तुझे ऊपर से, स्वर्ग के किसी कोने से हंसी-खुशी आशीर्वाद दूंगा। क्या उन्हें अपनी विदाई का एहसास हो गया था?'

पिता से उस अंतिम मुलाकात को याद कर सुनील काफी देर तक लगातार सुबकते रहे। मोहन ने उन्हें सांत्वना दी, मगर खुद भी सदमे में हैं। उन्हें इस बात का बेहद अफसोस है कि देव साहब की जिद के बावजूद इस बार वे उनके साथ लंदन के सफर पर नहीं जा सके उन्होंने बताया, 'पहले मैं हर बार देव साहब के साथ लंदन जाया करता था और हफ्ते भर में लौट आता था, मगर इस बार उनका प्रोग्राम एक महीने का था इसलिए मैं यहीं रुक गया। वैसे हर दो-तीन दिन पर उनसे फोन पर बात हो जाया करती थी।

शुक्रवार की उस शाम भी साढ़े पांच बजे उनसे मेरी बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि लंदन में काफी ठंड है और एकाध हफ्ते में लौट आऊंगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।'

सोनिया के पैर पकड़ बन गए मुख्यमंत्री

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हैदराबाद। आंध्रप्रदेश विधानसभा में सोमवार को हुई बहस ने सारी हदें पार कर दीं। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी और विपक्ष के नेता एन चंद्रबाबू नायडू के बीच तीखी तकरार हुई। नायडू ने तो यहां तक कह दिया कि आप एक नामित मुख्यमंत्री हैं। सोनिया के पैरों पर गिरने से आपको यह पद मिला है। आप सीलबंद लिफाफा हैं और आपका नेतृत्व रीढ़हीन है। मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा कि आपने तो मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने श्वसुर की पीठ में छुरा मारा था।

वीना स्वयंवर से पहले हुई न्यूड!



मुंबई। बिग बॉस -4 में अश्मित पटेल के साथ अंतरंग संबंधों को लेकर चर्चा में आई पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक एक बार फिर सुर्खियों में हैं। टीवी शो "वीना का स्वयंवर" से पहले एक मैंस मैगजिन के कवर पेज के लिए वीना का न्यूड फोटो प्रकाशित हुआ है। कवर पेज पर इस न्यूड फोटो में वीना "आईएसआई" का टेटू भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

हालांकि, शुक्रवार को "वीना का स्वयंवर" टीवी शो के एक प्रमोशन कार्यक्रम में वीना ने इस फोटो का फर्जी बताया। वीना ने कहा कि मैंने किसी भी मैगजीन के लिए न्यूड फोटा नहीं दिया। जो फोटो मैगजीन में छपा है वह फर्जी है और वह अपने कानूनी सलाहकार से इस विषय पर बातचीत करेंगी।


भट्ट की सलाह पर वीना ने मांगे 10 करोड़

मुंबई। पाकिस्तानी अदाकारा वीना मलिक के न्यूड फोटो शूट का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। वीना मलिक ने अपनी न्यूड फोटो छापने वाली पत्रिका से हर्जाने के रूप में 10 करोड़ रूपए मांगे हैं। वीना ने पत्रिका को नोटिस भेजकर यह रकम मांगी है। वीना का न्यूड फोटो जब एक पत्रिका में छपा तो उन्होंने मशहूर निर्देशक महेश भट्ट से सलाह ली।

वीना ने महेश भट्ट से पूछा कि इस मामले से कैसे निपटा जाए। महेश भट्ट ने न्यूड फोटो छापने वाली पत्रिका के खिलाफ कानूनी कदम उठाने को कहा। महेश भट्ट की सलाह मानते हुए वीना मलिक ने पत्रिका के सम्पादक कबीर शर्मा और फोटोग्राफर विशाल सक्सेना को नोटिस भेज दिया। वीना ने नोटिस मिलने के 24 घंटे के भीतर यह राशि देने की मांग की है।

साथ ही वीना ने कबीर शर्मा से पत्रिका का प्रसारण रोकने को कहा है। महेश भट्ट ने कहा कि अब पुलिस वाले ही बताएंगे कि कौन सच्चा है और कौन झूठा। गौरतलब है कि एक प्रतिष्ठित पत्रिका में वीना मलिक का न्यूड फोटो छपा था। फोटो में वीना के हाथ पर आईएसआई लिखा हुआ है। वीना का कहना है कि उसने यह फोटो शूट नहीं करवाया है। वहीं पत्रिका के सम्पादक कबीर शर्मा का दावा है कि वीना ने ही फोटो शूट करवाया था

देवानंद के बारे में क्या कहती है अभिनेत्रियां



मुंबई। देव आनंद हिन्दी सिनेमा के सबसे चर्चित सितारे रहे। एक पीढ़ी उन्हें रूपहले पर्दे पर देखकर जवान हुई। फिर उनके बच्चों ने देव आनंद को परदे पर देखा और फिर उनके बच्चों ने। देवानंद के निधन से हर कोई स्तब्ध रह गया। उनके फैंस ने ही नहीं बल्कि देव आनंद की प्रमुख अभिनेत्रियों ने भी अपने हीरो को याद किया।

मैंने गाइड के लिए न कह दिया था-वहीदा रहमान
देव के निधन से मुझे धक्का लगा। सुबह आंख खुलते ही उनके निधन का सबसे दुखद समाचार सुना। देव कई काराणों से विशेष थे। मैंने अपनी पहली हिंदी फिल्म सीआईडी उनके साथ की। वे न केवल मेरे पहले हीरो थे बल्कि मैंने सात फिल्में उनके साथ कीं। इनमें से तीन नवकेतन बैनर की थीं जिसे देव ने शुरू किया था। हमने सीआईडी, गाईड, कालाबाजार जैसी कुछ शानदार फिल्में कीं। गाईड के लिए मैंने उन्हें न कह दिया था लेकिन वे मुझे मनाते रहे औ आज मैं उनका शुक्रिया अदा करती हूं। मुझे याद है जब हमारी फिल्म हिट होती तो हम खुश होते लेकिन कोई फिल्म अच्छा नहीं कर पाती तो मैं उदास हो जाती। तब देव मुझसे कहते, कभी पीछे नहीं देखना। जो हो गया सो हो गया।

जब मैं पहली बार उनसे मिली, मैंने उन्हें देव साहब कह कर बुलाया। उन्होंने कहा, मुझे देव कह कर बुलाओ। मैं नई-नई आई थी इसलिए मेरे लिए ऎसा कहना संभव नहीं था लेकिन जब तक मैं उन्हें देव कह कर नहीं बुलाती तब तक वे मेरी बात सुनते ही नहीं थे। वे फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बेहतरीन इनसान थे। उन्होंने कभी किसी के बारे में बुरा नहीं कहा।

उन्हें काम करते देखना विटामिन टेबलेट खाने जैसा था: हेमामालिनी
देव साहब और मैंने जॉनी मेरा नाम की। मैं नई-नई आई थी और वे बहुत बड़े स्टार थे लेकिन उन्होंने मुझे ऎसा कभी महसूस नहीं होने दिया। केबल कार पर गीत वादा तो निभाया बिहार के राजगीर में फिल्माया गया था। भीड़ बेकाबू हो रही थी। उन्होंने मेरा बहुत ख्याल रखा। वे आशावादी थे। सैट पर पहुंचने वालों में वे सबसे पहले होते थे। उनके हाथ में छड़ी रहती थी। मैंने पूछा, आप यह छड़ी क्यों अपने साथ रखते हैं। उन्होंने कहा, यह उनके लिए है जो समय बर्बाद करते हैं। वे कभी थकते नहीं थे और जो उनके साथ कदम-ताल नहीं कर पाता था उसकी कभी प्रशंसा नहीं करते थे। उन्हें काम करते देखना किसी विटामिन टेबलेट खाने जैसा था।

उन्होंने भारतीय सिनेमा की धारा बदल दी: मुमताज
कोई भी देव साहब की जगह नहीं ले सकता। उन्होंने भारतीय सिनेमा की धारा ही बदल दी। वे आइकन थे। जब मैंने हरे रामा हरे कृष्णा साइन की तो
उन्होंने फिल्म उद्योग के नियम को तोड़ा। तब किसी कलाकार को एक समय में छह से अधिक फिल्म साइन करने की इजाजत नहीं थी। लेकिन देव साहब ने मुझसे कहा, तुम्हें बंबई से बाहर ले जाना मेरा काम है और वे मुझे पुलिस सुरक्षा में काठमांडू ले गए। फिल्म उद्योग ने कड़ा एतराज जताया और
उन्होंने कहा, मैंने प्रोजेक्ट के लिए उसे साइन किया है और मैं शूटिंग के लिए उसे साथ लेकर जाऊंगा। मैं देखता हूं मुझे कौन रोकता है।

अंत तक वे अपने किए में भरोसा रखते थे: जीनत अमान
देव साहब कभी थकते नहीं थे। अंत तक वे अपने किए में भरोसा रखते थे। उन्होंने पूरी लगन के साथ अपनी फिल्में बनाई। वे फ्लॉप से कभी नहीं डरते थे। अपने कैरियर में निर्भीक होकर निर्णय लेना मैंने उनसे ही सीखा।

यात्रा कठोर लेकिन आनंददायक होती थी: आशा पारेख
देव साहब कभी खाली नहीं बैठते थे। वे हमेशा सक्रिय रहते थे, आशा यह करो, आशा वह करो, वहां खड़े मत रहो, जाओ, जाओ। वे कभी नहीं रूकते थे। उनके साथ काम करना जैसे किसी एक्सप्रेस ट्रेन में सफर करने जैसा था। यात्रा कठोर लेकिन आनंददायक होती थी। वे पूर्ण फिल्मकार थे। सांस लेते, खाते यहां तक की सोते में भी उनके सामने सिनेमा ही रहता था। वे बहुत ऊर्जावान थे। सचमुच दूसरा देव आनंद कभी नहीं हो सकता।

सिनेमाई पौरूष्ा की सही व्याख्या उन्होंने ही की: वैजयंतीमाला
मैं पहली बार अमरदीप के सैट पर देव साहब से मिली। एक खूबसूरत शिष्टाचारी इनसान और हां, लंबे भी (हंसते हुए)। मेरे समय में मैं लंबी हीरोइन थी। मुझे अपने लिए एक लंबा हीरो ही चाहिए था और देव साहब सही समय पर आए। वे पढ़े-लिखे, शिक्षित, सुसंस्कृत और विद्वान थे।

रविवार, 4 दिसंबर 2011

"अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं"

मुंबई। देवानंद रविवार को दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। देवानंद के निधन की खबर सुनते ही प्रशंसकों की आखों में आंसू छलक आए। इस मौके पर हर दिल बस यही गा रहा "अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं"। इस मौके देव साहब की जिंदगी के फलसफे को साबित करता गाना "जिंदगी का साथ निभाता चलाया गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया"भी याद आ रहा है। यह गाना देव साहब की जिंदादिली की याद दिलाता है।

देेव साहब ने बिना किसी की परवाह किए हुए अपनी जिंदगी जी। 88 साल की उम्र में भी वह जिस जोश और उत्साह से काम करते रहे वह युवाओं के लिए प्रेरणा के योग्य है। देवानंद ने यह साबित कर दिया कि आदमी उम्र से नहीं मन से थकता है। देव साहब का कहना था कि वह फिल्मों से प्यार करते हैं। उनका मानना था कि आदमी गलती करता और उससे सीख लेता है। जब उनकी फिल्म असफल हो जाती थी तो वह उससे सीख लेते थे और नई फिल्म के लिए तैयार हो जाते थे ताकि पहले की गलतियां दूसरी फिल्म में न दोहराएं।

भारतीय सिनेमा जगत में लगभग छह दशक से दर्शको के दिलों पर राज करने वाले सदाबहार अभिनेता देवानंद को अदाकार बनने के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। 26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे देवानंद का झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर नहीं होकर अभिनय की ओर था। देवानंद को उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिये पैसे नहीं है और यदि वह आगे पढना चाहते है तो नौकरी कर लें। देवानंद ने निश्चय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों ना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए।
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देवानंद पर खूब हुई पुरस्कारों की बारिश मुंबई। पk भूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कारों से सम्मानित देव आनंद अपने काम यानी फिल्मों से बहुत प्यार करते थे। उनका कहना था कि वे अपने काम से कभी ऊबते व थकते नहीं। पुरस्कार पाने के लिए उन्होंने कभी काम नहीं किया लेकिन वे ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित हुए। उन्हें मिले प्रमुख पुरस्कार हैं-

2001- पk भूषण से सम्मानित।
2002- दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित।

फिल्मफेअर अवाड्र्स
1955- फिल्म मुनीमजी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1958- फिल्म कालापानी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित
1959- फिल्म लवमैरिज के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1960- फिल्म काला बाजार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1961- फिल्म हम दोनों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित
1966- फिल्म गाइड को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार
1991- फिल्मफेअर लाइफटाइम अचीचमेंट अवार्ड

अन्य
1996 - स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1997- भारतीय फिल्म उद्योग को उल्लेखनीय सेवाओं के लिए मुंबई अकेडमी ऑफ मूविंग अवार्ड्स से सम्मानित
2000- भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए अमरीका की तत्कालीन प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन के हाथों न्यूयार्क में सम्मानित
2001-भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए स्पेशल स्क्रीन अवार्ड
2003- आइफा का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2005- स्टॉकहोम में नेपाल के पहले नेशनल इंडियन फिल्म फेस्टिवल में विशेष राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित
2010- राष्ट्रीय गौरव अवार्ड
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सिर्फ 30 रूपए लेकर आए थे मुंबई मुंबई। मुंबई भारतीय सिने जगत में लगभग छह दशक से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले सदाबहार अभिनेता देवानंद को अदाकार बनने का ख्वाब हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पडा था1 26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे धर्मदेव पिशोरीमल आनंद उर्फ देवानंद का झुकाव पिता के पेशे वकालत की ओर नहीं होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्त्रातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज मे पूरी की।

देवानंद आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास पैसे नहीं है और यदि वह आगे पढ़ना चाहते है तो नौकरी कर लें। देवानंद ने निश्चय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों न फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए। जब देवानंद ने पिता से फिल्म इंडस्ट्री में काम करने की अनुमति मांगी तो पहले तो उन्होंने इन्कार कर दिया लेकिन बाद में पुत्र की जिद के आगे झुकते हुए उन्हें इसकी अनुमति दे दी।

वर्ष 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुम्बई पहुंचे तो उनके पास मात्र 30 रूपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था1 देवानंद ने यहां पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे जो देवानंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। देवानंद भी उन्हीं की तरह फिल्म इंडस्ट्री में बतौर अभिनेता काम करने के लिए संघर्ष करने लगे लेकिन इससे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ।

जब काफी दिन यूं ही गुजर गये तो देवानंद ने सोचा कि यदि उन्हें मुंबई में रहना है तो जीवन-यापन के लिए नौकरी करनी पड़ेगी चाहे वह कैसी भी नौकरी क्यों न हो। अथक प्रयास के बाद उन्हें मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में लिपिक की नौकरी मिल गई। यहां उन्हें सैनिको की चिçटयों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। इस काम के लिए देवानंद को 165 रूपए मासिक वेतन मिलना था जिसमें से 45 रूपए वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे।