रविवार, 21 फ़रवरी 2010

...तो नहीं होती 1857 की क्रांति!

अंग्रेज शासकों ने कर्नल स्लीमन की बात मानी होती तो 1857 की क्रांति टल सकती थी। यह कहना है कर्नल विलियम हेनरी स्लीमन की सातवीं पीढ़ी के वंशज स्टुअर्ट फिलिप स्लीमन का। लंदन निवासी स्टुअर्ट फिलिप स्लीमन, ससेक्स निवासी भाई जेरेमी विलियम स्लीमन के साथ पहली भारत यात्रा पर आए हुए हैं।

स्टुअर्ट के अनुसार कर्नल विलियम हेनरी स्लीमन ने वर्ष 1856 में तत्कालीन अंगे्रज अधिकारियों को लिखे पत्र में अवध की गद्दी पर कब्जा करने से मना किया था। अंग्रेज अधिकारी यदि कर्नल स्लीमन की बात गंभीरता से लेते तो 1857 की क्रांति को टाला जा सकता था। स्टुअर्ट ने बताया कि मेजर जनरल सर विलियम हेनरी स्लीमन (केसीबी) 1857 के पहले ही स्वदेश लौटे, जहां रास्ते में श्रीलंका के समीप उनकी मृत्यु हो गई। स्टुअर्ट और जेरेमी 16 जनवरी को नई दिल्ली आए और दो दिन पूर्व जबलपुर पहुंचे। शहर आने के बाद दोनों बंधुओं ने जबलपुर और स्लीमनाबाद में कर्नल स्लीमन की स्मृतियों से जुड़े हुए स्थानों का भ्रमण किया। हेरिटेज इंडिया के संस्थापक रमेश गठौरिया ने दोनों बंधुओं का ड्रीमलैण्ड फन पार्क में सम्मान भी किया। सेवानिवृत हो चुके जेरेमी स्लीमन शहर की छह यात्राएं कर चुके है।

कर्नल स्लीमन से जुड़ी यादों को साझा करते हुए बंधुओं ने बताया कि कर्नल स्लीमन ने 96 एकड़ जमीन भूमिहीनों को दान की थी। ठगों के उन्मूलन के साथ उनके रोजगार के उद्देश्य से दरी का कारखाना खोला था। बाद के वर्षो में इस जगह का नाम दरीखाना मशहूर हो गया। स्टुअर्ट और जेरेमी ने क्राइस्ट चर्च केथेड्रिल जाकर सर स्लीमन के सम्मान में लगी पिका भी देखी। स्लीमन रोड पर चहलकदमी करते हुए अपने पूर्वज की याद भी जेरेमी और स्टुअर्ट ने ताजा की। बंधुओं ने सर विलियम स्लीमन की यादों को अक्ष्क्षुण बनाए रखने के लिए स्लीमन सम्मान समिति के सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया।

कौन थे स्लीमन
कर्नल स्लीमन का जबलपुर के विकास में खासा योगदान रहा। शहर के करीब एक कस्बे को उन्हीं के नाम (स्लीमनाबाद) से जाना जाता है। ख्यात ठग पिंडारियों के उन्मूलन का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।

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