बुधवार, 7 अप्रैल 2010

दरा का "दिल" छलनी






राजेश त्रिपाठी

कोटा। दरा अभयारण्य का "दिल" कहे जाने वाले गिरधरपुरा से लक्ष्मीपुरा क्षेत्र तक जीवन का आधार "हरियाली" का "कत्लेआम" जारी है। इसे "देखने" व "रोकने" वाला कोई नजर नहीं आता। नजरें उठाकर देखें तो जहां-तहां "हरे-भरे" पेड़ों की जगह कटे हुए "ठूंठ" नजर आते हैं। यह जंगल हाडोती का सर्वाधिक सघन वन क्षेत्र है। कई स्थानों पर इसकी सघनता और विविधता रणथम्भौर से भी "उन्नत" मानी जाती है। हां, वनकर्मियों की मौजूदगी के चलते इस अभयारण्य के "मुख्य द्वार" के आसपास सघन हरियाली बची हुई है।

गिरधरपुरा से लक्ष्मीपुरा तक कटाई
गिरधरपुरा गांव आने से पहले ही जगह-जगह पेड़ों के ठूंठ नजर आने लगते हैं। पत्रिका संवाददाता जब मौके पर पहुंचा तो गांव के तालाब के पास लोगों ने हरे वृक्षों को आधा काटकर गिरा रखा था। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश लोग इसी तरह से पेड़ों की कटाई करते हैं। वे पेड़ को आधा काट कर छोड़ देते हैं और पेड़ के सूखने पर उसे ले जाते हैं। गिरधरपुरा से आगे भी बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए हैं। यहां से आंबापानी और दामोदरपुरा तक काफी लंबे वन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई हो रही है।

परिवार 25, मवेशी 2500!
दरा में बसे गांवों में परिवारों की संख्या कम और मवेशी अधिक हैं। कई जगह तो 25-30 परिवारों के गांव में मवेशियों की संख्या सौ गुना तक है। ये मवेशी जंगल में ही चराई करते हैं और यहीं उनका दूध निकालकर गर्म किया जाता है, जिसके ईंधन के लिए ये लोग हरे-भरे पेड़ों को काट देते हैं। इसके अलावा जंगल की लकड़ी को जलाकर खाना बनाने के काम में भी लिया जा रहा है।

चट कर रही है दीमक
हालांकि यहां बड़ी तादाद में पेड़ स्वत: भी गिर जाते हैं तो कुछ अधिक पुराने होने के कारण धराशायी हो जाते हैं। पूरे इलाके में ऎसे हजारों सूखे पेड़ जमीन पर पड़े हैं, लेकिन इन पेड़ों का न तो कोई इस्तेमाल कर रहा है और न ही ले जा रहा है। कई पेड़ों के आसपास दीमक भी हैं, जो लकड़ी को चट कर रही हैं।

प्रयास न हो जाएं विफल
दरा अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान बनाने के लिए कोटा के विभिन्न संगठन प्रयासरत हैं। ऎसे में यहां की "हरियाली" पर बेधड़क चल रही कुल्हाड़ी जंगल के साथ ही राष्ट्रीय उद्यान बनाने के प्रयासों को भी धक्का पहुंचा सकती है।

"ठूंठ" का शासन!
दरा अभयारण्य में गिरधरपुरा से लक्ष्मीपुरा तक क्षेत्र में पेड़ों की अवैध अंधाधुंध कटाई जारी है, जिसे देखने वाला यहां कोई नहीं। वर्तमान में हाडोती के इस सघन वन क्षेत्र के हालात ऎसे हैं कि कई जगह तो पता ही लगता कि किसी सपाट मैदान में खड़े हैं या अभयारण्य क्षेत्र में।

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