रविवार, 9 जनवरी 2011

दहेज नहीं दिया तो कुत्ते से करवाया सेक्स

------इस समाचार को पड़ने से बाद ये जरुर सोचिया की ऐसे लोगो को क्या सजा मिलनी चाहिए -------

मुंबई। दहेज ने देने पर मारपीट करने या जिंदा जला देने की घटनाएं तो आपने सुनी होंगी लेकिन मुंबई में दहेज प्रताड़ना का ऎसा घिनौना वाकया सामने आया है जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। मुंबई की एक महिला को दहेज न लाने पर उसे ससुराल वालों ने जमकर पीटा और इतने पर भी चैन मिला तो महिला के साथ अपने पालतू कुत्ते से जबरदस्ती सेक्स करवाया।

मुंबई के सियोन इलाके की रहने वाली रूचिका अग्रवाल (परिवर्तित नाम) का आरोप है कि उसके ससुराल वालों ने काफी समय तक उसे दहेज के लिए प्रताडित किया और उसे लोहे की रॉड से पीटा। रूविका के अनुसार ससुराल वालों ने रविवार शाम को उसे पालतू कुत्ते के साथ सेक्स करने के लिए बाध्य किया। रूचिका ने इस घटना की शिकायत अपने मां बाप से की जिसके बाद घरवाले उसे ससुराल से बचाकर लाए।

रूचिका के मां बाप ने इस बात को स्वीकारा कि ससुराल वालों ने उसे तरह तरह की प्रताड़नाएं दी, लोहे की रॉडसे पीटा जिससे वह जख्मी हो गई और इसके बाद उसे कुत्ते के साथ सेक्स करवाया। रूचिका को सियोन अस्पताल में भर्ती करवाया या है। रूचिका के पिता ने ससुरालियों के खिलाफ धारावी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करवा लिया है। रूचिका के पिता का आरोप है कि ससुरालियों ने 5 लाख रूपए दहेज की मांग की लेकिन वे केवल 2 लाख रूपए ही दे पाए । इसके बाद उन्होंने रूविका को लगातार प्रताडित किया और उसके देवर ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की। पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

हे भगवन कहा जा रहे है हम

न्याय के लिए भटक रही भगत सिंह की भांजी


होशियारपुर। देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए शहीद ए आजम भगत सिंह के परिजन आज अपने एक रिश्तेदार को न्याय दिलाने के लिए पिछले 21 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। ऎसा माना जाता है कि जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था उस दौरान पुलिस ने उनके रिश्तेदार की हत्या कर दी थी। वह 1989 से ही लापता हैं।

भगत सिंह की भांजी सुरजीत कौर के परिवार को उम्मीद है कि वे 45 वर्षीय कुलजीत सिंह दहत के लिए न्याय हासिल कर सकेंगी। अम्बाला के जत्तन गांव के रहने वाले कुलजीत 1989 में रहस्यमय ढंग से गायब हो गए थे।

सुरजीत कौर, भगत सिंह की छोटी बहन प्रकाश कौर की बेटी हैं। वह कहती हैं कि उनके नजदीकी रिश्तेदार कुलजीत को 1989 में होशियारपुर के गरही गांव से पंजाब पुलिस ने पकड़ा था। उन दिनों (1981-95) पंजाब में सिख आतंकवाद चरम पर था।

इसी सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय को मामला समाप्त करने के दिशा-निर्देश दिए हैं और होशियारपुर के सत्र न्यायालय को इस साल के मार्च तक मामले में सुनवाई पूरी करने के लिए कहा है। जिसके बाद से सुरजीत को न्याय मिलने की उम्मीद है।

सुरजीत का परिवार 1989 से ही कुलजीत की रिहाई के लिए प्रयासरत था। बाद में पुलिस ने कहा कि जब कुलजीत को हथियारों की पहचान के लिए ब्यास नदी के नजदीक ले जाया गया था तो वह उसकी गिरफ्त से निकलकर भाग गया था।

प्रकाश कौर ने सितम्बर 1989 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग गठित किया। आयोग ने अक्टूबर 1993 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में पंजाब पुलिस अधिकारियों की ओर इशारा किया गया और कहा गया कि पुलिस की कुलजीत के भागने की कहानी काल्पनिक है।

सुरजीत ने बताया कि जांच रिपोर्ट आने के बावजूद अक्टूबर 1996 तक मामले में कुछ नहीं हुआ। साल 1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में पंजाब पुलिस के पांच अधिकारियों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने का आदेश दिया। कई सुनवाईयों और 21 साल तक चली लम्बी लड़ाई के बावजूद हम मामले में न्याय मिलने की उम्मीद कर रहे हैं।

इनके लिए ये ही जीवन है इसके बाद साइकल पर लाश ढोते पिता को जरुर देखो

शायद ऐसा दृश कभी देखा नहीं होगा

आजादी के ६ दशक में कहा पहुचे हम

मामला अनूपपुर का है, कहते हैं मौत के बाद भी सुकून नहीं मिलता। यह बात सच्चाई में तब्दील हो गई। मौत के बाद अमानवीयता की एक बानगी सामने आई। शव वाहन के अभाव में हालात यह बने कि एक आदिवासी गरीब परिवार के युवक की अस्पताल में मौत हो जाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए पिता को अपने किशोर बेटे के शव को साइकिल पर लादकर 25 किलोमीटर दूर ले जाना पड़ा।

दुधमनिया निवासी 17 वर्षीय सोहागा पुत्र गोकुल गोंड की उल्टी-दस्त के कारण शुक्रवार शाम मौत हो गई। शनिवार को शव का पोस्टमार्टम किया जाना था। 12 घंंटे तक चली पुलिसिया कार्रवाई व जांच अधिकारियों के इंतजार के बाद युवक के शव को वाहन नहीं मिला। इस कारण पिता को अपने बेटे के शव को साइकिल पर लादकर जिला मुख्यालय ले जाना पड़ा।

गौरतलब है कि जिला अस्पताल में लंबे समय से शव वाहन की कमी बनी हुई है, लेकिन अधिकारियों के साथ ही जनप्रतिनिधियों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही। मध्याह्न में शव का पोस्टमार्टम हुआ तब पिता अपने बेटे का शव फिर से साइकिल पर वापस ले जा सका। हैरत की बात यह है कि उसकी इस दशा पर किसी को भी तरस नहीं आया। मानवता पथरा सी गई और किसी ने भी उसकी मदद को हाथ नहीं बढ़ाया।