गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

...लेकिन "अंधेरे" में देश का "केन्द्र"

राजेश त्रिपाठी/हीरेन जोशी


करौंदी, (जबलपुर)। सुप्रभात भारत, नए साल की प्रभात वेला में पूरे देश में नए संकल्पों का उजियारा फैल रहा है, लेकिन देश के केन्द्र बिन्दु तक विकास की उजास अब तक नहीं पहुंच सकी है। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर के पास कटनी जिले में विंध्य पर्वतमाला की केंचुआ पहाडियों की ढलान स्थित देश के इस भौगोलिक केन्द्र बिन्दु तक आजादी के 63 साल बाद भी विकास की रोशनी नहीं पहुंची है।

मिट गई पहचान
आजादी के बाद डॉ.राममनोहर लोहिया की प्रेरणा से जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य एस.पी.चक्रवर्ती की अगुआई में अनुसंधान शुरू किया गया। पता चला कि 23-30-48 उत्तरी अक्षांश, 80-19-53 पूर्वी देशांतर तथा समुद्र तल से 389.53 मीटर की ऊंचाई पर देश का भौगालिक केन्द्र बिन्दु है। डॉ. लोहिया ने यहां एक अंतरराष्ट्रीय आदर्श गांव बनाने का संकल्प लिया था। लोहिया के निधन के वर्षो बाद 1987 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर यहां आए और एक स्मारक बना। इस स्थान का नाम मनोहरगांव रखा गया, पर इससे आगे कुछ नहीं हो सका। आज स्मारक जर्जर हो चुका है। इस पर लोगों ने अपने नाम लिख रखे हैं। एक तरफ से इसकी पियां उखाड़ी जा रही हैं।

"शायद...शासन का केन्द्र है"
केन्द्र बिन्दु से 200 मीटर दूरी पर ही रह रहे स्थानीय निवासी सहदेव से बात की तो उसने बताया कि शायद यहां शासन का कोई मध्य बिन्दु है। पीने के पानी के लिए 1.5 किलोमीटर जाना पड़ता है। इतनी ही दूरी पर एक प्राथमिक शाला है। इलाज के लिए 8 किलोमीटर दूर बनेपान गांव जाना पड़ता है। केन्द्र बिन्दु से 500 मीटर दूर ही खेल रहे बच्चों ने बताया कि वे आज तक स्कूल नहीं गए हैं।

"पत्रिका" पहुंचा, देखे हालात
पत्रिका संवादाताओं ने 23-30-48 उत्तरी अक्षांश, 80-19-53 पूर्वी देशांतर तथा समुद्र तल से 389.53 मीटर की ऊंचाई पर देश के ठीक बीचो-बीच जाकर हालात देखे तो दंग रह गए। हम 21वीं सदी के दूसरे दशक के पहले वर्ष की पहली भोर में कदम रख रहे हैं पर देश के भौगोलिक केन्द्र पर बसे गांव में बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, चिकित्सा की प्राथमिक सुविधाएं तक मुहैया नहीं हैं। जीवन सैकड़ों साल पुराने ढर्रे पर चल रहा है।

साभार पत्रिका

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