मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

देव आनंद को हो गया था मौत का पूर्वाभास?


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देव आनंद का फेवरिट डेस्टिनेशन था लंदन और हर तीन-चार महीने बाद वह हवा बदलने, शॉपिंग करने या मेडिकल चेकअप के लिए लंदन चले जाया करते थे। इस बार वह पूरे एक महीने का प्रोग्राम बनाकर लंदन गए थे, मगर मेडिकल चेकअप के इरादे से नहीं, जैसी कि आम चर्चा है।

पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, लंदन के वॉशिंगटन मेफेयर होटेल में अपने परमानेंट सुइट नं. 207 में बेटे सुनील के साथ दो हफ्ते से डेरा जमाए बैठे देव आनंद इस बीच एक बार भी मेडिकल चेकअप के लिए बाहर नहीं निकले, बल्कि रोज कमरा बंद कर अपनी अगली फिल्म 'हरे राम हरे कृष्ण आज' की फाइनल स्क्रिप्ट तैयार करने में घंटों-घंटों जुटे रहे।

मगर शुक्रवार 4 दिसंबर की रात दिल का जानलेवा दौरा पड़ने से पहले डिनर के दौरान बेटे सुनील के साथ बातें करते-करते जिस तरह आश्चर्यजनक रूप से इमोशनल हो उठे और अचानक दिल खोलकर उन्हें सलाह और आशीर्वाद देने लगे, उससे तो यही लगता है कि देव साहब को शायद यह पूर्वानुमान हो गया था कि इस बार वे लंदन से मुंबई नहीं लौट पाएंगे।

सुनील आनंद को पिता के साथ बिताई वह घड़ी बार-बार याद आ रही है और वह खुद से पूछ रहे हैं कि क्या सदाबहार अभिनेता को अपनी विदाई का पूर्वाभास हो गया था? सुनील ने सोमवार की सुबह देव आनंद के सहयोगी और अपने करीबी मित्र मोहन चूड़ीवाला को लंदन से फोन कर अपने मन की यह आशंका व्यक्त की और पूछा, 'डैडी बार-बार यह क्यों कह रहे थे कि सुनील, तुझे बहुत कुछ करना है... नवकेतन के लिए पिक्चरें बनानी हैं... तू कामयाब इंसान बनेगा और मैं तुझे ऊपर से, स्वर्ग के किसी कोने से हंसी-खुशी आशीर्वाद दूंगा। क्या उन्हें अपनी विदाई का एहसास हो गया था?'

पिता से उस अंतिम मुलाकात को याद कर सुनील काफी देर तक लगातार सुबकते रहे। मोहन ने उन्हें सांत्वना दी, मगर खुद भी सदमे में हैं। उन्हें इस बात का बेहद अफसोस है कि देव साहब की जिद के बावजूद इस बार वे उनके साथ लंदन के सफर पर नहीं जा सके उन्होंने बताया, 'पहले मैं हर बार देव साहब के साथ लंदन जाया करता था और हफ्ते भर में लौट आता था, मगर इस बार उनका प्रोग्राम एक महीने का था इसलिए मैं यहीं रुक गया। वैसे हर दो-तीन दिन पर उनसे फोन पर बात हो जाया करती थी।

शुक्रवार की उस शाम भी साढ़े पांच बजे उनसे मेरी बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि लंदन में काफी ठंड है और एकाध हफ्ते में लौट आऊंगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।'

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