रविवार, 9 फ़रवरी 2014

कुत्ते को गाली देने वाले दोस्तों


कुत्ते को लेकर हमारे समाज की सोच अजब गजब रही है। हमने कुत्ते को लेकर गालियां बनाईं, मुहावरे बनाए और अपने बच्चे की तरह घरों में पाला भी है। मुझे नहीं मालूम कि इंसानों के सबसे विश्वासी दोस्त जानवर के लिए गाली कैसे बन गई। अक्सर कोई तैश में कह देता है कि साला कुत्ता है। साला एक नंबर का कुत्ता है। कुत्ता हरामी। कुत्ता कमीना। कुत्ते की औलाद। इस तरह की गालियां मुझे परेशान करती है। आखिर बेचारा कुत्ता ऐसा क्या करता है कि सभ्य इंसान उसे इतनी गालियां देता है।

कुत्ता होने का क्या मतलब है? क्या गाली या फिर एक ऐसा रिश्तेदार जो रातों को जाग कर हमारे लिए पहरेदार का काम करता है। हम अजीब लोग हैं। विश्वास भी करते हैं और गाली भी देते हैं।

जब भी यह सुनता हूं कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। तब बहुत दुख होता है। किसी का बेघर होना गाली कैसे हो सकती है। क्या हमें मज़ा आता है ऐसे बेघर कुत्तों को देख कर? आप उस कुत्ते के बारे में क्या कहेंगे जिसका एक घर होता है जहां वह बच्चे की तरह पाला जाता है। परिवार के सदस्यों के साथ उसकी तस्वीर होती है। उसका एक नाम होता है।

मैं बताता हूं। हम ऐसे कुत्ते को भी गाली देते हैं जिसका घर होता है। बल्कि इस मामले उसके मालिक को भी गाली देते हैं। हम कह देते हैं कि अमीरों का शौक है। जबकि कुत्ता पालने वाला या उससे प्रेम करने वाला हर कोई अमीर नहीं होता।
हम मालिक का वर्ग यानी क्लास का पता करने लगते हैं। आलोचक कहता रहता है कि इंसानों के पास खाने के लिए दो रोटी नहीं लेकिन कुत्ते को अमरीकी बिस्कुट खिला रहे हैं। यह है इंसान की जानवर से वफादारी। खुद तो चाहता है कि कुत्ता उसका वफादार बना रहे लेकिन जब कुत्ता खा रहा होता है तो वह भूखे इंसानों की तरफदारी करने लगता है। तभी उसे भूखे इंसानों की याद आती है।

लगता है हमें इस बात से खुशी होती है कि कुत्ते का कोई घर नहीं। कोई घाट नहीं। गली का कुत्ता कहने में हम राहत महसूस करते हैं। एक बेचारे जानवर को जाने हम किस किस नज़र से देखते हैं।

अक्सर हाईवे पर देखता हूं। एक ही जानवर इंसानों की गाड़ी से कुचला दिखता है। कुत्ता। लगता है कि गाड़ी चलाने वाले को कुचलने के बाद अफसोस भी नहीं हुआ होगा। संतोष होता होगा कि कुत्ते को मारा है। एक बार एक प्रेस कांफ्रेस में समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह ने कह दिया कि सड़क पर वही कुत्ता मारा जाता है जो कंफ्यूज़ होता है। जो तय नहीं कर पाता कि आगे जाएं या पीछे और तब तक कुचला जाता है। मुझे बहुत दुख हुआ था। बजाए इसके कि इंसान शर्म करता या अफसोस ज़ाहिर करता कि उसकी वजह से एक कुत्ता मारा गया है वो कुत्ते को ही गाली देता है।

कहने का मतलब यह है कि इंसानों ने कुत्ते की वफादारी का ईनाम नहीं दिया। वो सिर्फ दुत्कारता है। और इससे भी जी नहीं भरता तो कुत्ते को पुचकारने वाले इंसान को ही दुत्कारने लगता है।

मुझे कुत्ते से डर लगता है लेकिन गाली देने में शर्म आती है।कभी कभी ज़बान से निकलती है तो उन दोस्तों का चेहरा याद आ जाता है जिनके घरों में वह आदर के साथ पलता बढ़ता है। एक दोस्त की तरह। जहां जाने पर वह करीब आकर पुचकारता है, खेलता है और डरा कर चला जाता है। कभी अनुशासन नहीं तोड़ता। मालिक की हर बात मानता है। वहां से लौट कर हर बार सोचता हूं आखिर कुत्ता ऐसा क्या करता है कि हम उसे गाली देते हैं। उसके नाम से इंसानों को गाली देते हैं। क्या आप भी ऐसा करते हैं?

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