मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

सदी का महा नालायक.....अमिताभ


अमिताभ बच्चन पर्दे के बाहर भी कलाकार का ही जीवन जीते हैं। पैसा दो और कुछ भी करा लो। कांग्रेस में राजीव गांधी की डुग्गी बजाने के बाद छोटे भाई अमर सिंह के साथ सैफई तक जाकर नाच आए। मुलायम सरकार ने पैसे दिये तो गाने लगे यूपी में हैं दम क्योंकि जुर्म यहां है कम। सारी दुनिया हंसने लगी। जिस प्रदेश का चप्पा चप्पा अपराध में डूब गया हो,वहां फिर से पैदा होने की ख्वाहिश का महानायक पर्दे पर एलान करता है। समाजवादी पार्टी को लगा कि उनकी पार्टी और सरकार को ब्रांड अबेंसडर मिल गया।पूरे चुनाव प्रचार में इस ब्रांड अंबेसडर का टायर पंचर कर दिया गया। अब अमिताभ बच्चन पहुंचे हैं नरेंद्र मोदी के पास। इस एलान के साथ कि कोई भी पैसा दे दे और उनसे कुछ भी बुलवा ले। शायद यही वो कलाकार है जिससे सिगरेट कंपनियां पैसे देकर बुलवा सकती हैं कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। अमिताभ बोल भी देंगे कि भई पैसे मिले हैं,हम कलाकार हैं और इस विज्ञापन को भी किरदार समझ कर कर दिया है। अमिताभ आज की मीडिया के संकट का प्रतीक है। अपनी विश्वसनीयता का व्यापार करने का प्रतीक। वैसे इनकी विश्वसनीयता तो काफी समय से सवालों के घेरे में हैं।अब नरेंद्र मोदी को झांसा देने पहुंचे हैं। गुजरात सरकार के पर्यटन विभाग के ब्रांड अंबेसडर बनकर। जिस मोदी को देश के तमाम बड़े उद्योगपति प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे,उस मोदी के बगल में बैठ कर वो पा के टैक्स फ्री होने का मामूली ख्वाब देख रहे थे। ख़बरों के मुताबिक यहीं पर अमिताभ ने नरेंद्र मोदी से ब्रांड अंबेसडर बनने की पेशकश की थी। आज उनका सपना पूरा हो गया। वैसे भी नरेंद्र मोदी राजनीति में परित्याग की वस्तु तो हैं नहीं। वो एक दल में हैं,जिसकी कई राज्यों में सरकार है। लेकिन गुजरात दंगों के संदर्भ में मोदी राजनीतिक रूप से ही देखे जायेंगे। यह दलील नहीं चलेगी कि वे मोदी का राजनीतिक विरोध करते हैं लेकिन सरकार से परहेज़ भी नहीं करते। अगर ऐसा है तो कम से कम यही कहें कि सरकार तो गुजरात की जनता की है। उसके किसी भी फैसले का सम्मान तो किया ही जाना चाहिए। पर अमिताभ जी उस सम्मान का मतलब यह नहीं कि बिना अपनी राजनीति साफ किये नरेंद्र मोदी के साथ हो लेना चाहिए। राजनीति साफ करने की उम्मीद इसलिए है क्योंकि पिछले हफ्ते तक अमिताभ समाजवादी पार्टी का गुणगान कर रहे थे,उससे पहले कांग्रेस का कर चुके हैं और अब गुजरात के पर्यटन विभाग का करेंगे। अमिताभ की एक दलील हो सकती है कि वो गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ये सब कर रहे हैं। पर ऐसा क्यों है कि पर्दे पर अभिनय के नये प्रतिमान कायम करते रहने वाले अमिताभ राजनीति के बारे में साफ राय नहीं रख पाते। गुजरात के लिए ज़रूर कुछ करना चाहिए लेकिन वो ब्रांड अंबेसडर बन कर ही क्यों? इससे तो किसी राज्य की सेवा नहीं होती। ब्रांड अंबेसडर बिल्कुल व्यावसायिक गठबंधन होता है। राजनीति में अमिताभ छोटे भाई अमर सिंह के बड़े भाई हैं। जो पिछले हफ्ते ही मुलायमवादी से समाजवादी हुए हैं और लोकमंच बनाकर यूपी में घूमने निकले हैं। क्या अमिताभ छोटे भाई के नए मंच के भी ब्रांड अंबेसडर होने वाले हैं? अगर इसमें कोई दिक्कत नहीं तो क्या मोदी यूपी सरकार के ब्रांड अंबासडर बन सकते हैं? क्या क्रांस ब्रांडिंग हो सकती है? मेरा तुम करो और तुम्हारा मैं करता हूं। छोटे भाई के परिवार का यह बड़ा भाई नरेंद्र मोदी का ब्रांड अंबेसडर बन कर लोकमंच का प्रचार करेगा या नहीं,कहना मुश्किल है। अमिताभ को बताना चाहिए कि वे नरेंद्र दामोदर मोदी की राजनीति का समर्थन करते हैं या नहीं। गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका के बारे में साफ करना चाहिए। वो पर्यटन का बहाना न बनाए। अमिताभ के ब्रांड दूत बनने से पहले गुजरात कोई भूखा मरने वाला राज्य नहीं हैं। देश का नंबर वन राज्य है। यह मानना मुश्किल है अमिताभ ने सच्चे सेवा भाव से किया है। समाजवादी पार्टी में दरकिनार कर दिये जाने के बाद ही अमर सिंह को मायावती की पीड़ा समझ आ रही है। उससे पहले वो मायावती के बारे में कैसे बात करते थे,लोगों को याद होगा। अमिताभ अक्सर कहते हैं कि वे राजनीति से दूर हैं। लेकिन मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह जैसे घाघ राजनेताओं की संगत में खूब जम कर रहे। अपनी पत्नी जया बच्चन को राज्य सभा में भेजा। अब जया भी अमर सिंह के साथ इस्तीफा नहीं दे रही हैं। दरअसल वे कभी सियासत की संगत से दूर ही नहीं रहे। कभी किसान बन कर ज़मीन लेने चले जाने का आरोप लगता है तो कभी ब्रांड दूत बन कर एक प्रदेश की जनता का सेवक होने का भाव जगाते हैं। अमिताभ इसीलिए एक मामूली कलाकार हैं। पर्दे पर मिली शोहरत की हर कीमत वसूल लेना चाहते होंगे। पर्दे पर पैसे की ताकत से लड़ने वाले किरदारों में ढल कर यह कलाकार महानायक बना लेकिन असली ज़िंदगी में पैसे की ताकत के आगे नतमस्तक होकर महानालायक लगता है।

1 टिप्पणी: