शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
रविवार, 20 जून 2010
आँखों में गुस्सा हाथो में सवाल
भोपाल में हजारो लोगों की मोत के मामले में क्या यूनियन कर्बयद जितना ही दोषी अर्जुन सिंह नहीं है. जिन लोगो को वोट बैंक मान कर दुहा है अर्जुन सिंह उन लोगो की मौत पर अमरीका की दलाली करने से नहीं चुके वैसे अर्जुन सिंह का राजनीतिक जीवन भी कुटिलताओ चमचागिरी और दलाली से भरा रहा है वे हमेशा कांग्रेस नेता की जगह गाँधी परिवार के वफादार .................. अधिक नजर आये जिसका उन्होंने लाभ उठाया और भोपाल ने उस की कीमत चुकी.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें