शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले......
आजादी के बाद देश ने उस जंजीर को तो संघरालय में संभाल कर रखा. जिससे महात्मा गाँधी अपनी बकरी को बांध कर रखते थे.लेकिन देश ने उस फंदे को नहीं संभाला जिससे भगत सिंह को फांसी पर चदाया गया था. ये फोटो लाहौर जेल का haजहा भगत सिंह को फांसी दी गई थी.
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