शुक्रवार, 19 मार्च 2010

हर दूसरे दिन बिछुड़ी जिंदगी

राजेश त्रिपाठी
कोटा। "रूक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पर चलकर मिलेंगे साए बहार के..." शायद ही कोई हो, जिसे जिंदगी का ये फलसफा पता न हो, इसके बावजूद जिंदगी की राह में कुछ कदम डगमगाते ही लोग हताश होकर बैठ जाते हैं। पिछले दिनों शहर में इसी तरह निराश होकर 36 लोगों ने अपनी जीवन डोर खुद काट ली। वर्ष 2010 के शुरूआती 75 दिनों में हर दूसरे दिन एक व्यक्ति ने आत्मघाती कदम उठाया। मनोचिकित्सक इसे समाज में बढ़ती नकारात्मक सोच का प्रतिबिंब मानते हैं। पिछले दिनों आत्महत्या करने वाले सर्वाधिक लोग 21 से 35 वर्ष की उम्र के युवा थे।

घटी सहनशीलता

मेडिकल ज्यूरिष्ट डॉ. पी.के. तिवारी के अनुसार, आज के दौर में सहनशीलता घटी है। इसका एक कारण यही है कि लोग छोटी-छोटी बातें दिल से लगा लेते हैं। बुजुर्गो की डांट-फटकार, शिक्षकों की रोक-टोक को भी अपमानजनक समझा जाने लगा है। मामूली बात पर लोग मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। परिवारिक समस्या, आर्थिक कारण और कामकाज का तनाव भी निराशाजनक वातावरण बनाने में सहायक सिद्ध होता है।

महिलाएं अधिक सहनशील

महिलाएं पुरूषों की तुलना में अधिक सहनशील होती हैं। आत्महत्या करने वाले 36 लोगों में 26 पुरूष हैं। युवा वर्ग में धैर्य कम होता है, इसीलिए 16 से 20 वर्ष की आयु के आत्महत्या करने वाले 8 जनों में पचास फीसदी महिलाएं थी, जबकि 21 से 35 वर्ष के 19 लोगों में 33 फीसदी ही महिलाएं थी। 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं अधिक सहनशील साबित हुई।

यूं काटी जिंदगी की डोर

आयुवर्ग कितने पुरूष महिला
16 से 20 08 04 04
21 से 35 19 06 13
35 से 50 06 06 00
51 से अधिक 03 03 00
परिजन ध्यान रखें
"परिवार के किसी सदस्य को निराश देखें तो उसे संबल दें। अधिकांश मामलों में परिवार के लोग समय रहते सकारात्मक व्यवहार करें तो कई लोगों को आत्महत्या करने से रोका जा सकता है। अधिकांश मामलों में लोग पढ़ाई के तनाव, प्रेम संबंध और बीमारी से तंग हो कर जान देते हैं।"-लक्ष्मण गौड़, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक

समस्या है तो समाधान भी

जान देना किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि इससे तो समस्याएं बढ़ती हैं। कोई भी समस्या स्थायी नहीं होती। वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है। समस्या है तो विचार करें, कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकल आएगा। धैर्य नहीं खोएं। कई बार परिवारों में जिद भी इसका कारण बन जाती है।

परिवारों की आर्थिक समस्या और पढ़ाई में अपेक्षाएं पूरी नहीं होने पर परिजनों को बच्चों पर दबाव नहीं डालना चाहिए। दबाव में बच्चों की योग्यता प्रभावित होती है।-डॉ. डी.के. शर्मा, विभागाध्यक्ष, मनोचिकित्सा विभाग, मेडिकल कॉलेज

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