रविवार, 9 जनवरी 2011

आजादी के ६ दशक में कहा पहुचे हम

मामला अनूपपुर का है, कहते हैं मौत के बाद भी सुकून नहीं मिलता। यह बात सच्चाई में तब्दील हो गई। मौत के बाद अमानवीयता की एक बानगी सामने आई। शव वाहन के अभाव में हालात यह बने कि एक आदिवासी गरीब परिवार के युवक की अस्पताल में मौत हो जाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए पिता को अपने किशोर बेटे के शव को साइकिल पर लादकर 25 किलोमीटर दूर ले जाना पड़ा।

दुधमनिया निवासी 17 वर्षीय सोहागा पुत्र गोकुल गोंड की उल्टी-दस्त के कारण शुक्रवार शाम मौत हो गई। शनिवार को शव का पोस्टमार्टम किया जाना था। 12 घंंटे तक चली पुलिसिया कार्रवाई व जांच अधिकारियों के इंतजार के बाद युवक के शव को वाहन नहीं मिला। इस कारण पिता को अपने बेटे के शव को साइकिल पर लादकर जिला मुख्यालय ले जाना पड़ा।

गौरतलब है कि जिला अस्पताल में लंबे समय से शव वाहन की कमी बनी हुई है, लेकिन अधिकारियों के साथ ही जनप्रतिनिधियों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही। मध्याह्न में शव का पोस्टमार्टम हुआ तब पिता अपने बेटे का शव फिर से साइकिल पर वापस ले जा सका। हैरत की बात यह है कि उसकी इस दशा पर किसी को भी तरस नहीं आया। मानवता पथरा सी गई और किसी ने भी उसकी मदद को हाथ नहीं बढ़ाया।

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