रविवार, 25 दिसंबर 2011

दिल्ली की पहली FIR

दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला 1911 में किया गया था, लेकिन अंग्रेजों ने अपने राज के साथ ही यहां थाने बनाने शुरू कर दिए थे। तकरीबन चार साल तक थाने या कहिए कि फौज के भेष में ही पुलिसिंग लगभग मुगल काल के सिस्टम पर ही चलती रही थी। कानून बनाने, देश भर में जोन आदि बनाने, भर्ती करने, फोर्स की कांट-छांट कर दिल्ली में फोर्स बढ़ाने, इंग्लैंड से अफसरों और बड़े प्रशासकों की ज्यादा तादाद आने आदि में तकरीबन चार साल लग गए थे।

पहला 'सौभाग्य'
1861 में इंडियन पुलिस ऐक्ट, इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), क्रिमिनल प्रसीजर कोड (सीआरपीसी) बनाने के साथ ही अंग्रेजों ने दिल्ली में और देश भर में थानों को नया रंग-रूप देना शुरू कर दिया। 1861 में दिल्ली में पांच थाने बनाए गए। कोतवाली, सदर बाजार, महरौली, मुंडका-नांगलोई और सब्जी मंडी, लेकिन दिल्ली की पहली एफआईआर दर्ज करने का 'सौभाग्य' मिला सब्जी मंडी थाने को।

FIR से कितनी तकलीफ
पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में तकलीफ होती है, यह एक जनरल इंप्रेशन है। कई बार एफआईआर दर्ज कराने में सिफारिश लगानी पड़ती है और भी बहुत कुछ करने की बातें कही जाती हैं। छोटी-मोटी चोरी के मामले में न तो कोई पुलिस के पास आमतौर पर जाना चाहता है, न ही उसकी शिकायत पर दूसरे मामलों की तरह ही गौर होता है। हालांकि, यह अलग बात है कि हर किसी के लिए छोटी या बड़ी चोरी के मतलब उसकी अपनी हैसियत के हिसाब से अलग-अलग हैं।

कैसी थी वह पुलिस
बहरहाल, पुलिस को लेकर एक अलग तकलीफदेह इंप्रेशन है। आज इस देश में अपनी पुलिस है। दिल्ली पर पहली बार कब्जा करने वाले अंग्रेजों के उस जमाने की पुलिस कैसी रही होगी, ठीक से कहना मुश्किल है, लेकिन तकरीबन 350 साल की मुगल सल्तनत जाने के तुरंत बाद के उस जमाने में पुलिस को लेकर खौफ ही ज्यादा रहा होगा, जैसा कि 1947 तक में भी था। बड़ी-बड़ी आशंकाएं रही होंगी।

हिम्मत कैसे की
तो, उस माहौल में चोरी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कोई थाने जाने की हिम्मत कैसे करता होगा? उसे रिपोर्ट लिखवाने के लिए क्या-कुछ करना पड़ता होगा? हो सकता है कि मुगलों को बेदखल कर सत्ता संभालने वाले अंग्रेज अपनी पॉप्युलैरिटी के लिए लोगों को बुला-बुला कर कहते हों कि परचा दर्ज करा लो। यह सब अब सिर्फ सोचा ही जा सकता है। खैर, जो भी रहा हो, जिस चोरी की रिपोर्ट दर्ज हुई, वह उस वक्त के हिसाब से छोटी चोरी नहीं थी।

वह शीश महल में रहता था
दिल्ली की पहली एफआईआर 18 अक्टूबर, 1861 को सब्जी मंडी (रोशनारा रोड-आजाद मार्केट के पास पुरानी सब्जी मंडी थी) थाने में लिखी गई। इस इलाके के कटरा शीश महल में रहने वाले मयुद्दीन, पुत्र मुहम्मद यार खान ने दर्ज कराई थी यह एफआईआर। उसने दर्ज कराया कि रात में (17 अक्टूबर) उसके घर से तीन डेगचे, तीन डेगची, एक कटोरा, एक कुल्फी (संभवत: कुल्फी बनाने का फ्रेम), एक लोटा, एक हुक्का और लेडीज के कुछ कपड़े, जिनकी कीमत 45 'आने' है, चोरी हो गए।

बामड़ोला गांव में
तब इस थाने का नाम था मुंडका। अब इसका नाम है नांगलोई थाना। 29 अक्टूबर, 1861 को बामड़ोला गांव के चीना ने जो शिकायत दर्ज कराई, उसका निचोड़ यह है- चीना पुत्र देवकी राम, जाति जाट, ने शिकायत की है कि उसके घर के बाहर से दस रुपए कीमत की उसकी दो गाय चोरी कर ली गई हैं।

महरौली में 3 दिन बाद
तीसरी एफआईआर महरौली थाने की है। 2 नवंबर, 1861 को गणेशी लाल, पुत्र जोशीले लाल ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी दीवार तोड़ कर किसी ने उसका कटड़ा (भैंस का बच्चा), झोटा (भैंसा) और ग्याभन (प्रेग्नेंट) भैंस चोरी कर लिए हैं।

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