शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
बुधवार, 7 अप्रैल 2010
वार्ड जाये भाड़ में जम कर लुंगी........
राजनीती का ये हाल.विरोध के तरीको पर अक्सर बहस होती रहती है. इसे भे शामिल कर लिया जाये. फोटो कोटा का है.
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