बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

फिल्मों में दारोगा का प्रमोशन हो गया है।

जगदीश राज और इफ्तिख़ार की याद आ गई। सब-इंस्पेक्टर और इंस्पेकटर का किरदार इन्हीं दो के नाम रहा। पर्दे पर जब भी आए दारोगा बन कर। अमिताभ,शशि कपूर और शत्रुध्न सिन्हा जैसे बड़े कलाकारों ने भी अपनी फिल्मों दारोगा की वर्दी पहनी है। लेकिन अब फिल्मों से दारोगा का रोल गायब हो रहा है। सेंट्रल कैरेक्टर में दारोगा कब से नहीं है। इस बीच में शायद शूल ही एक फिल्म रही जिसमें दारोगा का रोल महत्वपूर्ण रहा। वर्ना अब इन सारे दारागाओं का प्रमोशन हो गया है। सरफरोश में आमिर खान ने एसीपी की भूमिका अदा की थी। वेडनेसडे में अनुपम खेर पुलिस कमिश्नर बनते हैं। जिस तरह से सिनेमा से फ्रंट स्टाल गायब हो गए उसी तरह से फिल्मों से हमारी ज़िंदगी के आस-पास के ये किरदार भी गायब कर दिए गए। सदाशिव अमरापुरकर और ओम पुरी ने दारोगा के किरदारों की विभत्सता को बखूबी उभारा था। इन किरदारों में एक किस्म की चुनौती होती थी। वो भिड़ते थे और जान भी दे देते थे। वेडनेसडे में पुलिस कमिश्नर अनुपम खेर को कंप्यूटर की हैकिंग के बारे में पता तक नहीं। पंद्रह साल का एक बच्चा आकर मदद करता है। लगता है अब जल्दी ही फिल्मों पुलिसवाले रिटायर्ड अफसर की भूमिका में आयेंगे। दारोगा से कमिश्नर बनने के बाद तो अगली सीढ़ी वही बचती है। सक्सेना और माथुर अब रिटायर्ड होने के बाद किसी घोर आतंकवादी संकट में सरकार की मदद करेंगे। प्रेमचंद ने दारोगा का अलग चित्रण किया है। मेरी मामी कहा करती थीं कि दारोगा का मतलब होता द रो गा के। यानी रोते गाते रहिए लेकिन घूस दीजिए।

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