बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

दोस्तों...आप सभी कुमार विश्वास जी से परिचित हैं और उनकी प्रसिद्ध रचना "कोई दीवाना कहता है... " से भी, जिसमे नायक अपनी नायिका को अपनी विवशता समझाने का

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न मै दीवाना कहती हूँ न तो पागल समझती हूँ
तेरी यादो को इन पैरों की अब पायल समझती हूँ
हमारे दिल की दूरी घट नहीं सकती कभी क्यूंकि
न तुम मुझको समझते हो न मै तुमको समझती हूँ

मोहब्बत एक धोका है मोहब्बत एक फ़साना है
मोहब्बत सिर्फ ज़ज्बातों का झूठा कारखाना है
बहुत रोई हैं ये आँखें मोहब्बत की कहानी पर
तभी तो जानती हैं कौन अपना और बेगाना है

समय की मार ने आँखों के सब मंजर बदल डाले
ग़म-ऐ-जज़्बात ने यादो के सारे घर बदल डाले
मै अपने सात जन्मो में अभी तक ये नहीं समझी
न जाने क्यूँ भला तुमने भी अपने स्वर बदल डाले

ये सच है की मेरी उल्फत जुदाई सह नहीं पायी
मगर महफ़िल में सबके सामने कुछ कह नहीं पाई
मेरी आँखों के साहिल में समुन्दर इस कदर डूबा
बहुत ऊंची उठीं लहरें पर बाहर बह नहीं पाई

एक ऐसी पीर है दिल में जो जाहिर कर नहीं सकती
कोई बूटी मेरे दिल के जखम अब भर नहीं सकती
मेरी हालत तो उस माँ की प्रसव-पीड़ा से बदतर है
जो पीड़ा से तो व्याकुल है मगर कुछ कर नहीं सकती

बहोत अरमान आँखों में कभी हमने सजाये थे
तेरी यादो के बन्दनवार इस दर पर लगाये थे
तुम्हारा नाम ले लेकर वो अब भी हम पे हस्ते है
तुम्हारे वास्ते जो गीत हमने गुनगुनाये थे !!

तुम्हारे साथ हूँ फिर भी अकेली हूँ ये लगता है
मै अब वीरान रातों की सहेली हूँ ये लगता है
न जाने मेरे जज्बातों की पीड़ा कौन समझेगा
मैं जग में एक अनसुलझी पहेली हूँ ये लगता है

इस दीवानेपन में हमने धरती अम्बर छोड़ दिया
उनकी पग रज की चाहत में घर आँगन छोड़ दिया
कुछ कुछ जैसे मीरा ने त्यागा अपना धन वैभव
कान्हा की खातिर ज्यूँ राधा ने वृन्दावन छोड़ दिया

ये दिल रोया पर आंसू आँख से बाहर नहीं निकले
हमारे दिल से तेरी याद के नश्तर नहीं निकले
तुम्हारी चाहतो ने इस कदर बदनाम कर डाला
किसी के हो सके हम इतने खुशकिस्मत नहीं निकले

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