शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर। स्कूल की मिट चुकी तमाम स्मृतियों में से एक यही लाइन बची रह गई। बाकी आज तक नहीं समझ पाया कि दस बारह सालों तक स्कूल क्यों गया? बरसो से मन में कई बातों का तूफ़ान चल रहा है. दिल करता है की अब उसे शब्दों के पिरो दूँ . ब्लॉग के मंच पर पेश है मेरी अभिव्यक्ति.
गुरुवार, 6 मई 2010
तकदीर हो तो ऐसी.
अब नहीं मचा बवाल ........... रिचर्ड गैर ने शिल्पा को क्या चूमा.सारे देश में बवाल मच गया था. .अब शिल्पा एक मंदिर में गई तो पुजारी भी भगवान् को भूल कर हुस्न की पूजा में जुट गया. शिल्पा को भला क्या ऐतराज होता.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें