सोमवार, 21 जून 2010

आँखे खोल कर कब तक इंतजार



कोन देगा जवाब
मरते वक़्त भी आँखे शायद इसलिए खुली हुई थी की २६ साल बाद hone वाला न्याय देख सके लेकिन २६ साल बाद भी जो मिला वो न्याय नहीं था वो साजिश थी जिस में ऐ ऍम अहमदी अर्जुन सिंह राजीव गाँधी नरसिंह राव जैसे लोग शामिल थे

2 टिप्‍पणियां:

  1. बस गया २-३ दिसंबर ,
    २८ साल पुरे कर २९ में प्रवेश ,
    फिर एक साल बाद आएगा याद वो मंज़र ,
    शहर भोपाल को जानेगा दुनिया का नया सिकंदर ,
    कुछ साल पहले पैदा होकर हौश संम्भाला होगा उसने ,
    पूछेगा यह गैस त्रासदी क्या हैं ,
    अब बताने वाला खुद शर्मायेगा ,
    क्या कहेगा अपनों ने ही करा था सौदा ,
    दर दर भटकने पर भी न मिला पीड़ितों को इन्साफ ,
    सिसक-सिसक कर जान ही निकलने लगी ,
    अब क्या निकलेगी इन्साफ के लिए आवाज़ ,
    खो गए इन्किलाबी हमदर्द जिन्होंने दिखाई रोशनी ,
    अब उनकी झौली तो भर गई उनका हमसे क्या वास्ता ,
    पीड़ितों के ३६ कोई ५६ वार्ड मुआवजा-विकास वास्ता ,
    काटी चांदी व वोट लेकर बने सरताज ,
    गुमराह कर कर उकसाया और उठवाया अपना झंडा ,
    क्या से क्या कहे वो गैस-पीड़ित जिसने खोया अपना ,
    वो ज़ालिम तो खेलता ही रहेगा जिसने बेचा ज़मीर अपना !!!
    .
    हम तो अभागे है बस हमारी प्राथना और दुआ है की
    आप या आपका कोई अपना ऐसे हादसों का शिकार
    न हो ....

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  2. ''भोपाल शहर को कफ़न मिला भी तो उधार''..!!!
    .
    आने वाली हैं वो दुनिया की वोह त्रासदी की
    काली-रात २-३ दिसम्बर १९८४ ..... जब
    एक शहर सोते वक़्त ही सदा सो गया ! किसी
    ने सर का साया खोया तो किसी का बुझा चिराग !
    उस त्रासदी के २८ साल पुरे होने जा रहे हैं ज़िंदगी
    कुछ उस ही तरह न पीने का शुद्ध पानी न कोई
    विकास ! मुआवजा तो नाम मात्र का पहले तो
    लोग केंसर का नाम लेने में डरते थे गर्व से कह
    सकते हैं केंसर हैं मेरे शहर को अब बीमारी में
    कैसे हों उपचार ! वादे तो वादे पक्ष और विपक्ष
    सब ने मिलकर लूटा .......
    अब भी दिलासा - श्रधान्जली

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