मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

महत्वाकांक्षा में "गुम" बच्चे


राजेश त्रिपाठी

कोटाशहर में लापता होने वाले छात्रों की कहानी पर यकीन करें तो कोटा के अपराध का चेहरा कुछ ओर नजर आता है। ज्यादातर लापता छात्र खुद अपने अपहरण की कहानी बताते हैं, जिससे परिजन बेहाल होते हैं तो पुलिस चकरघिन्नी। दरअसल कोटा आने वाले कई छात्र परिजनों की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ रहे हैं। ऎसे छात्र पढ़ने में कमजोर होते हैं और सालभर बचने के रास्ते तलाशते हैं। जब उन्हें कुछ नहीं सूझता तो वे "लापता" हो जाते हैं। हर साल तकरीबन दो दर्जन से अधिक छात्रों के ऎसे मामले सामने आते हैं।चिकित्सकों का मानना है कि परिजनों की कसौटी पर खरे नहीं उतरने का डर छात्रों से इस तरह की घटनाएं करवाता है। उन्हें पसंद के कॅरियर में भेजा जाए तो वे वहां कुछ अच्छा कर सकते हैं। ऎसे दो दर्जन से अधिक छात्र मनोचिकित्सकों से उपचार करवा रहे हैं। बड़ी संख्या में छात्र घरों में तनाव भुगत रहे हैं। उधर, विज्ञाननगर थानाधिकारी संजय शर्मा के मुताबिक ऎसे किसी भी मामले में पुलिस सबसे पहले छात्र के अध्ययन का रिकॉर्ड तलाशती है। बीमारी भी बहानापरीक्षा से पहले अत्यधिक तनावग्रस्त के चलते कई बच्चों को अजीब बीमारियां होने लगती हैं। कुछ छात्र धुंधला दिखने की शिकायत करते हैं, तो कुछ हाथ-पैर सुन्न होने समेत अन्य लक्षण बताने लगते हैं। चिकित्सक इसे "कन्वर्जन डिसआर्डर" कहते हैं। परीक्षाएं समाप्त होने पर सब सामान्य हो जाता है।यह सोच-समझ कर किया जाता है। पढ़ाई में कमजोर छात्र अक्सर सोचते हैं कि वे अपनी कमजोरी को जाहिर करेंगे तो लोग उनका मजाक बनाएंगे। परिणाम अच्छे नहीं आए तो परिजनों का दबाव बढ़ेगा। ऎसे में उन्हें घर से भागना ही एक मात्र रास्ता दिखता है।-डॉ. भरतसिंह शेखावत, मनोचिकित्सककेस- एकपिछले दिनों कोटा के महावीर नगर इलाके से लापता एक छात्र ने दिल्ली में अपने दोस्त के घर से एसएमएस कर खुद के अपहरण की बात कही और परिजनों से एक करोड़ रूपए की फिरौती मांगी।केस- दोदो वर्ष पहले तलवंडी से लापता एक छात्र ने जम्मू रेलवे स्टेशन से फोन पर परिजनों को बताया कि उसे आतंककारी अगवा कर ले गए। वह किसी तरह उनकी गिरफ्त से छूट कर भागा।

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